Edited By Vikas Tiwari, Updated: 02 Sep, 2025 06:38 PM

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में कई अहम फैसले लिए गए। बैठक के बाद कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि सरकार ने जनता से सीधे जुड़े मुद्दों पर निर्णय लिए हैं। सबसे बड़ा फैसला जल जीवन मिशन को...
भोपाल: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में कई अहम फैसले लिए गए। बैठक के बाद कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने बताया कि सरकार ने जनता से सीधे जुड़े मुद्दों पर निर्णय लिए हैं। सबसे बड़ा फैसला जल जीवन मिशन को लेकर हुआ है। बैठक में तय किया गया कि 8358 अधूरी नल-जल योजनाओं को पूरा करने के लिए 9026.97 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इस पूरी राशि का भार राज्य सरकार खुद उठाएगी।
कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि ‘नल से जल योजना प्रधानमंत्री का बड़ा सपना है और मध्य प्रदेश ने इस पर अच्छा काम किया है। पुनरीक्षण में पता चला कि कई योजनाएं अधूरी हैं और उन्हें पूरा करने के लिए अतिरिक्त बजट की आवश्यकता है। अब इसकी जिम्मेदारी पूरी तरह राज्य सरकार उठाएगी।’ कैबिनेट मंत्री ने जानकारी दी कि 20,765 करोड़ रुपये की लागत से 27,990 एकल गांव योजनाओं की मंजूरी दी गई। 60,786 करोड़ रुपये की लागत से 148 समूह जल प्रधान योजनाओं को मंजूरी मिली है। अब तक 15,947 गांवों की योजनाएं पूरी हो चुकी हैं। 12,043 ग्रामों में काम प्रस्तावित है। 8358 अधूरी योजनाओं को पूरा करने के लिए नया बजट स्वीकृत किया गया है।
केंद्र सरकार ने क्यों रोका फंड?
जानकारी के मुताबिक जल शक्ति मंत्रालय ने इस वित्तीय वर्ष की शुरुआत में 2.79 लाख करोड़ रुपये का फंड मांगा था। लेकिन व्यय वित्त समिति ने 2028 तक जल जीवन मिशन के लिए केंद्र की हिस्सेदारी 1.51 लाख करोड़ रुपये तक सीमित कर दी। लगभग 46% फंड की कटौती के कारण अधूरे कामों का भार राज्यों पर आ गया है।
पीएम मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट
जल जीवन मिशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है, जिसकी शुरुआत 15 अगस्त 2019 को हुई थी। इसके तहत 2024 तक हर ग्रामीण परिवार को नल से जल उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया। उस समय सरकार ने बताया था कि देश के 17.87 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 14.6 करोड़ (81.67%) के पास घरेलू नल कनेक्शन नहीं है। इस परियोजना के लिए कुल 3.60 लाख करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, जिसमें 2.08 लाख करोड़ केंद्र और 1.52 लाख करोड़ रुपये राज्यों की हिस्सेदारी तय हुई थी।