Edited By meena, Updated: 23 Dec, 2020 02:42 PM
कांग्रेस पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए थे। भाजपा का दामन थामने के बाद भोपाल में पहले भव्य स्वागत को एक पल के लिए याद किया जाए तो लगता था कि बीजेपी उनको सिर आंखों पर बैठाएगी। लेकिन आलम कुछ यह हो गया है, कि...
ग्वालियर(अंकुर जैन): कांग्रेस पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया बीजेपी में शामिल हो गए थे। भाजपा का दामन थामने के बाद भोपाल में पहले भव्य स्वागत को एक पल के लिए याद किया जाए तो लगता था कि बीजेपी उनको सिर आंखों पर बैठाएगी। लेकिन आलम कुछ यह हो गया है, कि अब दिल्ली से लेकर भोपाल तक सिंधिया और उनके समर्थकों की उपेक्षा को आसानी के साथ महसूस किया जा सकता है, जो अलग अलग पहलुओं पर उभरकर सामने आ रही है। सिंधिया अब कहीं न कहीं अपनी नई पार्टी में भी उपेक्षित नजर आ रहे हैं।
दरअसल, 2019 में बनी कमलनाथ सरकार में सिंधिया और बीजेपी की हमेशा से शिकायत रही कि पार्टी में उनकी अनदेखी की जा रही है। जैसे तैसे 5 महीने बीत गए। फिर सिंधिया ने अपना राजनीतिक दबदबा कायम रखने के लिए बीजेपी ज्वाइन कर ली और शिवराज सरकार की ताजपोशी करवाई। लेकिन हालात जस के तस 10 महीने की शिवराज सरकार में कुछ ऐसी बाते सामने आई जिनसे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हाल ही में बीजेपी के भीतर सिंधिया की सुनवाई में थोड़ी बहुत कमी आई है।
- बीजेपी ज्वॉइन करने के बाद अब तक केंद्रीय मंत्री नहीं बने सिंधिया।
- जबकि उनके केंद्रीय मंत्री बनने के मसले को दलबदल की प्रमुख शर्त माना गया था।
- इसके अलावा सिंधिया समर्थकों को भी सरकार और संगठन में किया जा रहा उपेक्षित।
- सिंधिया समर्थकों को कार्यकारिणी में एडजस्ट करना चुनौती
- उपचुनाव के नतीजों के बाद भी गोविंद सिंह और तुलसी सिलावट कैबिनेट से बाहर।
- हारे हुए सिंधिया समर्थकों को भी निगम मंडल देने में बीजेपी रुचि नहीं दिखा रही।
- आयकर विभाग की कार्रवाई में भी सिंधिया समर्थकों के उलझने अटकलें बढ़ीं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जिन मुद्दो को लेकर बीजेपी घेरती रहती थी अब बीजेपी में सिंधिया की स्थिति को लेकर कांग्रेस ने अब सियासी खींचतान भी शुरू हो गई है। इस वक्त मध्यप्रदेश के साथ दिल्ली की राजनीति में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया कहीं न कहीं उपेक्षा के साथ जूझ रहे हैं। जिसे लेकर हालांकि कांग्रेस और भाजपा इसे लेकर अलग अलग दावे कर रही है।
जाहिर सी बात है कि राजनीति में सब जायज है और राजनीतिक रसूख बनाए रखने के लिए सिंधिया ने बीजेपी ज्वाइन की। इस बात ये भी इंकार नहीं किया जा सकता कि सिंधिया ने दलबदल करके एक बहुत बड़ा जुआ खेला था। हालांकि अब तक उसके सफल पहलू सामने आए हैं, लेकिन इस दौरान हम संबंधित मामले से जुड़े नकारात्मक पहलुओं को भी दरकिनार नहीं कर सकते, जो शायद अलग अलग शक्ल में सामने आ रहे हैं।