विशाखापट्टनम से ज्यादा खतरनाक था भोपाल गैस कांड, जब एक गैस ने खत्म कर दी थीं कई जिंदगियां

Edited By Vikas kumar, Updated: 08 May, 2020 12:30 PM

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आज से 35 साल पहले 3 दिसंबर 1984 की रात कुछ ऐसा ही हुआ था, जैसा 7 मई 2020 को विशाखापट्टनम में दिखाई दिया। आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एलजी पॉलीमर्स इंड...

मध्यप्रदेश डेस्क (विकास तिवारी): आज से 35 साल पहले 3 दिसंबर 1984 की रात कुछ ऐसा ही हुआ था, जैसा 7 मई 2020 को विशाखापट्टनम में दिखाई दिया। आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में एलजी पॉलीमर्स इंडस्ट्री से जहरीली गैस लीक हुई। जिससे चारों तरफ अफरा तफरी मच गई। न तो इंसानों को कुछ समझ आ रहा था और न ही जानवरों को। सब अचेत हो कर जमीन पर गिरते जा रहे थे। ठीक 3 दिसंबर 1984 की रात की तरह। जी हां, ऐसा ही मंजर 3 दिसंबर की रात को भी देखने को मिला था। जब रातों-रात लोग एक जहरीली गैस के आगोश में समा गए थे।

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विशाखा पट्टनम के वेंकटपुरम गांव में हुआ हादसा...
विशाखापट्टनम से करीब 30 किलोमीटर वेंकटपुरम गांव LG पॉलिमर फैक्ट्री में एक गैस लीक हुई। जिसमें 8 लोगों ने दम तोड़ दिया। वहीं 5000 हजार से अधिक लोग इसके चपेट में आए। स्थानीय पुलिस के साथ NDRF की टीम भी मौके पर पहुंची। वहीं लीक हुई गैस का खौफ कुछ ऐसा था, कि जल्द से जल्द आस पास के पांच गांवों को खाली करा दिया गया।

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3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में भी कुछ ऐसा ही हुआ था...
ये कोई पहली केमिकल त्रासदी नहीं है। इससे पहले भी मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में इससे भी कहीं ज्यादा खतरनाक हादसा हो चुका है। जिसमें लगभग 15 हजार से ज्यादा जानें गईं। भोपाल में हुई इस घटना को आज भी भोपाल गैस कांड या भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है। भोपाल में स्थित कंपनी यूनियन कार्बाइड की फर्टिलाइजर कंपनी में मिथाइल आइसोसाइनाइड नाम की गैस लीक हुई थी, जिसमें कई लोगों की जानें गईं। तो कई लोग आज भी उस गैस के असर से प्रभावित हैं।

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राजधानी भोपाल में रात 10:30 बजे शुरू हुई त्रासदी की शुरुआत...
3 दिसंबर 1984 की रात 8 बजे यूनियन कार्बाइड कारखाने की रात की शिफ्ट आ चुकी थी, जहां सुपरवाइजर और मजदूर अपना-अपना काम कर रहे थे। एक घंटे बाद ठीक 9 बजे करीब 6 कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइनलाइन की सफाई का काम करने के लिए निकल पड़ते हैं। उसके बाद ठीक रात 10 बजे कारखाने के भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई। इस दौरान एक साइड पाइप से टैंक E610 में पानी घुस जाता है। पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगता है, जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो जाता है। स्थिति को भयावह बनाने के लिए पाइपलाइन भी जिम्मेदार थी जिसमें जंग लग गई थी। जंग लगे आइरन के अंदर पहुंचने से टैंक का तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था। इससे टैंक के अंदर दबाव बढ़ता गया।

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और फिर 10 बज के 30 मिनट में वो हुआ, जो आज भी भुलाया नहीं जा सकता ...
रात 10:30 बजे टैंक से गैस पाइप में पहुंचने लगी। वाल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया और टैंक पर इमर्जेंसी प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी का रिसाव हो गया। रात 12:15 बजे वहां पर मौजूद कर्मचारियों को घुटन होने लगी। वाल्व बंद करने की बहुत कोशिश की गई लेकिन तभी खतरे का सायरन बजने लगा। जिसको सुनकर सभी कर्मचारी वहां से भागने लगे। इसके बाद टैंक से भारी मात्रा में निकली जहरीली गैस बादल की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गई। गैस के उस बादल में नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, मोनोमेथलमीन, हाइड्रोजन क्लोराइड, कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोजन सायनाइड और फॉसजीन गैस थीं। जहरीली गैस के चपेट में भोपाल का पूरा दक्षिण-पूर्वी इलाका आ चुका था। उसके बाद रात 12:50 बजे गैस के संपर्क में वहां आसपास की बस्तियों में रहने वाले लोगों को घुटन, खांसी, आंखों में जलन, पेट फूलना और उल्टियां होने लगी। देखते ही देखते चारों तरफ लाशों का अंबार लग गया कोई नहीं समझ पाया की यह कैसे हो रहा है।

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अब विशाखापट्टनम में स्टाइरीन गैस ने मचा दी तबाही...
विशाखापट्टनम में हुआ गैस रिसाव हादसा भोपाल की तरह खतरनाक तो नहीं था। लेकिन जिसने में भी अब तक इस हादसे के बारे में सुना उसे भोपाल गैस त्रासदी की याद आ गई। भोपाल में मिथाइल आइसोसाइनाइट जैसे खतरनाक गैस का रिसाव हुआ था, जबकि विशाखापट्टनम में  स्टाइरीन गैस का रिसाव हुआ है, जिससे इंसान भी मरे और जानवर भी, यहां तक की पेड़ पौधे भी मुरझा गए।

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क्या बनता है इस कंपनी में ...
विशाखापट्टनम में जानलेवा स्टाइरीन गैस का रिसाव जिस एलजी पॉलिमर इंडिया के कारखाने से हुआ वह दक्षिण कोरिया की केमिकल कंपनी LG केम की अनुषंगी कंपनी है। LG केम ने एक स्थानीय कंपनी का अधिग्रहण कर 1997 में भारत में इस क्षेत्र में कारोबार शुरू किया था। कंपनी के इस वाइजैग संयंत्र में पॉलिस्टिरीन का निर्माण किया जाता है। जिसका इस्तेमाल खानपान के क्षेत्र में होता है, इससे बने प्लास्टिक का इस्तेमाल एक बार इस्तेमाल करने वाली ट्रे और कंटेनर, बर्तन, फोम्ड कप, प्लेट और कटोरे आदि बनाने में होता है।

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भोपाल में बनता था सेविन कीटनाशक...  
भोपाल में बसे जेपी नगर के ठीक सामने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली। इसके 10 सालों बाद 1979 में भोपाल में एक प्रॉडक्शन प्लांट लगाया। इस प्लांट में एक कीटनाशक तैयार किया जाता था, जिसका नाम सेविन था। सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था। इस समय जब अन्य कंपनियां कारबेरिल के उत्पादन के लिए कुछ और इस्तेमाल करती थीं। जबकि यूसीआईएल ने मिथाइल आइसोसाइनेट (एमआईसी) का इस्तेमाल किया। एमआईसी एक जहरीली गैस थी। चूंकि एमआईसी के इस्तेमाल से उत्पादन खर्च काफी कम पड़ता था, इसलिए यूसीआईएल ने एमआईसी को अपनाया।

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