Edited By suman, Updated: 02 Jan, 2019 04:41 PM
प्रदेश कांग्रेस मीडिया उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा है कि ''विधानसभा चुनाव में हार से बौखलाई भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रगीत वंदे मातरम् को राजनीति का हिस्सा न बनाए। उन्होंने कहा कि ''वंदे मातरम् देश की आजादी के...
भोपाल: प्रदेश कांग्रेस मीडिया उपाध्यक्ष भूपेन्द्र गुप्ता ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा है कि 'विधानसभा चुनाव में हार से बौखलाई भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रगीत वंदे मातरम् को राजनीति का हिस्सा न बनाए। उन्होंने कहा कि 'वंदे मातरम् देश की आजादी के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा है, जिसे 1896 में कांग्रेस के अधिवेशन में पहली बार रविन्द्र नाथ टैगोर ने गाया था'।
'वर्ष 1901 में दाखिना चरण सेन ने विदोन स्क्वायर कलकत्ता में आयोजित अधिवेशन में गाया था। उसके बाद बनारस अधिवेशन में 1905 में सरलादेवी चैधरानी ने इसे गाया और यह आजादी के मतवालों का इतना बड़ा प्रतीक गीत बन गया कि जब क्रांतिकारिणी मतांगिनी हाजरा को ब्रिटिश हुकूमत ने गोलियों से भूना तो वे वंदे मातरम् कहते हुए शहीद हुईं'।
बीजेपी गौरव प्रतीकों पर करती है राजनीति
गुप्ता ने कहा कि 'वर्ष 1905 में ही लाला लाजपत राय ने लाहौर से वंदे मातरम् का प्रकाशन किया और हीरालाल सेन ने इस पर राजनैतिक फिल्म बनायी। देश की संविधान सभा में 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने इसे राष्ट्रगीत बनाये जाने की घोषणा की और इसे राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ के समतुल्य ही सम्मान दिया गया। भूपेन्द्र गुप्ता ने कहा कि 'भारतीय जनता पार्टी हमेशा देश के गौरव प्रतीकों को विवादग्रस्त बनाने में अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकती रही है'।
प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 'राष्ट्रगीत' के गायन को दूसरे स्वरूप में लागू करने का मंतव्य इसलिए जाहिर किया है, क्योंकि गीत गान के दिन अधिकतर कर्मचारी समय पर उपस्थित नहीं हो पाते थे। वंदे मातरम् के गायन में कभी सौ तो कभी 200 कर्मचारी ही शामिल होते थे। जिससे गीत की मर्यादा प्रभावित होती है। इस व्यवहारिक दिक्कत को समझ कर ही सरकार राष्ट्रगीत के गौरव को बचाये रखने का सच्चा प्रयत्न कर रही है।