Edited By Vikas kumar, Updated: 13 Dec, 2018 05:15 PM
मध्यप्रदेश में 15 वर्षों बाद बीजेपी की हार के दो बड़े कारण एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण रहे। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही उपजे इस विवाद ने बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा...
भोपाल: मध्यप्रदेश में 15 वर्षों बाद बीजेपी की हार के दो बड़े कारण एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण रहे। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही उपजे इस विवाद ने बीजेपी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। इन दोनों मुद्दों में एट्रोसिटी एक्ट ने बीजेपी को ज्यादा नुकसान पहुंचाया, जिसका असर ग्वालियर-चंबल में साफ तौर पर देखने को मिला यहां बीजेपी बुरी तरह से हार गई। सवर्णों की नाराजगी के चलते बीजेपी को इस संभाग में 13 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं बीजेपी की हार के बाद पार्टी नेता व मंत्रियों ने भी इस बात को स्वीकार किया।
कैसे उपजा ये विवाद
एससी-एसटी एक्ट पर केंद्र के द्वारा अध्यादेश लाने से मध्य प्रदेश सहित राजस्थान और छत्तीसगढ़ के सवर्ण मतदाता काफी नाराज थे। सुप्रीम कोर्ट ने एससी-एसटी एक्ट में बदलाव करते हुए कहा था कि इससे संबंधित मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं की जाएगी, पहले जांच की जाएगी। लेकिन केंद्र सरकार ने एक अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के इस नियम पलट दिया। इसका सबसे ज्यादा असर मध्यप्रदेश और राजस्थान में देखने को मिला। एमपी में जगह-जगह इसके खिलाफ उग्र प्रदर्शन किए गए। हालात इस तरह बिगड़ गए कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पर सीधी जिले में चप्पल भी फेंकी गई। जनआशीर्वाद यात्रा के दौरान भी शिवराज को काले झंडे दिखाए गए। हालांकि अपनी यात्रा के दौरान शिवराज चौहान ने यह भी कहा कि, वह मध्य प्रदेश में एससी-एसटी एक्ट का दुरुपयोग नहीं होने देंगे। लेकिन इसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ।
इन सीटों पर दिखा एट्रोसिटी एक्ट का सबसे ज्यादा असर
एट्रोसिटी एक्ट का सबसे ज्यादा असर मध्यप्रदेश के भिंड, मुरैना, दतिया, श्योपुर और शिवपुरी शिवपुरी जिले में देखने को मिला। इनके अलावा भी प्रदेश के अन्य क्षेत्रों में भी इसका मिला जुला असर देखा गया। इस एक्ट का नतीजा यह रहा कि, बीजेपी को 15 वर्षों बाद हार का सामना करना पड़ा।