SDM के समझाने के बाद पिता को भरण- पोषण का खर्चा देने को तैयार हुए बेटे

Edited By Jagdev Singh, Updated: 02 Nov, 2019 12:41 PM

after explaining sdm son is ready to pay for maintenance of father

अदालत की चौखट में न्याय के इंतजार में कई लोग बूढ़े हो जाते हैं, लेकिन न्याय का इंतजार तब भी रहता है ,लेकिन वही न्याय अगर कुछ घंटों में मिल जाए तो यही फैसले नजीर बन जाते हैं ,ये फैसला एसडीएम कोर्ट से हुआ है, लेकिन इस फैसले ने समाज को एक नई सीख दी और...

जबलपुर: अदालत की चौखट में न्याय के इंतजार में कई लोग बूढ़े हो जाते हैं, लेकिन न्याय का इंतजार तब भी रहता है ,लेकिन वही न्याय अगर कुछ घंटों में मिल जाए तो यही फैसले नजीर बन जाते हैं ,ये फैसला एसडीएम कोर्ट से हुआ है, लेकिन इस फैसले ने समाज को एक नई सीख दी और समाज पर सवाल भी खड़े किए ,एक पिता के चार पुत्र जब बड़े हुए तो पिता के जीवन के ही जंजाल बन गए ऐसे में इन बच्चों को सही राह पर लाने के लिए एसडीएम गोरखपुर आशीष पांडे ने बीड़ा उठाया।

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84 साल के गुलाब चंद्र साहू ने सपने में भी नहीं सोचा होगा एक वक्त ऐसा भी आएगा जिन बच्चों को उसने उनके पैरों पर खड़ा  किया बुढ़ापे में  वे उसके सहारे के काम न आएंगे, लेकिन वक्त बदला और जिन चार बच्चों के लिए उसने ये सब किया था वही उनको  ठेंगा दिखाकर प्रताड़ना देने लगे हाल ये हुआ की  84 साल की उम्र में गुलाब साहू के खाने के लाले पड़ गए। ऐसे में अब उसने अपने बच्चों से भरण पोषण के लिए बात की, लेकिन कोई भी बुढ़ापे में उसका साथ देने के लिए तैयार नहीं हुआ लिहाजा उसने एसडीएम कार्यालय गोरखपुर में भरण पोषण के लिए आवेदन दिया और मांग की कि उसके चार बेटों से उसे राहत राशि दिलाई जाए।

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वहीं आवेदन के बाद पहला दिन पेशी का आया और गुलाब चंद साहू के चार पुत्र छोटे लाल साहू विनोद साहू राजेंद्र साहू और संजू को बुलाया गया। चारों पुत्र एसडीएम आशीष पांडे के समक्ष खड़े हुए एसडीएम आशीष पांडे इसके पहले बुजुर्ग के हाल को जानते थे वह समझते थे कि बुढ़ापे में गुलाबचंद साहू की कोई मदद करने के लिए तैयार नहीं है लिहाजा उनके मन में यह तय था कि आज इन बच्चों को सबक सिखा कर ही घर भेजना है।

आशीष पांडे ने अपनी बात शुरू की और संस्कारों  का हवाला उन पुत्रों को दिया कि किस तरह बचपन से लेकर अब तक तुम्हारे पिता ने तुम को इस काबिल बनाया कि आज तुम पैसे कमाने के लायक बने तुम्हारे पिता ने तंगहाली में भी तुमको खुश रखा अपने जीवन से समझौता किया। वहीं जब वे उम्र के इस पड़ाव में आए तो तुमने पिता के साथ यह क्या कर दिया आशीष पांडे ने उनको बताया कि माता-पिता ही संसार में साक्षात भगवान हैं।

इस दौरान उन्होंने कहा कि अगर आप उनका तिरस्कार करेंगे तो आपको कहीं भी सुख नहीं मिल सकता। इसके बाद एसडीएम आशीष पांडे ने जब ये बातें उन बच्चों के सामने रखी तो उनको समझाया तो उनका मन पसीजा इसके बाद एसडीएम आशीष पांडे ने उनका वेतन जाना जो प्रति पुत्र का 6 हजार निकला लिहाजा आदेश दिया गया की आप चार भाई कुल 6000 महीना खर्च अपने पिता को देंगे इस पर सहमति जता दी गई।

वहीं बात आगे बढ़ी कि आखिर पिता की देखभाल कौन करेगा और पिता किसके पास रहेंगे इस पर भी चारों पुत्रों में मतभेद पैदा हो गया। वहीं आशीष पांडे ने वैदिक परंपराओं का हवाला दिया और कहा कि ज्येष्ठ पुत्र छोटेलाल साहू ही अपने पिता को अपने पास रखेंगे यह पहला मामला था जब पहली पेशी में उनके मामले का पटाक्षेप हो गया और पिता को राहत मिली।

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भरण पोषण अधिनियम के तहत एसडीएम कोर्ट में मामले लंबे वक्त तक चलते हैं लेकिन आशीष पांडे ने पहली पेशी में ही इसका पटाक्षेप कर दिया आशीष पांडे के मन में तभी आ गया था जब बुजुर्ग पिता उनके समक्ष उपस्थित हुए आशीष पांडे ने न केवल नैतिकता रीति रिवाज वैदिक परंपरा धर्मशास्त्र का हवाला दिया बल्कि कानून का डर भी दिखाया असर यह रहा कि सभी चीजों के परस्पर तालमेल से परिवार एक हुआ और पिता को भी राहत मिली।

एसडीएम आशीष पांडे के समक्ष भरण पोषण का दूसरा मामला गौतम की मढ़िया निवासी गीता बाई सोनी का था गीता बाई सोनी के मकान पर पुत्र कुलदीप सोनी ने अवैध कब्जा कर लिया था पुत्र के अवैध कब्जे से निजात दिलाने के लिए गीता बाई ने  एसडीएम के समक्ष आवेदन दिया था आज पहली पेशी थी डांट फटकार और समझाने के बाद पुत्र मकान खाली करने के लिए राजी हो गया और शाम तक उसने मकान खाली भी कर दिया।

अक्सर देखा जाता है की एसडीएम कोर्ट में मामले काफी पेंडिंग रहते हैं कुछ मामले ऐसे होते हैं अगर उस पर आपसी समन्वय तार्किक विश्लेषण किया जाए तो आसानी से मामलों का पटाक्षेप हो जाता है इन दोनों मामले को देखा जाए तो आशीष पांडे ने बेहतरीन समन्वय स्थापित किया और पुत्रों को उनके बाल्यकाल की बातों को याद दिलाई और आपसी प्रेम को जीवित किया इसका परिणाम रहा कि पहली पेशी में इस केस का पटाक्षेप हो गया। जहां पर भय की जरूरत हुई वहां उसका प्रयोग किया गया जहां आपसी तालमेल की जरूरत हुई वहां आपसी तालमेल बनाया गया ऐसे में साफ है कि अगर ऐसे ही फैसले किए जाएं तो ये नजीर बन जाते हैं।

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