परंपरा: आज होगा हिंगोट युद्ध, कलिंग और तुर्रा दल में होगी जंग

Edited By Vikas kumar, Updated: 08 Nov, 2018 02:14 PM

tradition today will be hingot war kalinga and turra dal will be in war

प्रदेश में वर्षों से चली आ रही पुरानी परंपरा को निभाने के लिए आज दो गांवों के नागरिकों के बीच हिंगोट युद्ध होगा। हर वर्ष की तरह इस साल भी दीपावली के दूसरे दिन इंदौर से 55 किमी दूर गौत...

इंदौर: प्रदेश में वर्षों से चली आ रही पुरानी परंपरा को निभाने के लिए आज दो गांवों के नागरिकों के बीच हिंगोट युद्ध होगा। हर वर्ष की तरह इस साल भी दीपावली के दूसरे दिन इंदौर से 55 किमी दूर गौतमपुरा गांव में वहां के नागरिकों द्वारा एक दूसरे पर आग के गोले फेंके जाएंगे। इस खतरनाक खेल में हर साल कई लोग घायल भी होते हैं। इस खेल में जान जाने का भी खतरा रहता है, इसके बावजूद भी लोग यह परंपरा निभाना नहीं भुलते हैं। 

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इस युद्ध को देखने के लिए हजारों की तादाद में लोग यहां पर पहुंचते हैं। यह युद्ध हार या जीत के लिए नहीं खेला जाता है, बल्कि यह सिर्फ परंपरा के तौर पर खेला जाता है। इतिहास में देखा जाए तो इस युध्द के शुरू होने की कोई लिखित तारीख नहीं मिलती है, लेकिन यहां के लोग दिपावली के दुसरे दिन ही यह खेल खेलते हैं।

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आपको बता दें कि इंदौर के गौतमपुरा में वर्षों से हिंगोट युद्ध की परंपरा चली आ रही है, इसके तहत दो गांवों के लोग एक-दूसरे पर जमकर हिंगोट बरसाते हैं। इससे बचने के लिये लोगों के हाथों में ढाल होती है, और सिर पर कपड़े की पगड़ी बंधी रहती है। इस युद्ध में तुर्रा और कलंगी दल भाग लेते हैं, दोनों दल के योद्धा आमने-सामने खड़े होकर सूर्यास्त का इंतजार करते हैं। और संकेत मिलते ही एक-दूसरे पर जलते हुए हिंगोट बरसाना शुरू कर देते हैं। यह खतरनाक खेल करीब एक घंटे तक खेला जाता है। 

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क्या है हिंगोट... 
यह हिंगोरिया नामक पेड़ पर पैदा होने वाला एक ऐसा फल है। जो नींबू के आकार का होता है। और नारियल की तरह अंदर से कठोर और बाहर से मुलायम होता है, जिसे दोनों दलों के योद्धा जंगल पहुंचकर पेड़ से तोड़कर लाते हैं। इसे ऊपर से साफ कर अंदर से उसका गुदा निकाल दिया जाता है। इसके बाद इसे सूखने के लिए धूप में रख दिया जाता है। इस फल में एक ओर छेद कर उसमें बारूद भर दी जाती है, और पीली मिट्‌टी से इसका मुहांना बंद कर दिया जाता है। इसके छेद पर एक बाती लगा दी जाती है, जिस पर आग को छुआते ही हिंगोट जल उठता है। दीपावली के अगले दिन पड़वा को यह जोखिम भरा हिंगोट युद्ध खेला जाता है।

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बता दें कि प्रसासन भी इस खतरनाक खेल पर पाबंदी नहीं लगा पा रहा है क्योंकि इससे क्षेत्रीय लोगों की धार्मिक मान्यताएं जुड़ी हैं। 

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