Edited By meena, Updated: 31 Aug, 2022 05:22 PM
गणेश चतुर्थी के महापर्व पर देशभर में घर घर गणपति विराजित किए जा रहे हैं। ऐसे में आज हम आपको ऐसे गणेश प्रतिमा की दर्शन करा रहे हैं जो विश्व भर में विख्यात है। इस मंदिर को बारसूर गणेश मंदिर कहा जाता है, छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर ग्राम में...
बस्तर(सुमित सेंगर): गणेश चतुर्थी के महापर्व पर देशभर में घर घर गणपति विराजित किए जा रहे हैं। ऐसे में आज हम आपको ऐसे गणेश प्रतिमा की दर्शन करा रहे हैं जो विश्व भर में विख्यात है। इस मंदिर को बारसूर गणेश मंदिर कहा जाता है, छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बारसूर ग्राम में स्थित यह मंदिर 11वीं शताब्दी में छिंदक नागवंश के राजा बाणासुर ने स्थापित किया था, यह प्रतिमा विश्व की तीसरी सबसे बड़ी प्रतिमा है, और पूरे विश्व में केवल बारसूर में ही भगवान गणेश की जुड़वा प्रतिमा है। जिसे देखने देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। इस मंदिर को मामा भांजा मंदिर भी कहा जाता है।
देवनगरी बारसूर दंतेवाड़ा शहर से करीब 31 किलोमीटर दूर और छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब 390 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। बारसूर ग्राम को इसलिए देव नगरी कहा जाता है, क्योंकि यहां रियासत काल में 147 तालाब और 147 मंदिर हुआ करते थे, जो अपने आप में ऐतिहासिक है। इन मंदिरों में जो विशेष मंदिर है वह आज भी मौजूद हैं। जिन्हें पुरातत्व विभाग ने संरक्षण और संवर्धन कर रखा है। उनमें से ही एक भगवान गणेश का मंदिर है। इस मंदिर में भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा साढ़े 7 फीट ऊंची है, और दूसरी प्रतिमा साढ़े 5 फीट ऊंची है।
यह दोनों मूर्तियां मोनोलिथिक है, यानि कि एक चट्टान को बिना कांटे छांटे और बिना जोड़े तोड़े बनाई गई है। इन मूर्तियों को बनाने में कलाकार ने गजब कलाकारी दिखाई है। जहां एक मूर्ति में भगवान गणेश ने लड्डू छुपाके या संभाल के रखे हैं, तो वहीं दूसरी मूर्ति में बप्पा इन लड्डुओं का भोग लगा चुके हैं। कलाकार ने एक ही पत्थर में दो अलग-अलग भाव दर्शा दिए हैं, यह दोनों मूर्तियां बालू यानी रेत की चट्टानों से बनाई गई है।
मंदिर को लेकर एक किंवदती है कि राजा बाणासुर की बेटी उषा और उनके मंत्री कुभांडु की बेटी चित्रलेखा दोनों जिगरी सहेलियां थी और दोनों भगवान गणेश की परमभक्त थी, राजा बाणासुर ने इनके लिए ही एक ही पत्थर में दो विशालकाय गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कराया था, जहां हर रोज दोनों पूजा पाठ के लिए आया करती थी, आज हजारों साल बीतने के बावजूद भी यहां आसपास के गांव के साथ ही देश और विदेशों से भी बड़ी संख्या में पर्यटक इस विशालकाय प्रतिमा को देखने बारसूर गणेश मंदिर पहुंचते हैं।