Video: दुनिया का सबसे डरावना मां धूमावती का मंदिर, जहां सिर्फ विधवा महिलाएं कर सकती है प्रवेश

Edited By meena, Updated: 26 Mar, 2020 08:55 PM

अब तक आपने अनेक देवी-देवताओं और उनकी मान्यताओं के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको ऐसी देवी के बारे में बता रहे हैं जिनके रूप के पीछे अनोखी कहानी है। उनका रूप अन्य देवियों की तरह सुहागन और अति लुभावना नहीं, बल्कि डरावना और क्रूर है। यह विधवा हैं...

दतिया(नवल यादव): अब तक आपने अनेक देवी-देवताओं और उनकी मान्यताओं के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको ऐसी देवी के बारे में बता रहे हैं जिनके रूप के पीछे अनोखी कहानी है। उनका रूप अन्य देवियों की तरह सुहागन और अति लुभावना नहीं, बल्कि डरावना और क्रूर है। यह विधवा हैं लेकिन कहा जाता है कि यहां आने वाले भक्तों की हर मुराद मां पूरी करती हैं। इनका पूजन सिर्फ विधवाएं ही कर सकती हैं। लेकिन सुहागिन महिलाएं अपनी पति और पुत्र की लंबी आयू के लिए दूर से प्रार्थना कर सकती हैं। वहीं इस मंदिर की मान्यता का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि आम आदमी के अलावा बड़े बड़े नेता भी यहां दर्शन करने आते हैं।

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मां धूमावती का मंदिर का यह मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में प्रसिद्ध शक्तिपीठ पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में स्थित है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां से कोई खाली झोली नहीं जाता है। पूरे भारत में मां धूमावती का एक मात्र मन्दिर है यहां से कोई पुकार कभी अनसुनी नहीं जाती। राजा हो या रंक, मां सभी पर एक समान कृपा बरसातीं हैं। वहीं मां धूमावती श्वेत वस्त्र धारिणी है और इनका वाहन कौवा माना जाता है। मां धूमावती का अवतार पापियों के नाश के लिए हुआ। शरीर से उठते धुएं के कारण ही इनका नाम धूमावती पड़ा। वे इस धुएं के जरिए राक्षसों का नाश करती हैं। दुर्वासा की मूल शक्ति इन्हीं को माना गया है। इस मंदिर की सबसे खास बात ये है कि भक्तों के लिए धूमावती का मंदिर शनिवार को सुबह-शाम 2 घंटे के लिए खुलता है और भक्तों को मां धूमावती के दर्शन का सौभाग्य सिर्फ आरती के समय ही प्राप्त होता है। क्योंकि बाकी समय मंदिर के कपाट बंद ही रहते हैं।

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मंदिर में मां धूमावती की आरती सुबह-शाम होती है। मंदिर में विराजित मां की शोभा देखते ही बनती है। मंदिर में मां पीतांबरा चर्तुभुज रूप में विराजमान हैं। देवी के एक हाथ में गदा दूसरे में पाश तीसरे में वज्र और चौथेै हाथ में उन्होंने राक्षस की जिह्वा थाम रखी है। मां के चमत्कार को भक्तों के जीवन में आसानी से देखा जा सकता है। मां के दरबार में जो आता है, उसे दर्शन और आशीर्वाद दोनों प्राप्त होता है। मां धूमावती के दरबार में भक्तों को दर्शन मंदिर में लगी एक छोटी से खिड़की से ही होते हैं। भक्तों को मां धूमावती की प्रतिमा को स्पर्श करना वर्जित है। स्थानीय लोगों के अनुसार पीठ के परिसर में मां धूमावती की स्थापना न करने के लिए अनेक विद्वानों ने स्वामीजी महाराज से आग्रह किया था। तब स्वामी जी ने कहा कि- "माँ का भयंकर रूप तो दुष्टों के लिए है। भक्तों के प्रति ये अति दयालु हैं। जब मां पीताम्बरा पीठ में मां धूमावती की स्थापना हुई थी। उसी दिन स्वामी महाराज ने अपने ब्रह्मलीन होने की तैयारी शुरू कर दी थी। ठीक एक वर्ष बाद मां धूमावती जयन्ती के दिन स्वामी महाराज ब्रह्मलीन हो गए।

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बताया जाता है कि, मां बगलामुखी ही पीताम्बरा देवी का स्वरुप हैं, इसलिए यहां मंदिर में मां पीतांबरा को पीली वस्तु चढ़ाई जाती हैं। मां को प्रसन्न करने व अपनी मुराद मांगने के लिए उनके लिए विशेष अनुष्ठान करना पड़ता है। कहा जाता है की विधि-विधान से अनुष्ठठान कर लिया जाए तो मां जल्द ही मुरादें पूरी कर देती हैं। मां पीताम्बरा को राजसत्ता की देवी माना जाता है और इसी रूप में भक्त उनकी आराधना करते हैं। मां पीताम्बरा के इस मंदिर में भक्त दूर दूर से आते हैं। मां की महिमा गाते हैं और अपनी झोली भरकर चले जाते हैं।

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