MP में कांटे की टक्कर, पहली बार सरकार बनाने में मुख्य भूमिका निभाएंगें निर्दलीय

Edited By suman, Updated: 12 Dec, 2018 12:50 PM

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मध्य प्रदेश में किसकी सरकार होगी यह 11 दिसम्बर को भी तय नहीं हो पाया। चुनाव से लेकर नतीजों तक भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही। कांग्रेस 114 तो बीजेपी 109 पर आ पहुंची है। अब दोनों ही दल सरकार बनाने का दावा कर रहे है। दोनों को ही जीत के...

भोपाल: मध्य प्रदेश में किसकी सरकार होगी यह 11 दिसम्बर को भी तय नहीं हो पाया। चुनाव से लेकर नतीजों तक भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही। कांग्रेस 114 तो बीजेपी 109 पर आ पहुंची है। अब दोनों ही दल सरकार बनाने का दावा कर रहे है। दोनों को ही जीत के लिए समर्थन की जरुरत है। संभवत:मध्यप्रदेश के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब तीसरे मोर्चे और निर्दलीय की सरकार बनाने में अहम भूमिका होगी।

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मध्यप्रदेश का इस बार का चुनाव अन्य चुनाव की तुलना में महत्वपूर्ण रहा। पहली बार ऐसा हुआ है कि मध्यप्रदेश में गठबंधन होने जा रहा है। दोनों ने जादुई आकंडा 116 पार नहीं किया है। अब दोनों ही अपने अपने स्तर पर संपर्क बनाने में जुट गए है। इस चुनाव में पहली बार ना सिर्फ बसपा, सपा बल्कि बागियों ने भी भाजपा-कांग्रेस का जमकर खेल बिगाड़ा और इस भंवर में उलझा कर रख दिया। अब दोनों ही सरकार बनाए के लिए एड़ी चोटी तक का जोर लगा रहो है। दोनों प्रयासरत है, अब देखना दिलचस्प होगा की कौन कामयाब होता और कौन नहीं।

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10 साल बाद सपा ने खोला खाता बढ़ाया, बसपा दो कदम हुई पीछे 
इस तरह 2013 में हुए चुनाव में प्रदेश में बसपा के चार प्रत्याशी जीते थे। इस बार बसपा की दो सीटें कम हुई हैं। पथरिया से बहुजन समाज पार्टी की प्रत्याशी रामबाई गाेविंद सिंह अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बीजेपी के लखन पटेल से आगे रहीं। उन्होंने करीब ढाई हजार मतों से पटेल को हराया। उन्हें 37062 वोट मिले। साथ ही भिंड में बसपा के संजीव सिंह ने भाजपा के कद्दावर नेता को कड़ी टक्कर दी। उन्होंने भाजपा के चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी को करीब 20606 वोटों से शिकस्त दी है।  इधर, समाजवादी पार्टी (सपा) ने दस सालों बाद एमपी में अपना खाता खोला है। बिजावर में कांग्रेस से बागी होकर समाजवादी पार्टी में शामिल हुए राकेश कुमार शुक्ला ने बीजेपी के पुष्पेंद्रनाथ पाठक गुड्‌डन को करारी शिकस्त दी।इससे पहले वर्ष 2008 में मीरा दीपक यादव निवाड़ी से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंची थीं।

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बागियों के कारण उलझा गणित 
कांग्रेस से बागी होकर लड़े चार प्रत्याशी बीजेपी के साथ कांग्रेस पर भी भारी पड़े। इनमें सुसनेर से कांग्रेस से बागी होकर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले विक्रम सिंह राणा सहित तीन अन्य प्रत्याशी शामिल हैं। राणा को 75 हजार 804 मत मिले। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस प्रत्याशी महेंद्र सिंह को करीब 27 हजार मतों से परास्त किया। 2013 में यहां से चुनाव जीते बीजेपी के मुरलीधर पाटीदार तीसरे पायदान पर रहे। वहीं बुरहानपुर में बीजेपी की मौजूदा विधायक और मंत्री अर्चना चिटनीस को सुरेंद्र सिंह ने पांच हजार से ज्यादा मतों से हरा दिया। सुरेंद्र कांग्रेस के बागी हैं और इनके कारण ही इस सीट पर कांग्रेस तीसरी पार्टी रही। सालों बाद पहला मौका रहा जब एक कद्दावर मंत्री को एक निर्दलीय ने शिकस्त दी। 

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इसी तरह भगवानपुरा में कांग्रेस के बागी केदार डावर ने बीजेपी के जमना सिंह सोलंकी को हराया। यहां कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही। वारासिवनी में कांग्रेस के बागी प्रदीप जायसवाल ने बीजेपी के मौजूदा विधायक योगेंद्र निर्मल को हराकर कांग्रेस को चौथे नंबर पर धकेल दिया।जबकी कांग्रेस ने यहां से सीएम शिवराज के साले संजय मसानी पर दांव खेला था। कांग्रेस को पूरी उम्मीद थी कि वो विजयी होंगें।

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