नैयर दमोही दुनिया से हुए रुखसत: अच्छे इंसानों की पहचान यही है नैयर, बाद मरने के...

Edited By meena, Updated: 12 Dec, 2019 12:46 PM

nayyar damohi turned to the world

अच्छे इंसान की पहचान यही है नैयर, बाद मरने के उसे याद किया जाता है। ऐसी ही दिलकश उर्दू शेरो-शायरी से दुनियाभर में नाम कमाने वाले बेहतरीन शायर हाजी नैयर दमोही अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका हृदय गति रुक जाने से इंतक़ाल हो गया। वे काफी दिनों से बीमार चल...

दमोह(इम्तियाज चिश्ती): अच्छे इंसान की पहचान यही है नैयर, बाद मरने के उसे याद किया जाता है। ऐसी ही दिलकश उर्दू शेरो-शायरी से दुनियाभर में नाम कमाने वाले बेहतरीन शायर हाजी नैयर दमोही अब हमारे बीच नहीं रहे। उनका हृदय गति रुक जाने से इंतक़ाल हो गया। वे काफी दिनों से बीमार चल रहे थे। उनके जाने के बाद देश भर के साहित्यकारों में और उर्दू अदब में ग़म का माहौल है। उस्ताद शायर हाजी नैयर दमोही को दमोह में उनके गुरु पीरो मुर्शिद 'ख़्वाजा अब्दुलस्लाम चिश्ती साहब' के आस्ताने के पास ही चिश्ती नगर में सुपुर्दे ख़ाक किया गया।

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मेरी नज़रों से ओझल उनका जलवा हो नहीं सकता
किनारे से जुदा हो जाये दरिया हो नहीं सकता
हमसे वादा तो वफाओं का किया जाता है
वक़्त पड़ता है तो मुँह फेर लिया जाता है
कुछ ऐसा नवाज़ा है हुजूर आपने मुझको
सब मेरे मुकद्दर की तरफ देख रहे है

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बेहतरीन शायरी के लिए पहचाने जाने वाले नैयर दमोही का जन्म 1 जुलाई 1940 में हुआ था। नैयर साहब ने 1982 में ऑल वर्ड नात कांफ्रेंस में पाकिस्तान में भारत का नेतृत्व किया था। नैयर साहब की 6 किताबें प्रकाशित हुई जिसमें प्रसिद्ध ग़ज़ल संग्रह 'शुआ-ए-नैयर' मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा प्रकाशित किया गया। इसके अलावा मध्यप्रदेश शासन के उर्दू अकादमी ने देश के प्रसिद्ध शायर 'निदा फ़ाज़ली सम्मान' से भी सम्मानित किया गया था।

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नैयर साहब के लिखे कलाम देश भर के क़व्वाल पढ़ते हैं जिसमे देश के बड़े दीनी जलसों में बड़े ही अदब और शौक़ से सुना जाता था, नैयर साब के जाने के बाद पूरे प्रदेश के साहित्य जगत में ग़म का माहौल है। मध्यप्रदेश के छोटे से जिले दमोह से 1960 से अपनी शायरी की शुरुआत कर ना सिर्फ मध्यप्रदेश बल्कि देश विदेशों में भी अपने नाम के साथ-साथ जिले का मान बढ़ाया।

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हर शक़्स सूंघता है मुझे फूल की तरह
कितना तेरे ख़्याल ने महका दिया मुझे

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ख़ास बात ये रही कि शायर नैयर दमोही को उनके पीर की मज़ार शरीफ़ के पास ही दफनाया गया है। क्योंकि नैयर साहब की शेरो शायरी से उनके पीर की मोहब्बत का इज़हार होता है। जिस तरह से दिल्ली के महान सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के परम शिष्य हज़रत अमीर ख़ुशरो को जगह मिली और उनकी कब्र उनके पीरो मुर्शिद के करीब बनी, ठीक उसी तरह दमोह में महान सूफी संत हज़रत ख़्वाजा अब्दुलस्लाम साहब चिश्ती की शान में कलाम लिखने वाले प्रसिद्ध शायर नैयर दमोही को भी अपने पीरो मुर्शिद के ठीक बगल में सुपुर्दे ख़ाक किया गया।

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इंदिरा गांधी ने पत्र लिख दी थी मुबारकबाद
1982 में नैयर साहब ने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में आयोजित ‘आलमी नात कॉन्फ्रेंस’ में हिस्सा लिया था। जहां 22 देशों के शायरों ने हिस्सा लिया। इसमें नैयर साहब को सेकंड प्राइज से नवाज़ा गया। इस शौहरत पर तत्कालीन प्रधान मंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने नैयर दमोही को पत्र लिखकर मुबारकबाद दी थी।

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