Edited By meena, Updated: 04 Feb, 2021 03:21 PM
''ये हाथ हमको दे दे ठाकुर'' यह डायलॉग आपने 1975 में रिलीज हुई सुपर डुपर हिट फिल्म ''शोले'' में सुना होगा। इस फिल्म में खूंखार डकैत ''गब्बर'' की भूमिका निभाने वाले अमजद खान ''ठाकुर बलदेव'' की भूमिका निभा रहे संजीव कुमार का अपहरण कर लेते हैं और फिर...
भिंड(योगेंद्र भदौरिया): 'ये हाथ हमको दे दे ठाकुर' यह डायलॉग आपने 1975 में रिलीज हुई सुपर डुपर हिट फिल्म 'शोले' में सुना होगा। इस फिल्म में खूंखार डकैत 'गब्बर' की भूमिका निभाने वाले अमजद खान 'ठाकुर बलदेव' की भूमिका निभा रहे संजीव कुमार का अपहरण कर लेते हैं और फिर उनके दोनों हाथ काट देते हैं। यह तो थी फिल्म की बात लेकिन असल जिंदगी में भी ऐसा हुआ है चंबल के भिंड जिले में। यहां पर टकपुरा गांव के रहने वाले लाखन सिंह पुत्र नवल सिंह के दोनों हाथ वर्ष 1979 में डकैत रहे छोटे सिंह ने काट दिए थे। यही नहीं डकैत छोटे सिंह ने उनकी नाक भी काट दी थी।
1979 में जिंदगी भर के लिए अपाहिज हुए नवल सिंह की कहानी बेहद दर्द भरी है। उस समय उनकी उम्र महज 21 साल थी। बतौर लाखन सिंह डकैत छोटे सिंह से उनकी कोई दुश्मनी नहीं थी। लेकिन उनके बहनोई का विवाद जरूर उससे चल रहा था। 1979 में जब वह मल्लपुरा गांव से अपने गांव टकपुरा जा रहे थे तभी डकैत छोटे सिंह ने अपने आधा दर्जन से अधिक साथियों के साथ उन्हें घेर लिया। जिसके बाद उनकी घंटों तक बेरहमी से पिटाई की और फिर तलवार से उनके दोनों हाथ और नाक काट कर छोड़ दिया। तब से वह अपाहिज की जिंदगी बिता रहे हैं। हालांकि कुछ साल बाद ही पुलिस एनकाउंटर में डकैत छोटे सिंह मारा गया। फिलहाल लाखन अपनी पत्नी के साथ भाइयों के यहां रहकर ही गुजारा कर रहे हैं।
दस्यु पीड़ित होने के चलते अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्री काल में लाखन सिंह को वर्ष 1988 में 5 सौ रुपये की पेंशन स्वीकृत की गई थी ताकि वह अपनी गुजर-बसर कर सकें। उस समय 500 रुपये अच्छी खासी रकम थी। लेकिन 8 साल पहले उनकी पेंशन बंद कर दी गई। पेंशन बंद होने से लाखन सिंह काफी दुखी हैं। वह कहते हैं कि जिन डकैतों ने कई लोगों को लूटकर मारकर बाद में आत्मसमर्पण किया उन्हें तो सारी सुख सुविधाएं दी गई। लेकिन उन डकैतों से पीड़ित लोगों को कुछ नहीं दिया गया। लाखन सिंह को केवल 8 किलो गेहूं और 2 किलो चावल प्रतिमाह के अलावा शासन की ओर से कोई अन्य सहायता नहीं मिल रही। ना तो उन्हें उज्जवला योजना के तहत रसोई गैस मिली और ना ही प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उन्हें घर मिल सका।
यही नहीं शौचालय के नाम पर उनके घर में गड्ढा खोदकर छोड़ दिया गया था, लेकिन शौचालय का निर्माण नहीं किया गया। लाखन सिंह तीन भाई हैं जिन पर महज डेढ़ बीघा जमीन है। ऐसे में अपनी दयनीय स्थिति बताते बताते लाखन सिंह की आंखें भी भर आती हैं। अब लाखन सिंह सभी से यही गुहार लगा रहे हैं कि कोई तो उनकी मदद करवा दें। लाखन सिंह की पत्नी भी कोई सुविधा ना होने से अभावों में जिंदगी बसर कर रही हैं। यहां तक कि वह अपने और पति के लिए आटा भी कई बार पुराने जमाने की हाथ चक्की पर ही गेहूं पीसकर तैयार करती हैं।