Edited By meena, Updated: 15 Oct, 2023 02:22 PM
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 60 किमी दूर एक ऐसी जगह है जहां राज्य के CM जाने से कतराते हैं...
भोपाल: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 60 किमी दूर एक ऐसी जगह है जहां राज्य के CM जाने से कतराते हैं। इसका उदाहरण खुद सीएम शिवराज सिंह चौहान है जो अपने साढ़े सोलह साल के मुख्यमंत्री काल में आज तक यहां नहीं गए हैं। न हीं कोई कार्यक्रम में और न ही किसी उदघाटन समारोह में। इसके पीछे बड़ी वजह है इस जमीन से जुड़ी मिथक। यह जगह है सीहोर जिले का कस्बा इछावर। कहा जाता है कि यहां कोई भी बतौर मुख्यमंत्री जाता है तो उसकी कुर्सी छिन जाती है।
कार में बैठे-बैठे ही स्वागत करवाया, उतरे नहीं CM
सीएम शिवराज सिंह चौहान जिनके नाम MP में सबसे लंबे समय तक सीएम बने रहने का रिकॉर्ड है वे भी आजतक इछावर किसी कार्यक्रम से नहीं गए। हालांकि कई ऐसे अवसर थे यहां बतौर मुख्यमंत्री उनका जाना जरूरी था। कई साल पहले इछावर तहसील के शाहपुरा गांव आकर सीआरपीएफ के शहीद कांस्टेबल ओमप्रकाश मरदानिया को श्रद्धांजलि देने भी तत्कालीन सीएम शिवराज इछावर कस्बे में नहीं गए थे। इसी साल मई के महीने में जब खराब मौसम की वजह से मुख़्यमंत्री का हेलिकॉप्टर उड़ान नहीं भर सका था तो उन्हें सड़क मार्ग से भोपाल आना पड़ा। रास्ते में इछावर कस्बा था। सीएम के वहां से गुजरने की जानकारी जैसे ही स्थानीय लोगों व नेताओं को लगी तो वे उनका स्वागत करने के लिए सड़क के दोनों ओर खड़े थे। सीएम शिवराज यहां से गुज़रे ज़रूर, लेकिन वह गाड़ी से नहीं उतरे और कार में बैठे-बैठे ही स्वागत करवाया।
इछावर आकर इन इन नेताओं ने गंवाई कुर्सी
इस मिथक में कितनी सच्चाई है और कितना अंधविश्वास ये तो कहना मुश्किल होगा लेकिन अब तक कैलाश नाथ काटजू इस मिथक के तहत मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवाने वाले पहले नेता थे। दरअसल जनवरी 1962 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. कैलाश नाथ काटजू एक कार्यक्रम में भाग लेने इछावर आए थे। इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई। इससे भी बड़ी बात यह कि कैलाश नाथ काटजू खुद सीएम होते हुए अपनी ही सीट से चुनाव हार गए थे।
- मार्च 1967 को तत्कालीन सीएम द्वारका प्रसाद मिश्र इछावर गए थे। कुछ ही समय बाद पार्टी में असंतोष के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
- 1977 में बीजेपी के कैलाश जोशी इछावर आए और 4 महीने बाद ही उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई।
- फरवरी 1979 को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरेंद्र कुमार सकलेचा इछावर गए लेकिन ठीक एक साल बाद उन्हें CM के पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
- नवंबर 2003 को तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी इछावर गए थे, लेकिन कुछ ही दिन बाद हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के साथ उन्हें सीएम पद से हाथ धोना पड़ा था।
क्यों माना जाता है इछावर को अशुभ
आज के वैज्ञानिक युग में इस मिथक में कितना सच है ये कहना तो मुश्किल होगा लेकिन कहा जाता है कि इछावर एक प्राचीन कस्बा हुआ करता था, आजादी के भी पहले यहां कहा जाता है कि एक राजा का महल भी बनाने का प्रयास किया गया है। यहां तंत्र विद्या में बड़ा ही सिद्ध माना जाता है। यहां चारों दिशाओं में शमशान भी बने हैं। उनके अवशेष भी हैं। यहां तांत्रिक क्रियाएं होती थीं, तो यह माना जाता है कि किसी और शक्तियों को यहां बर्दाश्त नहीं किया जाता है। इसलिए जो भी राजा या मुखिया यहां आता है तो शक्तियां उस पर हावी हो जाती है और उससे वह पद छिन जाता है।