राजस्थान में सेफ जोन में गहलोत, मध्य प्रदेश में कमलनाथ की एक चूक ले डूबी कांग्रेस सरकार

Edited By meena, Updated: 14 Aug, 2020 05:01 PM

congress government drowned in kamal nath s mistake in madhya pradesh

मध्य प्रदेश में सिंधिया की बगावत के बाद जहां पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार साल भर बाद ही घुटनों पर आ गई थी। वही राजस्थान की अशोक गहलोत की सरकार फिलहाल मोदी सरकार के सामने अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही है। राजस्थान के सत्ता संघर्ष में कौन जीता,...

भोपाल(प्रतुल पाराशर): मध्य प्रदेश में सिंधिया की बगावत के बाद जहां पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार साल भर बाद ही घुटनों पर आ गई थी। वही राजस्थान की अशोक गहलोत की सरकार फिलहाल मोदी सरकार के सामने अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही है। राजस्थान के सत्ता संघर्ष में कौन जीता, कौन हारा, कौन हार कर भी जीत गया, इसका आकलन बड़े बड़े राजनीतिक पंडित भी नहीं कर पा रहे है। इसी कड़ी में बहुत से राजनैतिक अनुमान और आकलन मध्य प्रदेश में कमलनाथ को गलत साबित करने पर तुले हैं तो राजस्थान के अशोक गहलोत की सरकार की वाहवाही हो रही है। 

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सवाल यह है कि राजस्थान में आखिर वैसा क्यों नहीं हुआ जैसा मध्य प्रदेश की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के नाराजगी से हुआ था। क्या भाजपा के चाणक्य कहलाने वाले अमित शाह की चाल ढीली रही, या फिर इस कोविड-19 महामारी का असर भारी पड़ गया। जो भी हो जैसा भी हो लेकिन एक बात तो साफ है कि कांग्रेस में उत्पन्न नाराजगी को भाजपा इस बार भुनाने में असफल रही है या यूं कहो कि मध्य प्रदेश में सिधिया की पार्टी से नाराजगी की खाई इतनी गहरी हो गई कि उन्हें मनाने का मौका ही नहीं मिला। असल में कांग्रेस से खफा होने के बाद सिंधिया की राहुल से मुलाकात नहीं हुई थी, अगर हो जाती तो शायद आज कांग्रेस सत्ता का स्वाद चखती दिखाई देती। वहीं प्रदेश की सियासत कुछ अलग हो सकती थी।

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वहीं अगर बात करे तो गहलोत और कमलनाथ की भूमिका की तो कमलनाथ की छोटी सी चूक उन्हें सत्ता से बाहर कर बैठी, जो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा। क्योंकि 13 फरवरी को सिंधिया की पहली सार्वजनिक नाराजगी जो टीकमगढ़ में सामने आई थी जिसमें उन्होंने कहा था कि वचन पत्र पूरा नहीं हुआ तो वे अतिथि शिक्षकों के साथ सड़क पर उतरेंगे। तो ऐसे में बंद कमरे में मामला सुलझाने की बजाय तत्कालीन सीएम कमलनाथ ने 14 फरवरी को कह दिया कि सड़क पर उतरना है तो उतर जाएं। बस यहीं से कमलनाथ को सत्ता से उतारने की इबारत लिखी जाने लगी और जिसका नतीजा आज सबके सामने हैं। बीजेपी ने इस मामले को उछाला और पूरा पूरा फायदा लेते हुए मध्य प्रदेश में सत्ता वापसी की।
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राजस्थान और मध्य प्रदेश की राजनीति में उथल पुथल के कारणों की पड़ताल करने से जो बात भाजपा के शीर्षस्थ नेतृत्व के सूत्रों से पता चली है उसमें दोनों राज्यों के राजनीतिक घटनाक्रम के पीछे सिंधिया राज घराना ही बताया जा रहा है। ठीक ठीक समझा जाए तो पता चलता है कि जिस प्रकार मध्य प्रदेश की राजनीति ज्योतिरादित्य सिंधिया के इर्द-गिर्द रही उसी प्रकार राजस्थान सरकार की राजनीतिक घटनाक्रम पूर्व सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया की रूपरेखा पर नाचती रही है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि मध्य प्रदेश के राजनीतिक घटनाक्रम सचिन पायलट में ज्योतिरादित्य सिंधिया और गहलोत में कमलनाथ दिखाई देती थी। लेकिन मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान की धड़ों की कल्पना में भाजपा नेता राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया नहीं थी। जिसे भांपते हुए वसुंधरा जी ने अपनी खामोशी बनाए रखी और 18 जुलाई को एकमात्र ट्वीट किया। 

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सूत्रों की माने तो राजस्थान भाजपा में भी मध्य प्रदेश भाजपा की तरह विरोधी गुट लामबंद हैं। लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस की नाराजगी से उत्पन्न उठापटक से मध्य प्रदेश भाजपा एकजुट दिखी और ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन कर शिवराज सिंह चौहान को अपना नेता घोषित कर दिया। राजस्थान में ठीक इसके विपरीत भाजपा में वसुंधरा का विरोधी गुट कांग्रेस की लड़ाई में सरकार बनाने के सपने देख रहा था। किंतु राजे सचिन पायलट को भाजपा में शामिल करने के खिलाफ थी साथ ही 45 से 47 भाजपा विधायक भी उनके अनुसार चलने को तैयार थे।

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इस मन की बात को वसुंधरा ने केंद्रीय नेतृत्व को भी अवगत करा दिया था। अब इसे वसुंधरा राजे सिंधिया की राजनीतिक महत्वाकांक्षा से जोड़ें तो गलत नहीं होगा लेकिन उनकी इस महत्वपूर्ण भूमिका को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। अब यह मानना और कहना कहीं से गलत नहीं होगा कि दोनों ही राज्यों में सिंधिया घराना की इच्छाशक्ति थी जिसके कारण मध्य प्रदेश भाजपा और ज्योतिरादित्य सिंधिया को जीत मिली। वहीं राजस्थान में वसुंधरा राजे सिंधिया को हार कर भी जीतने जैसा महसूस हो रहा होगा।

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