शिवराज भी घिरे अंधविश्वास से, इस शहर में नहीं किया प्रचार

Edited By suman, Updated: 19 Nov, 2018 12:56 PM

shivraj did not even campaign in this city with

मध्यप्रदेश की राजनीति से कई मिथक जुड़ा हैं। लेकिन जब बात कुर्सी की होती है तब कोई भी नेता रिस्क लेना नहीं चाहता। प्रदेश का एक ऐसा ही शहर है अशोकनग। जहां सीएम पद पर रहते हुए बीजेपी और कांग्रेस के नेता जाने से डरते हैं। जो इस शहर में गया है उसे अपनी...

अशोकनगर: मध्यप्रदेश की राजनीति से कई मिथक जुड़ा हैं। लेकिन जब बात कुर्सी की होती है तब कोई भी नेता रिस्क लेना नहीं चाहता। प्रदेश का एक ऐसा ही शहर है अशोकनगर। कुर्सी छिन जाने के डर से सीएम पद पर रहते हुए बीजेपी और कांग्रेस के नेता यहां जाने से डरते हैं। धारणा है कि जो इस शहर में गया है उसे अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा। फिर चाहें यहां कोई बड़ा कार्यक्रम हो या फिर बैठक, मुख्यमंत्री रहते हुए यहां कोई नहीं जाना चाहता। इसी अंधविश्वास के चलते CM शिवराज सिंह प्रचार के लिए अशोकनगर नहीं गए। CM रविवार को अशोकनगर विधानसभा से BJP प्रत्याशी लड्डूराम कोरी के लिए अशोकनगर से बाहर जाकर वोट मांगे। उन्होंने मुंगावली तहसील के प्रत्याशी के लिए पिपराई गांव में एक जनसमूह को संबोधित किया। इसके अलावा चन्देरी विधानसभा की नईसराय तहसील में जाकर प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया।

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यह है कुछ उदाहरण
यह अंधविश्वास 1975 के बाद शुरू हुआ था जब मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी थे। इसी वर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री सेठी एक अधिवेशन में हिस्सा लेने अशोकनगर आए थे। इसके थोड़े दिन बाद ही 22 दिसंबर को उन्हें राजनीतिक कारणों से इस्तीफा देना पड़ गया। हालांकि यह पहली घटना थी, इसलिए किसी ने इस अंधविश्वास के बारे में नहीं सोचा था।

श्यामाचरण की भी गई कुर्सी
इसके बाद 1977 में श्यामाचरण शुक्ल मुख्यमंत्री थे और उनके भाई विद्याचरण शुक्ल केंद्र की राजनीति में सक्रिय थे। मुख्यमंत्री रहते हुए श्यामाचरण जब अशोकनगर के तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने आए। उसी के दो साल बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लग गया, तो उनकी भी कुर्सी जाती रही। तभी से इस अंध विश्वास ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया और नेताओं ने अशोक नगर जाने से परहेज करना शुरू कर दिया।

अर्जुन सिंह की भी गई कुर्सी
इस अंधविश्वास को मानने वाले बताते हैं कि जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह थे। 1985 के दौर में सियासत ऐसी चली कि कांग्रेस पार्टी ने अर्जुन सिंह को मध्यप्रदेश से अलग कर दिया और उन्हें पंजाब का राज्यपाल बना दिया।
जब मोतीलाल वोरा को छोड़ना पड़ी कुर्सी यह भी माना जाता है कि जब 1988 में कांग्रेस की सरकार थी और मोतीलाल वोरा मुख्यमंत्री थे। एक बार वे तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया के साथ रेलवे स्टेशन के फुट ओवर ब्रिज का उद्घाटन करने अशोकनगर स्टेशन आए थे। यह ब्रिज दोनों पर ही भारी पड़ा। थोड़े दिनों बाद ही मोतीलाल वोरा को कुर्सी छोड़नी पड़ गई।

पटवा की भी कुर्सी ऐसे गई
इसके बाद मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनी और मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा बने। इस मिथ को मानने वाले बताते हैं कि 1992 में पटवा जैन समाज के पंच कल्याणक महोत्सव में शामिल होने अशोक नगर आए थे। यह वही दौर था जब अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाया जा रहा था। चारों तरफ दंगे भड़क गए और राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इस दौरान पटवा की भी कुर्सी जाती रही।

दिग्विजय सिंह भी गए, हारी कांग्रेस
2003 में दिग्विजय सिंह अशोकनगर गए थे और उसी साल मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए थे। इन चुनावों में कांग्रेस की हार हुई थी और बीजेपी की सरकार बनी थी।

 

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