वन भूमि से बेदखल नहीं होंगे MP के वनवासी, सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत

Edited By ASHISH KUMAR, Updated: 01 Mar, 2019 08:53 AM

mp will not be evicted from the forest land the supreme court has given relief

प्रदेश के साढ़े तीन लाख वनवासियों को बड़ी राहत मिली है। वे अब वनभूमि से बेदखल नहीं किए जाएंगे। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राज्य सरकार को स्टे मिल गया है। अब सरकार पिछली सरकार द्वारा अपात्र मानकर खारिज किए गए आवेदनों की फिर से जांच कराएगी...

भोपाल: प्रदेश के साढ़े तीन लाख वनवासियों को बड़ी राहत मिली है। वे अब वनभूमि से बेदखल नहीं किए जाएंगे। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर राज्य सरकार को स्टे मिल गया है। अब सरकार पिछली सरकार द्वारा अपात्र मानकर खारिज किए गए आवेदनों की फिर से जांच कराएगी और पात्र वनवासियों को पट्टे देगी। जनजातीय कार्य विभाग ने इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है।

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जानकारी के अनुसार, गुरुवार शाम को आदिम जाति कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि 13 फरवरी को दिए कोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी। कोर्ट ने सरकार की दलीलें सुनते हुए पुराने फैसले पर स्टे दे दिया है। अब सरकार आदिवासियों को उनका हक दे सकेगी।

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मंत्री ने प्रदेश की पिछली सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। इस कारण साढ़े तीन लाख से ज्यादा आदिवासियों को उनके घर से बेदखल करने की नौबत आ गई थी। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने जिन्हें अपात्र घोषित किया है, उनमें पात्र भी हैं, जिन्हें अब परीक्षण कर पट्टे दिए जाएंगे।

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गौरतलब हो कि, सुप्रीम कोर्ट ने देश के करीब 16 राज्यों के  11.8 लाख  से अधिक आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों को जंगल की जमीन से बेदखल करने का आदेश दिया था।आदिवासियों और जंगल में रहने वाले अन्य लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए बने एक कानून का केंद्र सरकार बचाव नहीं कर सकी, जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया।  कोर्ट ने 16 राज्यों के मुख्य सचिवों को आदेश दिया था कि वे 24 जुलाई से पहले हलफनामा दायर कर बताएं कि उन्होंने तय समय में जमीनें खाली क्यों नहीं कराईं। अब जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे वन अधिकार अधिनियम के तहत खारिज किए गए दावों के लिए अपनाई गई प्रक्रिया और आदेशों को पास करने वाले अधिकारियों की जानकारी दें। इसके साथ ही पीठ ने यह जानकारी भी मांगी कि क्या अधिनियम के तहत राज्य स्तरीय निगरानी समिति ने प्रक्रिया की निगरानी की। पीठ ने राज्यों को ये जानकारियों जमा करने के लिए चार महीने का समय दिया। 

 

 

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