ना कुंडली का मिलान, ना मुहूर्त की जरूरत, बस लड़की की पसंद पर हो जाता है प्रेम विवाह (Video)

Edited By meena, Updated: 02 Sep, 2020 03:14 PM

आदिवासी सभ्यता को संजोकर रखने वाले बस्तर में एक प्रेम विवाह का अनोखा प्रचलन है। जिसमें यहां ना तो मुहूर्त देखा जाता है और ना ही कुंडली का मिलान किया जाता है। यहां बस एक ही चीज की आवश्यकता है और वो है कि लड़का-लड़की का एक दूसरे को पसंद करना। जिसके...

बस्तर(अभिषेक झा): आदिवासी सभ्यता को संजोकर रखने वाले बस्तर में एक प्रेम विवाह का अनोखा प्रचलन है। जिसमें यहां ना तो मुहूर्त देखा जाता है और ना ही कुंडली का मिलान किया जाता है। यहां बस एक ही चीज की आवश्यकता है और वो है कि लड़का-लड़की का एक दूसरे को पसंद करना। जिसके बाद दोनों शादी के लिए स्वतंत्र होते है। युवती स्वयं लड़के के घर पर चली जाती है। तो लड़का पक्ष यह मानने लगता है कि लड़की की शादी उनके घर में तय हो चुकी है। इस प्रथा को पैठू प्रथा कहा जाता है। देवशयनी एकादशी के बाद जिस समय शादी का मुहूर्त नहीं होता। तब दोनों की शादी कर दी जाती है।

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पैठू प्रथा के अंतर्गत क्या होता है कैसे सिर्फ लड़के-लड़की की पसंद से ही दोनों के प्रेम विवाह को मान्यता मिल जाती है। पैठू के लिए लड़के के घर पर पहुंची लड़की के उपर लड़के पक्ष वाले पानी डालकर विवाह कर लेते है। पानी डालने की प्रथा के लिए घर में मिट्टी का एक नया घड़ा खरीद कर लाते हैं। घड़े में पानी डालकर हल्दी मिलाया जाता है और उसे लड़की के ऊपर डाल दिया जाता है। इस कार्यक्रम में लड़का और लड़के के रिश्तेदार शामिल होते हैं।

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जिसके बाद रात भर रंगारंग नाच गाने का कार्यक्रम चलता है। दूसरे दिन लड़की के माता-पिता को इस बात की खबर दी जाती है। जिसपर लड़की पक्ष के लोग वर पक्ष के घर पहुंचते हैं। इस बीच अगर कोई विवाद की स्थिति बनती है तो समाज के ही एकत्रित लोगों के बीच दोनों पक्ष मे सुलह कराकर लड़की को वधू के रूप में लड़का पक्ष को सौंपा जाता है। जिसके बाद लड़की पक्ष के आए हुए लोग भी नाच गाने के कार्यक्रम में शामिल होते हैं। दूसरे दिन सामूहिक भोजन का आयोजन होता है।

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सर्व आदिवासी समाज में पैठू प्रथा एक अलग किस्म का रिवाज है। जो आज भी ग्रामीण आदिवासियों की प्राचीन संस्कृति है और इसे सामाजिक रिवाज के रूप में जाना जाता है। इसे आदिवासी समाज आज भी गलत नहीं समझता।

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पैठू प्रथा मे युवक-युवतियां अपना पसंद चुनने के लिए स्वतंत्र होते हैं। बाद मे दोनों की पसंद पर माता पिता और समाज की मुहर लग जाती है। कुल मिलाकर नवाखाई का त्यौहार लोगों में हर तरह से खुशहाली लाती है। कई बार ऐसा भी होता है कि नवा खानी के दिन ही लड़की पसंद के लड़के के घर में पहुंच जाती है। जिसे कहा जाता है कि नवा खानी का प्रसाद खाने आई है और घर के लोग इसे पैठू परंपरा के अनुसार ऐसा मानते हैं कि ये लड़का लड़की की पसंद है और माना जाता है कि आज से लड़की उस घर की वधू होगी।

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