Edited By meena, Updated: 26 Apr, 2025 06:54 PM

खैरागढ़ जिले के घने जंगलों के बीच बसा एक गांव आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है...
खैरागढ़ (हेमंत पाल) : खैरागढ़ जिले के घने जंगलों के बीच बसा एक गांव आज भी विकास की मुख्यधारा से कोसों दूर है, नाम है- ग्वाल गुंडी। ये गांव छत्तीसगढ़ राज्य का आखिरी गांव है, जो मध्यप्रदेश की सीमा से सटा हुआ है। लेकिन यहां रहने वाले लोगों की ज़िंदगी देखकर ऐसा लगता है जैसे ये गांव आज़ादी के बाद से देश की नज़रों से ही ओझल हो गया हो। गांव में न बिजली है, न पक्की सड़क, न पानी की व्यवस्था। रात होते ही पूरे गांव पर अंधेरा छा जाता है। लोग लकड़ियां जलाकर रोशनी करते हैं। दिनभर पानी के लिए तालाबों और नदियों की तलाश में भटकते हैं। ज़रूरत की चीज़ें खरीदने के लिए गांव वालों को 15 किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है। बरसात के मौसम में हालात और भी बदतर हो जाते हैं, रास्ते की जगह कीचड़, नदी और नाले ले लेते हैं, जिन्हें पार करते समय कई बार लोग अपनी जान तक जोखिम में डालते हैं।
सबसे हैरानी की बात यह है कि इसी गांव से महज़ चार-पांच फीट की दूरी पर मध्यप्रदेश का गांव हर्राटोला बसा है। वहां बिजली के खंभे चमकते हैं, हर घर तक पानी की पाइपलाइन पहुंची है, पक्की सड़कें ना सही लेकिन सड़क पर पड़ने वाले पुल राज्य की आख़िरी सीमा तक बन चुके हैं। हर्राटोला के ग्रामीण सभी सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं, और इधर छत्तीसगढ़ के ग्वालगुंडी गांव के लोग सरकार की तरफ आज भी टकटकी लगाए बैठे हैं।

गांव के बुजुर्ग कहते हैं – “हमने कभी बिजली की रोशनी अपने घर में नहीं देखी। बच्चों को पढ़ाई करनी हो तो मशाल जलानी पड़ती है। इलाज के लिए भी हमें मीलों पैदल चलना पड़ता है।”कुछ महिलाएं बताती हैं–“हमारे सामने ही मध्यप्रदेश के लोग हर सुविधा का लाभ उठा रहे हैं, और हम बस देखते रह जाते हैं।”पूरे गांव की हालत देखकर यही लगता है जैसे यहां वक्त ठहर गया हो। गांव के बच्चों ने कभी टीवी नहीं देखा, और बुजुर्गों ने कभी अस्पताल का बिस्तर नहीं। यहां न कोई जनप्रतिनिधि आता है, न कोई अधिकारी। लगता है जैसे इस गांव का नाम सरकारी फाइलों से गायब ही कर दिया गया हो।

जब इस मामले पर जिला प्रशासन से बात की गई तो एडीएम प्रेम कुमार पटेल ने कहा कि ग्वालगुंडी पहाड़ी क्षेत्र में बसा गांव है। पहले यहां नक्सली गतिविधियां होती थीं, लेकिन अब ये इलाका नक्सल मुक्त हो चुका है। प्रशासन की कोशिश है कि आने वाले समय में यहां बेहतर सड़क, बिजली और पर्यटन की सुविधा विकसित की जाए। लेकिन सवाल यही है , जब पांच फीट की दूरी पर बसे गांव में सारी सुविधाएं पहुंच सकती हैं, तो फिर ग्वालगुंडी को अब तक क्यों नहीं मिल पाईं? क्या छत्तीसगढ़ के इस गांव का कसूर सिर्फ इतना है कि ये बॉर्डर के इस पार है?

ग्वालगुंडी की कहानी अकेले इस गांव की नहीं, बल्कि जिले में इस गांव जैसे आठ और गांव है जहां अब तक ना बिजली पहुंची और ना मूलभूत सुविधाएं, ऐसे में ज़मीनी हकीकत जो बताती है कि विकास अभी भी सबके हिस्से नहीं आया। सरकारें आती जाती रहीं, वादे होते रहे, लेकिन कुछ गांव आज भी वहीं के वहीं हैं, अंधेरे में, उपेक्षा में और इंतज़ार में।