देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़ी कार्रवाई: छत्तीसगढ़ में 22 अफसर सस्पेंड, CM साय के ‘जीरो टॉलरेंस’ मॉडल की हर तरफ चर्चा

Edited By Himansh sharma, Updated: 11 Jul, 2025 05:08 PM

the biggest action against corruption in the country

छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ने वो कर दिखाया है जो शायद आज़ाद भारत के इतिहास में कम ही देखने को मिला हो।

रायपुर। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की सरकार ने वो कर दिखाया है जो शायद आज़ाद भारत के इतिहास में कम ही देखने को मिला हो। एक ही दिन में आबकारी विभाग के 22 अधिकारियों को सस्पेंड करके राज्य सरकार ने यह साफ संदेश दे दिया है कि भ्रष्टाचार अब किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस कार्रवाई को न केवल छत्तीसगढ़ में बल्कि पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अब तक की सबसे बड़ी प्रशासनिक कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है।

यह निर्णय 3200 करोड़ रुपये के उस बहुचर्चित शराब घोटाले से जुड़ा है, जो पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल (2019–2023) में सामने आया था। आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा (EOW) द्वारा की गई जांच में यह पाया गया कि कई अफसरों ने बिना वैध लाइसेंस और शुल्क अदा किए शराब बेचने की अनुमति दी। इससे सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ, और अफसरों ने कथित तौर पर ₹80 से ₹88 करोड़ की अवैध कमाई (कमीशन) की।

अब तक इस मामले में कुल 29 अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है, जिनमें 7 सेवानिवृत्त अधिकारी भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री साय ने स्पष्ट किया है कि कोई भी कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, अगर उसने जनता के विश्वास के साथ धोखा किया है, तो कानून से नहीं बच सकता।

इस कार्रवाई को देखकर एक बात तो तय है — छत्तीसगढ़ में अब ‘क्लीन गवर्नेंस’ सिर्फ़ नारा नहीं, हकीकत बन रहा है। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को केवल कागज़ों तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उसे ज़मीन पर उतारा है।

सरकार की नीति सिर्फ़ पूर्ववर्ती सरकार की गड़बड़ियों की जांच तक सीमित नहीं है। वर्तमान प्रशासनिक ढांचे को भी पारदर्शी, कुशल और जवाबदेह बनाने के लिए सरकार ने कई तकनीकी सुधार लागू किए हैं। जैसे, ई-ऑफिस प्रणाली, मुख्यमंत्री जनसुनवाई ऑनलाइन पोर्टल, और विभिन्न विभागीय मोबाइल ऐप्स के ज़रिए सरकारी कामकाज को डिजिटल बनाया गया है। इससे न केवल फाइलों की प्रक्रिया तेज़ हुई है, बल्कि जनता की शिकायतों का निपटारा भी त्वरित और ट्रैक करने योग्य बन गया है।

सरकार की निगरानी प्रणाली भी अब पूरी तरह डिजिटल हो चुकी है। योजनाओं के क्रियान्वयन की जमीनी स्तर पर तकनीकी सत्यापन हो रहा है, जिससे हर एक गड़बड़ी पर नजर रखी जा रही है और समय रहते कार्रवाई हो रही है। यानी अब गड़बड़ी सिर्फ़ पकड़ी ही नहीं जा रही, बल्कि उसका डिजिटल रिकॉर्ड भी बनाया जा रहा है — जो आगे भ्रष्टाचार की गुंजाइश को भी खत्म करेगा।

भ्रष्टाचार के खिलाफ छत्तीसगढ़ सरकार की यह कार्रवाई केवल आबकारी विभाग तक सीमित नहीं है। हाल के हफ्तों में फ्लाइंग स्क्वॉड की मदद से बलौदाबाज़ार, महासमुंद और राजनांदगांव जिलों में अवैध शराब के भंडारण और तस्करी के खिलाफ छापेमारी की गई है। इन कार्रवाइयों के तहत कुछ सर्कल इनचार्ज अधिकारियों को निलंबित किया गया, जबकि छह वरिष्ठ अधिकारियों को कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं। प्रशासनिक स्तर पर इस तरह की मुस्तैदी से यह संकेत मिलता है कि राज्य सरकार सिस्टम में मौजूद कमजोर कड़ियों की पहचान कर रही है और संस्थागत सुधारों की दिशा में आगे बढ़ रही है।

मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुवाई में हुई इन कार्रवाइयों ने राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा पैदा की है। जहां सरकार इसे ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति की पुष्टि बता रही है, वहीं विपक्ष इसे पूर्ववर्ती सरकार के खिलाफ लक्षित कार्रवाई करार दे रहा है। लेकिन ज़मीनी स्तर पर देखा जाए तो इन कार्रवाइयों ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या अब राज्य में सिर्फ़ भ्रष्टाचार की पहचान ही नहीं, बल्कि उसकी समयबद्ध जवाबदेही तय करना भी शासन की प्राथमिकता बन चुका है?

यह भी साफ है कि सख़्ती के ये कदम केवल बयानबाज़ी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि इसे नीति, निगरानी और क्रियान्वयन के ज़रिये संस्थागत रूप दिया जा रहा है। हालांकि, इन कार्रवाइयों की राजनीतिक टाइमिंग और असर को लेकर विश्लेषक अलग-अलग राय रखते हैं, लेकिन इतना तो तय है कि छत्तीसगढ़ की यह मॉडल कार्रवाई अब अन्य राज्यों के लिए भी एक संकेत और दबाव का कारण बन सकती है।

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