बासमती चावल की GI टैगिंग को लेकर परेशान MP का किसान, सस्ते दामों में बेचने को मजबूर

Edited By meena, Updated: 09 Aug, 2020 06:28 PM

mp farmer upset over gi tagging of basmati rice

मध्यप्रदेश में इन दिनों बासमती चावल की टेगिंग को लेकर राजनीति गर्म है। मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टी जी आई टैग की लड़ाई में आमने सामने हैं लेकिन प्रदेश में कई सालों से बंपर पैदावार करने वाले बासमती को अभी तक जी आई टैग नहीं मिल...

रायसेन(नसीम अली): मध्यप्रदेश में इन दिनों बासमती चावल की टेगिंग को लेकर राजनीति गर्म है। मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टी जी आई टैग की लड़ाई में आमने सामने हैं लेकिन प्रदेश में कई सालों से बंपर पैदावार करने वाले बासमती को अभी तक जी आई टैग नहीं मिल पाया है जिसके कारण मध्यप्रदेश के किसान हरियाणा और पंजाब के व्यापारियों को मजबूरी में अपना बेशकीमती बासमती चावल सस्ते दामों पर बेचने को मजबूर है जिससे किसानों को काफी नुकसान हो रहा है।

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क्या है जी आई टैगिंग और कैसे मिलती है?
जीआई टेगिंग के बारे में जानना जरूरी है ,किसी भी वस्तु को जी आई टेग देने से पहले उसकी गुणवत्ता क्वालिटी ओर पैदावार की अच्छे से जांच की जाती है यह तय किया जाता है उस खास वस्तु की सबसे अधिक और ओरिजनल पैदावार निर्धारित राज्य की ही है। इसके साथ ही यह भी तय किया जाना जरूरी होता है कि भौगोलिक स्तिथि का उस वस्तु की पैदावार में कितनी बड़ी भूमिका है कई बार किसी खास वस्तु की पैदावार एक विशेष स्थान पर ही सम्भव होती है। बासमती चावल की टैगिंग को लेकर विवाद अब दिल्ली पहुंच गया है।

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एक दिन पहले पंजाब के मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री को खत लिखा था। शुक्रवार को मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोनिया गांधी को पत्र लिखकर अमरिंदर सिंह को जबाब दिया। बासमती चावल की टैगिंग को लेकर मप्र सरकार ने तर्क दिया है कि केंद्र सरकार 1999 से राज्य को बासमती के ब्रीडर बीज की आपूर्ति कर रही है। सिंधिया स्टेट के रिकॉर्ड में अंकित है 1944 में मप्र के किसानों को बासमती के बीज मिले थे ,हैदरावाद के इंस्टिट्यूट ऑफ राइस रिसर्च रिपोर्ट में दर्ज किया है कि मप्र बीते 25 वर्षो से बासमती चावल का उत्पादन कर रहा है पंजाब ,हरियाणा के बासमती निर्यातक मप्र के बासमती चावल खरीद रहे है।

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पंजाब, हरियाणा के निर्यातक मप्र के बासमती चावल खरीदकर ऊंचे दामों में बेचकर मुनाफा कमा रहे जबकि प्रदेश किसानों की धान महज 2000 से 2500 तक बिक पाती है। इससे किसानों को लागत मूल्य नहीं मिल पा रहा है। अगर मप्र के बासमती चावल को जी आई टेग मिल जाता है तो यहां के किसानों को लाभ होगा। किसानों का भी यही कहना है सरकार चाहे तो सब हो सकता है अकेले रायसेन जिले में एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा रकबे में धान लगाई जाती है।

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