Edited By suman, Updated: 03 Nov, 2018 05:34 PM
जिले के महाराजपुर गांव सैला में भविष्य को उज्जवल बनाने की चाह में सिर पर किताबें और मौत को मात देकर नौनिहाल स्कूल जाते हैं। मुख्यमंत्री खुद को बच्चों का मामा बोलते हैं और प्रदेश में शिक्षा के लिए लाख दावे करते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। ...
छतरपुर: जिले के महाराजपुर गांव सैला में भविष्य को उज्जवल बनाने की चाह में सिर पर किताबें और मौत को मात देकर नौनिहाल स्कूल जाते हैं। इनमें से कुछ नौनिहाल अपनी जान हथेली पर लेकर ना सिर्फ अपनी तालीम पूरी करते हैं, बल्कि रोजमर्रा के अन्य कामों के लिए भी उन्हें यह जोखिम उठाना पड़ता है। मुख्यमंत्री खुद को बच्चों का मामा बोलते हैं और प्रदेश में शिक्षा के लिए लाख दावे करते हैं। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है।
सैला गांव के अंदर बने एक छोटे से पुरवा जिसमें लगभग 40 से 60 लोग रहते हैं। लोगों को पुरवा से गांव आने के लिए एक नदी में से होकर गुजरना पड़ता है। क्योंकि मामा जी ने इन मासूमों के लिए नदी पर कोई पुल नहीं बनवाया है और इसके लिए उन्हें एक छोर से दूसरे छोर तक रस्सी के सहारे जाना पड़ता है। पढ़ाई के लिए इन बच्चों के मन में कितनी लग्न है। इसका एक और उदाहरण यह है कि जब ये मासूम स्कूल जाते हैं तो आम कपड़े पहनकर घर से निकलते हैं। वर्दी को अपने थैले में डाल लेते हैं। और जब नदी पार करते हैं। तो दूसरे छोर पर पहुंच कर इन भीगे हुए कपड़ों को उतार कर वर्दी पहनते हैं।