5 वक्त के नमाजी फारुख खान 35 सालों से सुना रहे हैं रामकथा, अब लोग कहते है 'फारुख रामायणी'

Edited By Vikas kumar, Updated: 21 Nov, 2019 11:15 AM

born in a muslim family this person has been narrating ram katha for 35 years

एक तरफ जहां उत्तरप्रदेश की बनारस हिंदू युनिवर्सिटी (BHU) में संस्कृत विद्या धर्म पढ़ाने को लेकर फिरोज खान का विरोध हो रहा है। तो वहीं दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में एक ऐसा मुस्लि....

राजगढ़: एक तरफ जहां उत्तरप्रदेश की बनारस हिंदू युनिवर्सिटी (BHU) में संस्कृत विद्या धर्म पढ़ाने को लेकर फिरोज खान का विरोध हो रहा है। तो वहीं दूसरी तरफ मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में एक ऐसा व्यक्ति भी है, जो मुस्लिम परिवार में पैदा हुआ और आज लोगों को राम के नाम पर जोड़ रहा है। इनका नाम फारुख खान है। राजगढ़ के फारुख खान रामायण पर प्रवचन करते हैं, जिसके चलते वहां के लोग उन्हें फारुख रामायणी कहकर पुकारते हैं। फारुख रामायणी आज के दौर में ऐसा चेहरा बन चुके हैं, जिसमें असली भारत दिखाई देता है।

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राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ के फारुख रामायणी करीब 35 वर्षों से रामकथा कर रहे हैं, वे अबतक देश के विभिन्न हिस्सों में 300 से अधिक स्थानों में रामकथा सुना चुके हैं। यही नहीं वे रामायण के साथ वे अपना इस्लाम धर्म भी अच्छे से निभाते हैं और रोज पांच वक्त की नमाज पढ़ते हैं। फारुख खान का कहना है कि भगवान राम तो उनके रोम-रोम में बसते हैं। वे रामकथा पैसे कमाने के लिए नहीं बल्कि लोगों को जोड़ने के लिए करते हैं। इनकी कथा में रोज सैकड़ों लोग पहुंचते हैं।

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राजगढ़ के राम भक्त फारुख खान वेद, गीता समेत तमाम ग्रंथों पर अच्छा ज्ञान रखते हैं, इस बीच वे अपनी नमाज करना भी नहीं भूलते। फारुख रामायणी कुछ इस तरह के ज्ञाता हैं कि 30 ब्राह्मण उनके शिष्य हैं। राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ के गुनियारी गांव में जन्मे फारुख खान ने महज 6 वर्ष की उम्र में ही रामायण और गीता का ज्ञान लेना अर्जित कर दिया था। गांव में होने वाली रामलीला को वे हमेशा सुनते थे। इसके बाद 24 साल की उम्र में रामकथा के अच्छे ज्ञान के चलते पूरे गुनियारी गांव में फारुख खान की एक अलग ही पहचान बन गई। उन्हें 1984 में पहली बार मंच से रामकथा कहने का मौका मिला। इस बीच लोगों से उन्होंने जमकर तारीफें बटोरीं, और देखते ही देखते वे पूरे राजगढ़ में फेमस हो गए।

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1994 में मिला रामायणी का खिताब...
रामकथा सुनाने के करीब 10 वर्षों बाद सन 1994 में उनके गुरे लक्ष्मीनारायण शर्मा ने फारुख खान को रामायणी खिताब से नवाजा, इसी के बाद से फारुख खान का नाम फारुख रामायणी हो गया। फारुख रामायणी आज हिंदू मुस्लिम एकता की एक नई मिसाल बन चुके हैं।

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