जिंदगी की राह में One Man Army की तरह डटी शन्नो, बुलंद हौसले से बनी पहली महिला मिस्त्री(Video)

Edited By meena, Updated: 18 Jun, 2020 05:35 PM

कहते हैं कि हौसले बुलंद हो तो हर मुकाम हासिल किया जा सकता है। एक ऐसी ही मिसाल आगर मालवा की एक महिला ने पेश की है जिसने अपनी जिंदगी में बहुत से उतार चढ़ाव देखे लेकिन कभी हालातों से समझौता नहीं किया। पहले दिहाड़ी मजदूरी कर तगारी उठाने, मिस्त्री को ईट...

आगर मालवा(सैयाद जाफर हुसैन): कहते हैं कि हौसले बुलंद हो तो हर मुकाम हासिल किया जा सकता है। एक ऐसी ही मिसाल आगर मालवा की एक महिला ने पेश की है जिसने अपनी जिंदगी में बहुत से उतार चढ़ाव देखे लेकिन कभी हालातों से समझौता नहीं किया। पहले दिहाड़ी मजदूरी कर तगारी उठाने, मिस्त्री को ईट पकड़ाने वाली महिला ने लगन, मेहनत से अपने हुनर को निखार कर आज खुद महिला मिस्त्री बनकर ईट जोड़कर मकान बनाना शुरु किया है। मध्य प्रदेश के मालवा जिले के कानड़ की रहने वाली शन्नो बाजी सम्भवत जिले प्रदेश व देश का पहली महिला मिस्त्री है।

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पहले शन्नो भाभी, फिर शन्नो बाजी की जिंदगी में कई उतर चढ़ाव हैं। 2004 में पति ने अनबन की वजह से शन्नो बाजी को दो बच्चियों के साथ अकेला छोड़ दिया। अचानक आई इस आपदा से शन्नो बाजी डिगी नहीं दो बच्चियों के पालन पोषण के लिए मजदूरी करने का फैसला लिया। पहले मिस्त्री के साथ जाकर सिर्फ तगारी देना, ईट उठाने के साथ छोटे मोटे काम करना रहता था। बच्चों की परेशानी के साथ लाज लज्जा का ख्याल रख शन्नो बाजी दिन रात मेहनत करने लगी। 

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बखूबी निभाती है दोहरी जिम्मेदारी
मिस्त्री के साथ सुबह 10 बजे जाकर शाम को 5 बजे घर आना ऐसे में शन्नो बाजी को दोहरी जिम्मेदारी को निभाना भी टेढ़ी खीर था। सुबह का खाना जल्दी बनाकर काम पर जाकर फिर काम से वापस आने के बाद खाना बनाना, घर का काम करने वाली भूमिका का बाखूबी निभाया। 

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ऐसे बनी मिस्त्री
सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक मिस्त्री के साथ काम कर उन्हें ईट देना तगारी उठाना पड़ता था। शन्नो बाजी ने धीरे धीरे मिस्त्री के हुनर को देखकर पहले दीवार पर ईट रखना फिर संवाल बांधना, कोण मिलाना सीखा। यह सब धीरे धीरे सीखने के साथ एक दो जगह दीवार का काम शुरू किया। मिस्त्री से सीखे हुनर की बदौलत ईट देने वाली शन्नो बाजी आज खुद महिला मिस्त्री बन कर बेहतर शानदार मकान बना रही हैं।

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वन मैन आर्मी की तरह हर चुनौती का किया सामना
पति से अलग होने के बाद बच्चियों की पढ़ाई पर भी शन्नो बाजी कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं। उनकी बड़ी बेटी आफ़िया आज 12वीं में पढ़ती हैं। छोटी बेटी सिमरन 9वीं में अध्यनरत हैं। बच्चियों की हर खुशी का ध्यान रखने वाली शन्नो बाजी के मन मे एक मलाल भी हैं उसकी क्या गलती थी उसके पति ने उसे छोड़ दिया वह सिर्फ महिला थी यह वजह रही क्या ?

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औरत होना कोई गुनाह नहीं
​​​​​​शन्नो बाजी की कहना है कि दुनिया जिस तरह दिखाई देती हैं उस तरह है नहीं। शन्नो बाजी बताती हैं कि पुरुषों के साथ तगारी उठाना, ईट देना अन्य काम करना बड़ी मुश्किलों भरा था। लाज लज्जा के साथ परिवार की इज्ज़त का ध्यान रखना था। हर कदम पर हिम्मत के साथ कदम रखा। यही वजह है कि आज वह मजदूरी की जगह मिस्त्री का काम कर रही हुं। मजदूरी में मेहनताना भी कम मिलता था आज मेहनताना भी अच्छा मिलता हैं। छोटे से परिवार के बीच आज हसीं खुशी जीवन यापन हो रहा हैं।

 

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