51 शक्तिपीठों में से एक उज्जैन में है माता हरसिद्धि का मंदिर, दीप जलाने से होती है हर मनोकामना पूरी

Edited By meena, Updated: 07 Oct, 2021 10:41 AM

one of the 51 shaktipeeths is the temple of mata harsiddhi in ujjain

51 शक्तिपीठों में से एक माता हरसिद्धि का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास स्थित है और माता हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी है। यह देवी के 51 शक्तिपीठों में से 13वां शक्तिपीठ है। यहां पर 1100 दीपमाला है एक साथ प्रज्वलित की जाती है। मान्यता है...

उज्जैन(विशाल सिंह): 51 शक्तिपीठों में से एक माता हरसिद्धि का मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास स्थित है और माता हरसिद्धि राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी है। यह देवी के 51 शक्तिपीठों में से 13वां शक्तिपीठ है। यहां पर 1100 दीपमाला है एक साथ प्रज्वलित की जाती है। मान्यता है कि जो भी भक्त अपनी मन्नत लेकर आता है वह मन्नत पूरी होने के बाद यहां पर चार डिब्बे तेल के भेंट करता है, जिससे 1100 दीप प्रज्वलित किए जाते हैं। वहीं माता हरसिद्धि मंदिर में भक्त अलग-अलग राज्यों से अपनी मन्नत लेकर यहां पर पहुंचते हैं।

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उज्जैन राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी माता हरसिद्धि यहां मंदिर महाकालेश्वर मंदिर के पास में हैं। एक तरफ शिव तो दूसरी तरफ शक्ति दोनों विराजित हैं। वही पीछे की ओर मां शिप्रा नदी भी बहती है। नवरात्रि प्रारंभ होते ही माता हरसिद्धि के मंदिर में भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है। सुबह से ही भक्त व्रत रख कर मां हरसिद्धि के दर्शन के लिए मंदिर पहुंच रहे हैं, कोई निर्जला व्रत रखता है तो कोई उपवासना तो कोई नंगे पैर।

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माता हरसिद्धि के इस नवरात्रि महोत्सव में लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए माता की आराधना करती हैं। वही शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए माता का व्रत करती हैं तो कुछ घर परिवार में सुख शांति बनी रखने के लिए व्रत करते हैं। यह सिलसिला अब 9 दिन तक लगातार चलता रहेगा। माता हरसिद्धि के मंदिर में भक्तों का जनसैलाब उमड़ रहा है। शाम के समय देव मालाएं प्रज्वलित की जाती है। इसे देखने के लिए वक्त बड़े आतुर दिखाई देते हैं।

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52 शक्तिपीठों में से एक है मां हरसिद्धि
राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें माता सती और शिव को निमंत्रण दिया गया जिसके बाद माता सती शिव की इजाजत के बिना यज्ञ में शामिल होने पहुंची तो राजा दक्ष ने सभी देवी देवता के सामने शिवजी का अपमान किया और जब माता सती से यह सब बातें नहीं हुई तो माता सती ने अपने आप को अग्नि के हवाले कर दिया जिसके बाद भगवान शिव क्रोध में आ गए और राजा दक्ष के यहां पहुंच गए। जब उन्होंने माता सती को अग्नि में जलते हुए देखा तो वह क्रोधित हो गए और माता हरसिद्धि को लेकर वन वन भटकते रहे।

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सभी देवी देवताओं ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि यदि भगवान शिव इस तरह भटकते रहेंगे तो पृथ्वी का विनाश हो जाएगा। भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के 51 टुकड़े कर दिए जो अलग-अलग स्थानों पर जाकर गिरे जिसके बाद भगवान शिव हर टुकड़ों को छूते गए और हर टुकड़ों के बाद वह शक्ति पीठ में परिवर्तन हो गए और उज्जैन का हरसिद्धि मंदिर भी एक का 1 शक्तिपीठों में एक है यहां माता हरसिद्धि की दाएं हाथ की कोहनी गिरी थी।

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