क्या ग्वालियर छोड़ इंदौर या भोपाल से चुनाव लड़ेंगे सिंधिया? ग्वालियर में तोमर ठोक सकते हैं दावेदारी, तो गुना में केपी यादव बनेंगे राह का रोड़ा!

Edited By Vikas Tiwari, Updated: 17 Apr, 2023 06:36 PM

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क वक्त था, जब गुना शिवपुरी में सिंधिया परिवार का ही वर्चस्व था, लेकिन 2019 में केपी यादव से हारने के बाद वहां पर सिंधिया की लोकप्रियता पर तो सवाल उठे ही, बल्कि अब 2024 में वहां से सिंधिया की दावेदारी भी मुश्किल मानी जा रही है। फिलहाल तो वे राज्यसभा...

मध्यप्रदेश डेस्क: एक वक्त था, जब गुना शिवपुरी में सिंधिया परिवार का ही वर्चस्व था, लेकिन 2019 में केपी यादव से हारने के बाद वहां पर सिंधिया की लोकप्रियता पर तो सवाल उठे ही, बल्कि अब 2024 में वहां से सिंधिया की दावेदारी भी मुश्किल मानी जा रही है! फिलहाल तो वे राज्यसभा से सांसद और केंद्रीय मंत्री हैं। माना जा रहा है कि 2024 में बीजेपी उन्हें लोकसभा का चुनाव जरूर लड़वाएगी। लेकिन अब सिंधिया चुनाव कहां से लड़ेंगे, इस सवाल का जवाब थोड़ा मुश्किल होता जा रहा है। वो इसलिए क्योंकि गुना से टिकट की दावेदारी करके सिंधिया खुद से जीते हुए प्रत्याशी केपी यादव का पत्ता कटवाकर अपनी छवि खराब करना भी नहीं चाहेंगे, तो ऐसे में उनके सामने सिर्फ ग्वालियर ही एकमात्र रास्ता बचता है। लेकिन वहां पर भी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की दावेदारी उनके दावे को कमजोर करने का काम कर रही है। अब इस पहेली के बीच सवाल ये है, कि क्या भाजपा इंदौर लोकसभा सीट पर उन्हें मौका देगी? क्योंकि यहां पर सिंधिया के सामने सबसे मजबूत पहले उनका मराठा मूल है।  इससे पहले इंदौर से लगातार सांसद रही सुमित्रा महाजन भी मराठा वर्ग से ताल्लुक रखती थीं, सूत्रों की मानें, तो सिंधिया की कोशिश अपने उसी पहलू को आगे रखकर टिकट की दावेदारी करना है। गौर करने वाली बात ये है कि सिंधिया आजकल अपने बयान ट्वीट और अलग अलग सियासी स्टैंड में मराठाओं से जुड़े मुद्दे को जगह देने में कोई कसर भी नहीं छोड़ रहे हैं। बीते दिनों इंदौर में ज्योतिरादित्य और कैलाश विजयवर्गीय से गलबहियां और महाआर्यमन सिंधिया द्वारा कैलाश के पैर छूने के मसले को भी सिंधिया की इसी रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है।

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हालांकि इंदौर में भी सिंधिया की राह इतनी आसान नहीं है, भाजपा के पुराने दिग्गज कभी भी सिंधिया की एंट्री को इतनी आसान नहीं होने देंगे। जितना वो समझ रहे हैं, अगर ऐसा नहीं होता, तो उनके पास ले देकर एक मात्र विकल्प ग्वालियर का ही बचता है। लेकिन उधर मुरैना लोकसभा में एंटी इंकम्बेंसी से परेशान नरेंद्र तोमर भी ग्वालियर के लिए हाथ पैर मारते नजर आ रहे हैं। आए दिन तोमर ग्वालियर के दौरे करते देखे जाते हैं, तो वहीं खुद ग्वालियर के कुछ पुराने बीजेपी नेता व कार्यकर्ता भी सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद खफा खफा नजर आते हैं। जिसकी तस्वीर कई बार देखी जा चुकी है। लेकिन सिंधिया के इंदौर दौरे पर कैलाश के साथ जो उनकी जुगलबंदी देखी गई थी। उससे ये लगता है की सिंधिया भी इंदौर से चुनाव लड़ने के मूड में हैं। अगर ऐसा है तो इसके पीछे एक बड़ी वजह हो सकती है। वो ये कि अगर सिंधिया लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, तो ऐसी सीट चुनेंगे जो सुरक्षित हो, इस लिहाज से प्रदेश में उनके लिए इंदौर और भोपाल सबसे बेहतर साबित हो सकता है। क्योंकि ये दोनों सीटें भाजपा की परंपरागत सीटें हैं, भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर तो इंदौर से शंकर लालवानी सांसद हैं। यहां से सिंधिया को टिकट देना इसलिए भी भाजपा के लिए आसान है। क्योंकि ये दोनों पहली बार के सांसद हैं, और इन्हें इनकी लोकप्रियता के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से टिकट दी गई थी। ऐसे में यहां से सिंधिया को मैदान में उतारने पर भाजपा को किसी भी फूट और विरोध का खतरा नहीं होगा।

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अब आपको एक और बड़ी बात बताते हैं, कि अगर सिंधिया ग्वालियर से चुनाव न लड़ें, तो इसकी क्या वजह हो सकती है। इसका कारण ये है कि  गुना में सिंधिया को मिली करारी हार के बाद से अक्सर वहां औऱ ग्वालियर में सिंधिया के खिलाफ विरोध के सुर उठते रहे हैं। खुद कई भाजपा नेता भी सिंधिया गुट से खुश नहीं दिखते, भले ही ग्वालियर-चंबल क्षेत्र सिंधिया रियासत का अहम हिस्सा है। लेकिन चुनावी बात कुछ औऱ है।  दूसरी वजह ये भी है, कि ग्वालियर चंबल में कांग्रेस पहले से ज्यादा मजबूत हो रही है, और वहां मेहनत भी कर रही है। बीते कई दिनों से लगातार दिग्विजय और जयवर्धन सिंह वहां डटे हुए हैं। कांग्रेस हर हाल में सिंधिया के गढ़ में सेंध लगाने के लिए एड़ी चोटी का बल लगा रही है। तो ऐसे में सिंधिया अगर ग्वालियर से चुनाव लड़ते हैं, और दोबारा हार जाते हैं, तो ये हार उनके राजनीतिक करियर पर भी असर डालेगी, जो सिंधिया बिल्कुल भी नहीं चाहेंगे। तो ऐसा संभव है, की इस बार ज्योतिरादित्य सिंधिया इंदौर या भोपाल लोकसभा सीट से संसद पहुंचने का रास्ता खोज सकते हैं। इससे सिंधिया और खुद बीजेपी को भी फायदा होगा, वो ये कि सिंधिया का भी राजनीतिक प्रभाव बढ़ेगा, और प्रदेश के युवाओं के लिए भाजपा सिंधिया का इस्तेमाल भी कर सकेगी। खैर ये तो महज कयास हैं, उनकी और पार्टी की मर्जी है की वो कहां से चुनाव लड़ेंगे।  

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