रामायण काल से स्थापित है उज्जैन का चिंतामण गणेश मंदिर, यहां 3 रूपों में विराजमान है पार्वतीनंदन

Edited By meena, Updated: 31 Aug, 2022 06:53 PM

chintaman ganesh temple of ujjain is established since ramayana period

मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में भगवान गणेश का प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से 6 किलोमीटर की दूरी पर है। यह प्राचीन मंदिर चिंतामण गणेश के नाम से प्रसिद्ध है। गणेश जी के इस प्रसिद्ध मंदिर के गर्भगृह में तीन प्रतिमाएं...

उज्जैन(विशाल सिंह): मध्यप्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में भगवान गणेश का प्राचीन मंदिर स्थित है। यह मंदिर महाकालेश्वर मंदिर से 6 किलोमीटर की दूरी पर है। यह प्राचीन मंदिर चिंतामण गणेश के नाम से प्रसिद्ध है। गणेश जी के इस प्रसिद्ध मंदिर के गर्भगृह में तीन प्रतिमाएं स्थापित है। गौरीसुत गणेश की तीन प्रतिमाएं गर्भगृह में प्रवेश करते ही दिखाई देती हैं। यहां पार्वतीनंदन तीन रूपों में विराजमान हैं। पहला चिंतामण, दूसरा इच्छामन और तीसरा सिद्धिविनायक। मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर की स्थापना स्वयं भगवान श्रीराम ने की थी। यहां दर्शन करने वाले व्यक्ति की सभी चिंताएं खत्म हो जाती है और वे चिंता मुक्त हो जाते हैं। बुधवार के दिन यहां श्रृद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है।

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रामायणकाल से स्थापित है मंदिर

चिंतामण गणेश मंदिर परमारकालीन है, जो कि 9वीं से 13वीं शताब्दी का माना जाता है। इस मंदिर के शिखर पर सिंह विराजमान है। वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार अहिल्याबाई होलकर के शासनकाल में हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चिंतामण गणेश सीता द्वारा स्थापित षट् विनायकों में से एक हैं। कहते हैं कि यह मंदिर रामायण काल में राम वनवास के समय का है। जब भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वन में घूम रहे थे तभी सीता को बड़ी जोरों की प्यास लगी।

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राम ने लक्ष्मण से पानी लाने को कहा तो उन्होंने मना कर दिया। पहली बार लक्ष्मण द्वारा किसी काम को मना करने से राम को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने ध्यान द्वारा समझ लिया कि यह सब यहां की दोष सहित धरती का कमाल है। तब उन्होंने सीता और लक्ष्मण के साथ यहां गणपति मंदिर की स्थापना की जिसके प्रभाव से बाद में लक्ष्मण ने यहां एक बावड़ी बनाई जिसे लक्ष्मण बावड़ी कहते हैं।

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मंदिर में बनाया जाता है उल्टा स्वास्तिक

पुजारी बताते हैं कि मनोकामना पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु यहां मन्नत का धागा बांधते हैं और उल्टा स्वस्तिक भी बनाते हैं। मन्नत के लिए दूध, दही, चावल और नारियल में से किसी एक वस्तु को चढ़ाया जाता है और जब वह इच्छा पूर्ण हो जाती है तब उसी वस्तु का यहां दान किया जाता है।

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