Edited By meena, Updated: 25 Mar, 2025 12:14 PM

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अक्सर कहते हैं कि प्राचीन काल में भारत में पारस पत्थर हुआ करता था...
भोपाल : मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अक्सर कहते हैं कि प्राचीन काल में भारत में पारस पत्थर हुआ करता था, जिसके स्पर्श से लोहा सोना हो जाता था। इस पारस पत्थर का काम पानी करता है जब वह सूखे खेतों पर पहुंचता है। जल के स्पर्श से खेतों में सुनहरी फसलें लहलहाती हैं। प्रधानमंत्री मोदी के देश की धरती को "शस्य श्यामला" बनाने के संकल्प से ही जुड़ा हुआ है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव का "संकल्प "हर किसान के खेत तक पानी पहुंचाना" जिससे हर खेत में सुनहरी फसलें लहलहाएं और किसान समृद्धशाली बने। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए वे निरंतर जुटे हुए हैं और इसके परिणाम स्वरुप प्रदेश ने गत 1 वर्ष में सिंचाई के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धियां हासिल की हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेई ने दो दशक पहले देश की नदियों को जोड़कर हर खेत तक पानी पहुंचाने का सपना देखा था, जो राज्यों के बीच जल विवाद के चलते दो दशकों से अधिक समय से ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ था। केन-बेतवा और पार्वती-कालीसिंध-चंबल जैसी महत्वाकांक्षी अंतर्राज्यीय नदी जोड़ो परियोजनाएं मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और राजस्थान के बीच सहमति न बन पाने के कारण आगे नहीं बढ़ पा रही थीं। मुख्यमंत्री मोहन ने केंद्र सरकार और राज्यों से निरंतर चर्चा कर इन परियोजनाओं के गतिरोध को समाप्त किया और प्रदेश ने दो बड़ी परियोजनाओं के रूप में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेई जी की 100वीं जयंती पर मध्यप्रदेश आकर देश की पहली नदी जोड़ो राष्ट्रीय परियोजना केन-बेतवा का शिलान्यास किया।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव के अथक प्रयासों का ही परिणाम है कि अब महाराष्ट्र सरकार के साथ वार्ता के बाद विश्व की सबसे बड़ी ग्राउण्ड वॉटर रीचार्ज अंतर्राज्यीय संयुक्त परियोजना "ताप्ती बेसिन मेगा रीचार्ज परियोजना" का अवरोध दूर हो गया है। मध्यप्रदेश शीघ्र ही महाराष्ट्र सरकार के साथ इस संबंध में करार करने की ओर बढ़ रहा है। जल्द ही केंद्रीय जल शक्ति मंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को भोपाल आमंत्रित कर करार की कार्यवाही की जाएगी। मुख्यमंत्री यादव का कहना है कि "ताप्ती मेगा रिचार्ज योजना के जरिए हम महाराष्ट्र सरकार के साथ मिलकर ताप्ती नदी की तीन धाराएं बनाकर राष्ट्रहित में नदी जल की बूंद-बूंद का उपयोग सुनिश्चित कर कृषि भूमि का कोना-कोना सिंचित करेंगे।"
केन-बेतवा लिंक राष्ट्रीय परियोजना एक महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय परियोजना है, जिसमें केन नदी पर दौधन बांध एवं लिंक नहर का निर्माण किया जाना प्रस्तावित है। रूपये 44 हजार 605 करोड़ लागत की इस परियोजना के पूर्ण होने पर मध्यप्रदेश के सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड क्षेत्र के 08 लाख 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा और प्रदेश की 44 लाख आबादी को पेयजल सुविधा प्राप्त होगी। साथ ही परियोजना से 103 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी होगा, जिसका पूर्ण उपयोग मध्यप्रदेश करेगा। इस परियोजना से मध्यप्रदेश के 10 जिले-छतरपुर, पन्ना, दमोह, टीकमगढ़, निवाड़ी, शिवपुरी, दतिया, रायसेन, विदिशा एवं सागर के लगभग 02 हजार ग्रामों के लगभग 07 लाख 25 हजार किसान परिवार लाभांवित होंगे। सूखाग्रस्त बुन्देलखण्ड क्षेत्र में भू-जल स्तर की स्थिति सुधरेगी। औद्योगीकरण, निवेश एवं पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा तथा रोजगार के अवसर भी उपलब्ध होंगे। इससे स्थानीय स्तर पर लोगों में आत्मनिर्भरता आयेगी तथा लोगों का पलायन रुकेगा। परियोजना के साकार रूप लेने पर मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र की तस्वीर बदलेगी।
संशोधित पार्वती-कालीसिंध-चम्बल अन्तर्राज्यीय नदी लिंक परियोजना के क्रियान्वयन के लिए मध्यप्रदेश और राजस्थान राज्यों एवं केन्द्र के मध्य 28.01.2024 को त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित हुआ और दोनों राज्यों एवं केन्द्र के मध्य 05.12.2024 को जयपुर में अनुबंध सहमति पत्र (मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट) हस्ताक्षरित किया गया। परियोजना की अनुमानित लागत 72 हजार करोड़ रूपये की है, जिसमें मध्यप्रदेश 35 हजार करोड़ एवं राजस्थान 37 करोड़ की हिस्सेदारी होगी। परियोजना से मध्यप्रदेश में मालवा एवं चंबल क्षेत्र के 11 जिले क्रमशः गुना, शिवपुरी, मुरैना, उज्जैन, सीहोर, मंदसौर, देवास, इंदौर, आगर-मालवा, शाजापुर एवं राजगढ़ जिलों में कुल 6.14 लाख हेक्टेयर नवीन सिंचाई एवं चंबल नहर प्रणाली के आधुनीकरण से भिंड मुरैना एवं श्योपुर के 3.62 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा सुनिश्चत की जायेगी। परियोजना से लगभग 03 हजार 150 ग्रामों की 40 लाख आबादी लाभान्वित होगी एवं इस समेकित परियोजना में मध्यप्रदेश की 19 सिंचाई परियोजनाओं को शामिल किया गया है।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव का संकल्प है कि क्षिप्रा स्वच्छ और निरंतर प्रवहमान बने और सिहंस्थ 2028 में क्षिप्रा के जल में ही श्रद्धालुओं को स्नान कराया जाए। क्षिप्रा नदी के जल को शुद्ध रखने के लिए 900 करोड़ रूपये की लागत की "कान्ह डयवर्सन क्लोज डक्ट परियोजना'' के द्वारा कान्ह नदी के दूषित जल को क्षिप्रा नदी में मिलने से रोका जायेगा। वर्ष-2028 से पहले यह योजना पूर्ण कर ली जायेगी। क्षिप्रा को वर्ष भर अविरल, प्रवहमान बनाने के लिए उज्जैन जिले की सेवरखेडी एवं सिलारखेडी (लागत लगभग 615 करोड़) योजना का कार्य भी आंरभ हो गया है। इससे आमजन एवं श्रद्धालुओं को पूरे वर्ष भर विशेष पर्वों पर उनकी धार्मिक भावनाओं के अनुरूप क्षिप्रा नदी में स्नान करने का अवसर मिलेगा। क्षिप्रा नदी पर सिंहस्थ में स्नान सुविधा के लिये क्षिप्रा नदी के दोनों तटों पर लगभग 29 किलोमीटर लंबाई में घाटों का निर्माण किया जायेगा, जिसकी राशि रू. 778.91 करोड़ की प्रशासकीय स्वीकृति दी जा चुकी है।