कोरोना का ऐसा खौफ कि कोई कंधा देने भी नहीं आया...मां के शव के पास अकेली बैठी रही बेटी

Edited By meena, Updated: 19 Apr, 2021 04:57 PM

corona s awe that no one came to give her shoulder

कोरोना सकंट के बीच इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसकी कल्पना करना भी बेहद दर्दनाक है। कोरोना का ऐसा खौफ कि इसके सामने इंसानियत और हमदर्दी जैसे शब्‍द बौने लगने लगे हैं। दिल को झकझोर देने वाली ऐसी घटना जबलपुर के रांझी से...

जबलपुर: कोरोना सकंट के बीच इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली ऐसी तस्वीर सामने आई है जिसकी कल्पना करना भी बेहद दर्दनाक है। कोरोना का ऐसा खौफ कि इसके सामने इंसानियत और हमदर्दी जैसे शब्‍द बौने लगने लगे हैं। दिल को झकझोर देने वाली ऐसी घटना जबलपुर के रांझी से सामने आई है। यहां बुजुर्ग मां की मौत के बाद उनकी बेटी और 8 साल की नातिन पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। महिला की मौत की खबर सुनते ही मोहल्ले वालों ने अपने घरों की खिड़की-दरवाजे बंद कर लिए किसी ने कोई मदद नहीं की।

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जानकारी के मुताबिक, नई बस्ती रांझी निवासी गीता रामटेके (70) किराए के मकान में रहती थी। शुक्रवार को उसकी तबीयत अचानक खराब हो गई। महिला को उल्टी-दस्त की शिकायत थी जिसके बाद उसकी बेटी ललिता मां को विक्टोरिया अस्पताल ले गई। वहां डॉक्टरों ने इलाज के बाद कोरोना का सैंपल लिया। गीता के शरीर में ऑक्सीजन का स्तर काफी घट गया था, जिसके बाद उन्हें सांस लेने में कठिनाई हो रही थी। रविवार सुबह छुट्‌टी दे दी। बेटी मां को लेकर घर पहुंची। घर पहुंचने के थोड़ी देर बाद गीता की मौत हो गई।

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महिला की मौत की खबर पड़ोसियों को लगी तो उन्होंने मदद के लिए आगे आने की बजाय अपने घरों की खिड़की और दरवाजे तक बंद कर लिए। बेटी अपनी मां के शव के पास 2-3 घंटे बैठी रही। 8 महीने की नातिन भी मां के शव के पास बैठी बैठी सो गई। लेकिन कांधा देने के लिए कोई नहीं आया। इस बीच बेटी ने निगम से लेकर कई स्वयंसेवी संस्थाओं को मदद के लिए फोन भी लगाए। लेकिन किसी ने एक न सुनी। उसके पास इंतजार करने के अलावा कोई चारा नहीं था।

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इलाके के युवक बने फरिश्ता
घटना की खबर इलाके के कुछ युवकों को मिली तो वे बिना देरी किए परिवार की मदद करने आगे आए। कोरोना से भी बचना था और महिला की भी मदद करनी थी इस बीच उन्होंने आपस में मिलकर दो पीपीई-किट की व्यवस्था की। युवाओं का हौसला देख मकान मालिक भी आगे आए। अर्थी का प्रबंध किया गया। लेकिन फिर बड़ी समस्या यह थी कि शव को श्मशान घाट कैसे पहुंचाए। कोई भी वाहन चालक चलने को तैयार नहीं था।

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जहां भी युवकों ने सूझबूझ से काम लिया और एक दोस्त की लोडिंग गाड़ी बुलवाई। ललिता को हौसला दिया। संक्रमण के खौफ के बीच वृद्धा को कांधा दिया। इसके बाद शव को कोविड प्रोटोकॉल के तहत मुक्तिधाम ले गए। जहां बेटी ने अपनी मां को मुखाग्नि दी।

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