किसानों की दयनीय स्थिति के लिए क्या कर्जमाफी ही एक मात्र विकल्प है ?

Edited By Vikas kumar, Updated: 21 Dec, 2018 03:53 PM

is debt forgiveness the only option for the miserable situation of farmers

देश में वर्तमान समय में सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने वाली खबर किसानों की कर्जमाफी है। राजनीतिक पार्टियों के लिए ये एक ऐसा मुद्दा बन चुका है जिसके कारण किसी भी राजनीतिक पार्टी का चुना....

भोपाल: देश में वर्तमान समय में सबसे ज्यादा सुर्खियों में रहने वाली खबर किसानों की कर्जमाफी है। राजनीतिक पार्टियों के लिए ये एक ऐसा मुद्दा बन चुका है जिसके कारण किसी भी राजनीतिक पार्टी का चुनाव में जीतने का रास्ता साफ हो जाता है। हाल हीं में हुए तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा जोरो शोरों से उछाला गया था। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को अपने घोषणा पत्र में भी जगह दी, जिसका परिणाम यह रहा कि, कांग्रेस तीनों राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सरकार बनाने में कामयाब रही। 


 

पहली बार वीपी सिंह ने की थी कर्जमाफी 
 

किसानों के लिए पहली कर्जमाफी 1990 में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह सरकार ने की थी। उन्होंने देश में किसानों का कुल 10 हजार करोड़ रुपए तक का कर्ज माफ किया था। इसके 24 सालों के बाद कर्जमाफी को राजनीतिक पार्टियों ने चुनाव जीतने का फॉर्मूला बना लिया। 2014 के बाद से कई राज्यों ने किसानों की कर्जमाफी की।
 

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इन राज्यों में कर्जमाफी ही बना कांग्रेस की जीत का कारण
 

हाल ही में तीन राज्यों मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस वादे ने कांग्रेस की वापसी करा दी। वहीं जीत से गदगद मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों ने तो शपथ ग्रहण के कुछ ही घंटों बाद कर्जमाफी का ऐलान कर दिया। राजस्थान में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तीन दिन बाद बुधवार को इस वादे को पूरा किया। राजस्थान में भी 2 लाख रुपए तक के कर्ज माफ किए जाने की बात कही गई है, इससे राज्य सरकार पर 18 हजार करोड़ रुपए का खर्च आएगा। वहीं मध्य प्रदेश में 35 हजार करोड़ रुपए और छत्तीसगढ़ में 61 सौ करोड़ की कर्ज माफी का ऐलान हुआ है। तीन राज्यों के अलावा असम में बीजेपी सरकार ने 25 हजार करोड़ रुपऐ कर्जमाफ किए हैं।

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पिछले पांच वर्षों में कब कहां और कितनी कर्जमाफी

  • 2014 में आंध्र प्रदेश सरकार ने किसानों का करीब 40 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया। 
  • 2016 में तमिलनाडु में किसानों का 5 हजार 780 करोड़ रुपए कर्जमाफ किया गया।
  • 2017 अप्रैल में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने किसानों का 36 हज़ार करोड़ रुपए कर्जमाफ किया।
  • 2017 जून में महाराष्ट्र में फड़णवीस सरकार ने किसानों के 34 हज़ार करोड़ रुपए की कर्जमाफी का एलान किया।
  • 2017 जुलाई में कर्नाटक में भी किसानों का 34 हज़ार करोड़ रुपए करोड़ कर्ज माफ किया गया।
  • 2017 सितंबर में राजस्थान में किसानों का 20 हज़ार करोड़ रुपए कर्ज माफ करने की घोषणा की गई। 
  • 2017 सितंबर में ही पंजाब में अमरिंदर सिंह के द्वारा 10 हज़ार करोड़ रुपए कर्जमाफ करने की घोषणा की गई। 
  • तेलंगाना में भी 17 हजार करोड़ कर्ज माफ किया जा चुका है।
  • 2018 में दिसंबर माह में कांग्रेस शासित तीन राज्यों राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में किसानों की कर्जमाफी की गई।


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ये राज्य पहले से ही डूबे हैं कर्ज में

  • मध्यप्रदेश पर कुल 1.11 लाख करोड़ का कर्ज है
  • पंजाब पर 1.25 लाख करोड़ का कर्ज है
  • उत्तरप्रदेश पर करीब 3.75 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।
  • महाराष्ट्र पर 3.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है.


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क्या जायज है किसानों की कर्जमाफी ? 
 

देश में किसानों की दयनीय स्थिति पर सरकार के द्वारा दी जा रही मदद बिल्कुल जायज है। लेकिन किसानों की इस स्थिति का क्या सिर्फ कर्जमाफी ही एक उपाय है ? इस पर एक सवाल यह भी उठता है कि, क्या कर्जमाफी का फायदा सिर्फ हकदार किसानों को ही मिल पा रहा है। इस मामले में विश्लेषण करने पर कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आईं हैं। कर्जमाफी का फायदा ऐसे किसान भी उठा ले जाते हैं जो इसके हकदार हैं ही नहीं। तो क्या सभी सरकारों को कर्जमाफी का विकल्प नहीं तलाशना चाहिए ? क्योंकि किसानों की दयनीय स्थिति को मिटाने के लिए कर्जमाफी ही एक मात्र रास्ता नहीं है। लेकिन वर्तमान सरकारों ने किसानों की कर्जमाफी को सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक मुद्दा बना लिया है यह मुद्दा आज किसी भी राज्य में चुनाव जीतने का एक आसान फॉर्मूला बन चुका है। चाहे पंजाब हो, उत्तरप्रदेश हो, मध्यप्रदेश हो, राजस्थान हो, महाराष्ट्र हो या छत्तीसगढ़ हो इन सभी राज्यों में चुनाव से पहले किसानों की कर्जमाफी को मुद्दा बनाकर ही पार्टियां सरकार में आईं। 


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नीति आयोग ने भी दिए कर्जमाफी के संकेत
 

तीन राज्यों (मध्यप्रदेश, राजस्थान औऱ छत्तीसगढ़) में किसानों की कर्जमाफी के बाद नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने एक मीडिया चैनल से बात करते हुए कहा कि, अगर पूरे देश में ऐसे हालात होते हैं कि कर्जमाफी जरूरी है तो केंद्र सरकार इस बारे में सोचेगी। एक बार ये फैसला 2008 में हो चुका है। अगर जरूरी हुआ तो इस मसले पर कम से कम बात तो हो ही सकती है। इस प्रस्ताव पर विचार संभव है।

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