शवों को ढकने के लिए कम पड़ गए थे कफन, जहां नजर गई लगे थे लाशों के ढेर, हादसे के बाद की पूरी कहानी

Edited By meena, Updated: 03 Dec, 2021 03:07 PM

bhopal gas tragedy later story when eyes were looking for loved ones

विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानी भोपाल गैस कांड को भले ही 37 साल बीत गए लेकिन इस त्रासदी का शिकार हुए लोगों के जख्म आज भी ताजा हैं। 2-3 दिसंबर 1984 की उस काली रात के दर्द से मध्य प्रदेश आज तक उभर नहीं पाया है। सुबह का मंजर जिसने भी देखा वो...

भोपाल: विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानी भोपाल गैस कांड को भले ही 37 साल बीत गए लेकिन इस त्रासदी का शिकार हुए लोगों के जख्म आज भी ताजा हैं। 2-3 दिसंबर 1984 की उस काली रात के दर्द से मध्य प्रदेश आज तक उभर नहीं पाया है। सुबह का मंजर जिसने भी देखा वो देखता ही रह गया। वो चारों तरफ लाशों के बिछे ढ़ेर, अपनों को ढूंढती आंखे, चीख पुकार उस समय की ये दर्दनाक तस्वीरें जब आंखों के सामने आते ही तो बरबस ही किसी की रुह कांप जाती है। शायद ये जख्म कभी नहीं भरेंगे क्योंकि अपनो को खोने का दर्द, वो भी किसी भयानक हादसे में, कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। क्योंकि उस रात हज़ारों मासूम लोगों ने एक साथ अपनी जान गंवाई थी। वो एक ऐसी रात थी, जिसे याद करके  भोपालवासी सिहर उठते हैं और पूरा देश उसे याद करके दुख मनाता है।

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ऐसे लिखी गई मौत की इबारत
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में बसे जेपी नगर के ठीक सामने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली थी। ठीक इसके 10 सालों बाद 1979 में भोपाल में एक प्रॉडक्शन प्लांट लगाया गया। इस प्लांट में एक कीटनाशक तैयार किया जाता था जिसका नाम सेविन था। सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था। इस घटना के लिए यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के द्वारा उठाए गए शुरुआती कदम भी कम जिम्मेदार नहीं थे। उस समय जब अन्य कंपनियां कारबेरिल के उत्पादन के लिए कुछ और इस्तेमाल करती थीं जबकि यूनियन कार्बाइड ने मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) का इस्तेमाल किया।

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MIC एक जहरीली गैस थी। चूंकि MIC के इस्तेमाल से उत्पादन खर्च काफी कम पड़ता था। इसलिए कार्बाइड ने MIC को अपनाया। कंपनी इतनी बड़ी थी कि भोपाल के लोगों को लगा कि इससे सभी को रोजगार मिलेगा और परिवार चलेगा लेकिन 2-3 दिसंबर की रात जो हुआ उसके बाद न तो रोजगार बचा और ना ही किसी की जिंदगी। उस वक्त राजकुमार केसवानी नाम के पत्रकार ने 1982 से 1984 के बीच इस पर चार आर्टिकल लिखे। हर आर्टिकल में यूसीआईएल प्लांट के खतरे से चेताया। उन्होंने बताया कि नवंबर 1984 में प्लांट काफी घटिया स्थिति में था लेकिन उनकी चेतावनी को अनदेखा कर दिया गया।

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दो दिसंबर की काली रात
दो दिसंबर की रात 8 बजे यूनियन कार्बाइड कारखाने की रात की शिफ्ट आ चुकी थी। जहां सुपरवाइजर और मजदूर अपना-अपना काम कर रहे थे। एक घंटे बाद ठीक 9 बजे करीब 6 कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइनलाइन की सफाई का काम करने के लिए निकल पड़ते हैं। उसके बाद ठीक रात 10 बजे कारखाने के भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई। एक साइड पाइप से टैंक E610 में पानी घुस गया। पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगा जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो गया। स्थिति को भयावह बनाने के लिए पाइपलाइन भी जिम्मेदार थी जिसमें जंग लग गई थी। जंग लगे आइरन के अंदर पहुंचने से टैंक का तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया, जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था।

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इससे टैंक के अंदर दबाव बढ़ता गया। रात 10:30 बजे टैंक से गैस पाइप में पहुंचने लगी। वाल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया और टैंक पर इमर्जेंसी प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन MIC का रिसाव हो गया। रात 12:15 बजे वहां पर मौजूद कर्मचारियों को घुटन होने लगी। वाल्व बंद करने की बहुत कोशिश की गई लेकिन तभी खतरे का सायरन बजने लगा जिसको सुनकर सभी कर्मचारी वहां से भागने लगे। इसके बाद टैंक से भारी मात्रा में निकली जहरीली गैस बादल की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गई।

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जहरीली गैस के चपेट में भोपाल का पूरा दक्षिण-पूर्वी इलाका आ चुका था। रात 12 बजके 50 मिनट में गैस के संपर्क में वहां आसपास की बस्तियों में रहने वाले लोगों को घुटन, खांसी, आंखों में जलन, पेट फूलना और उल्टियां होने लगी। देखते ही देखते चारों तरफ लाशों का अंबार लग गया। कोई नहीं समझ पाया की यह कैसे हो रहा है । सुबह का सूरज निकला तो चारों तरफ सिर्फ अंधकार ही नजर आया। क्योंकि चारों तरफ जमीन के ऊपर सिर्फ लाशें ही दिख रही थीं कोई रो रहा था तो कोई चीख रहा था। उस रात को जिन लोगों ने देखा। वो आज भी खौंफ से कांप उठते हैं।

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कभी न भूलने वाला जख्म दे गई त्रासदी
भोपाल में गैस लीक होने की सूचना मिलते ही जितने भी लोग बचे थे वे आस पास के क्षेत्रों में भाग गए। खतरा अभी पूरी तरह से टला नहीं था, क्योंकि यूनियन कार्बाइड में 3 टैंकों में मिथाइल आइसोसाइनाइड भरी थी।  वो भी उम्मीद से कहीं ज्यादा जिनमें से सिर्फ एक टैंक ही से ही गैस का रिसाव हुआ था। लेकिन दो टैंकों में अभी भी गैस भरी थी और इनका भी लीक होने का खतरा बरकरार था।

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बची हुई गैस को खत्म करने के लिए 13 दिनों बाद एक बार फिर यूनियन कार्बाइड में काम शुरू किया गया लेकिन इस बार लोग पहले से सचेत थे और कंपनी के दोबारा शुरू होने की खबर से भोपाल के लोग वहां से दूरदराज के क्षेत्रों में भाग गए कंपनी दोबारा चालू हुई उसी खौफ के साथ लेकिन 7 दिनों के काम के बाद जब MIC खत्म हो गई तो कंपनी का काम बंद कर दिया गया और आज तक ये कंपनी छोला रोड के पास वीरान अवस्था में खड़ी है। गैस कांड के दो दिन तीन दिन बाद तक कब्रिस्तानों और श्मशानों में बड़ा ही अजीब नज़ारा था। एक एक गड्डे में कई कई लोगों को दफनाया गया। एक ही चिता पर कई कई लोगों को जलाया गया। उस वक़्त के भोपाल सबसे बड़े सरकारी अस्पताल हमीदिया हॉस्पिटल में मरीजों का अम्बार लगा हुआ था। हालात यह थे के मरीज़ ज्यादा और डॉक्टर काफी कम थे।

 

 

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