ईमानदारी ने आईपीएस अधिकारी को भेजा जेल, बघेलकाल में हुआ साजिशन बड़ा खेल

Edited By meena, Updated: 02 Feb, 2024 02:41 PM

honesty sent ips officer gp singh to jail

छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार के कारनामों की दास्तां अब कड़ीवार सामने आ रही है,

रायपुर(सत्येंद्र शर्मा): छत्तीसगढ़ की पूर्ववर्ती भूपेश बघेल सरकार के कारनामों की दास्तां अब कड़ीवार सामने आ रही है, जिसकी जद में फंसे एक ईमानदार आईपीएस अधिकारी को बेवजह सलाखों के पीछे भेजा गया। उस अधिकारी का कुसूर महज इतना था कि वो अपने सिद्धांतों और सच्चाई पर अड़ा रहा। बघेल एंड टीम उसे लाख प्रयासों के बाद भी डिगा न सकी। मसलन उसे साजिशन फंसाया गया। आखिरकार कांग्रेस सरकार के जाते ही खौफ की रिदा छंटी और आज सच्चाई बेपर्दा हो चुकी है।

पूर्व सीएम का सियासी 'चक्रव्यूह'

अब आपको किस्सा-ए-साजिश से जुड़ी कड़ियों से रूबरू कराते हैं। दरअसल, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के भूपेश बघेल सरकार के 5 साल के कार्यकाल में 1994 बैच के आईपीएस जीपी सिंह की बर्बादी की गाथा लिखी गई। छत्तीसगढ़ कैडर के सीनियर आईपीएस अधिकारी जीपी सिंह फिलहाल बर्खास्त हैं। 2018 में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद सीएम भूपेश बघेल और उनके करीबी अधिकारियों ने नान घोटाले में पूर्व सीएम व भाजपा नेता रमन सिंह को फंसाने के लिए ईओडब्ल्यू के तत्कालीन प्रभारी जीपी सिंह पर दबाव डाला। हालांकि, वो इसके लिए तैयार नहीं हुए और यही से उनके बुरे दिन का आगाज हुआ। हालात इस कदर बिगड़ते चले गए कि अत: उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर ढेर सारे गंभीर आरोप लगाए गए, लेकिन गिरफ्तारी के समय मीडिया से रूबरू हुए जीपी सिंह ने कहा कि बघेल और उनकी टीम लगातार दबाव बना रही थी कि पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को किसी भी तरह से निपटाना है। खैर, जब वो इसके लिए तैयार नहीं हुए तो उन्हें तरह-तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है।

PunjabKesari

पांच साल में खोया अपना पूरा जहां

पिछले 5 सालों में जीपी सिंह ने अपना मान सम्मान, पद प्रतिष्ठा, नौकरी और अपने मां-बाप तक को खो चुके हैं। साथ ही बर्खास्तगी के बाद आज कानूनी लड़ाई में फंसे हुए हैं। न्याय की आस में अदालतों के चक्कर काट रहे हैं। उनके खिलाफ एंटी करप्शन ब्यूरो को लगा दिया गया था। एसीबी के बड़े अधिकारी सीधे सीएम हाउस के संपर्क में थे और तरह-तरह की योजनाएं बना रहे थे। एसीबी के एसआई प्रदीप चंद्रकार, इंस्पेक्टर बनर्जी, के डीआईजी 2005 बैच के आईपीएस आरिफ शेख… ये वो लोग हैं, जो ‘मिशन जीपी सिंह’ में सक्रिय किरदार बने। जीपी सिंह को धराशाई करने के लिए सरकारी कागजों में अवैध संपत्ति दिखाए गए। उनके खिलाफ सरकारी कागजातों में कुल 17 प्रॉपर्टी के जिक्र मिले। इसमें कई ऐसी प्रापर्टी को भी जीपी सिंह का बताया गया, जो उनकी थी ही नहीं. एसीबी के अनुसार 7 नंबर वाली प्रॉपर्टी किसी परमजीत सिंह के नाम पर है, लेकिन रेवेन्यू रिकार्ड में यह प्रॉपर्टी अंतिमा पांडे की है। असल में जीपी सिंह के पिता का नाम परमजीत सिंह है। वहीं, एसीबी के अधिकारियों ने पांडे जी की प्रॉपर्टी को जीपी सिंह के पिता की प्रॉपर्टी बता दी।

एसीबी की जांच में सामने आए अबूझ किस्से

एसीबी ने 8 नंबर की प्रापर्टी परमजीत सिंह और प्रीतपाल सिंह चंडोक की बताई, लेकिन वास्तव में ये परमजीत सिंह कोई और हैं, न कि जीपी सिंह के पिता। इतना ही नहीं प्रीतपाल भी कोई और निकला। इसके इतर 10वें नंबर की प्रापर्टी पर प्रीतपाल सिंह चंडोक साहब का नाम डाला गया, लेकिन असलियत में ये दूसरा प्रीतपाल है और उसके पिता का नाम मंगल सिंह है।

एसीबी के अनुसार प्रीतपाल सिंह चंडोक ही पूरी जमीन का मालिक है। वहीं, 11 नंबर पर प्रीतपाल सिंह चंडोक की प्रॉपर्टी का जिक्र है। उस टाइम जीपी सिंह आईपीएस बने ही नहीं थे, लेकिन एसीबी के अनुसार उस समय जीपी अवैध तरीके से पैसे कमा रहे थे। 12वें नंबर पर फिर से प्रीतपाल सिंह चंडोक के नाम प्रॉपर्टी दिखाई गई, लेकिन हकीकत में ये भी कोई और प्रीतपाल निकला, जिसके पिता का नाम जोगिंदर सिंह है।

एसीबी की बड़ी कलाकारी

13 से 17 नंबर तक की प्रॉपर्टी को एसीबी ने प्रीतपाल सिंह चंडोक की दिखाई, जो सही भी हुई। खैर ये सभी प्रॉपर्टी 1983 में खरीदी गई थी। हालांकि तब जीपी सिंह कक्षा नौवीं में पढ़ते थे। एसीबी के अनुसार 1983 में ली गई प्रॉपर्टी भी जीपी सिंह के अनुपातहीन संपत्ति का हिस्सा है।

PunjabKesari

सोने की ईंट वाली मनोहर कहानी

एसीबी ने जीपी सिंह के घर में घुसने का तरीका ढूंढा, लेकिन जांच में कुछ ठोस सबूत हाथ नहीं लग पाए थे। ऊपर से आका के चमचे एसीबी के अधिकारियों ने इस कहानी को और आगे बढ़ाया और अगली कड़ी में सोने के बिस्कुट की गरमा-गर्म मनोहर कहानी लेकर आए। इस प्लान को सफल बनाने के लिए एसीबी ने स्टेट बैंक के अधिकारी मणि भूषण को रडार पर लिया। बताया कि ये जीपी की संपत्ति को ठिकाने लगाता है और इसे अवैध कमाई की पूरी जानकारी है। वहीं, मणिभूषण ने अपने स्टेटमेंट में बताया कि तरह-तरह के दबाव बनाने पर भी जब एसीबी का काम नहीं बना तो एक करोड़ की अवैध जब्ती का प्लान बनाकर धमकाने लगे। इसके लिए सोने के 1-1 किलो के दो बिस्कुट (बुलियन) लाए गए और स्टेट बैंक के अधिकारी मणि भूषण के टू-व्हीलर में रख दिए गए। मणि भूषण को पता था कि उसकी टू-व्हीलर एक सीसीटीवी कैमरे की नजर में है। इसलिए ये सुबूत उसे बेगुनाह साबित करने के लिए काम आ सकते हैं। इससे जाहिर हो जाएगा कि ये सोना खुद एसीबी ने रखा था। यह जानते हुए कि उनका आपराधिक कृत्य कैमरे में कैद हो गया है और देर-सबेर उजागर हो जाएगा, एसीबी अधिकारियों ने इस सीसीटीवी प्रणाली के डीवीआर को जब्त कर लिया और एक जाली पंचनामा बनाकर एक पेपर ट्रेल तैयार किया कि डीवीआर में कोई डेटा नहीं था। (डीवीआर के जब्ती ज्ञापन की एक प्रति और जाली चेक पंचनामा जो दावा करता है कि डीवीआर में कोई डेटा नहीं है, हालांकि, डीवीआर की आपत्तिजनक सामग्री का आकलन करने के लिए, इसे डीवीआर की सामग्री की जांच करने के लिए एसीबी में साइबर विशेषज्ञ के रूप में नामित सब इंस्पेक्टर प्रेम साहू को दिया गया था। उन्होंने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 65बी के तहत दिनांक 06.07.2021 को प्रमाण पत्र जारी किया जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि रिकॉर्डिंग की जांच की गई थी।

इसके बाद, कॉलोनी से संबंधित एसबीआई अधिकारियों ने हार्ड डिस्क वापस करने के लिए एसीबी के पास एक विरोध आवेदन दायर किया, लेकिन इसे कभी वापस नहीं किया गया। चूंकि सीसीटीवी प्रणाली डीवीआर/हार्ड डिस्क के बिना काम नहीं कर रही थी, इसलिए एसबीआई को सीसीटीवी प्रणाली को बहाल करने के लिए एक नई हार्ड डिस्क खरीदनी पड़ी। इसलिए, यह स्वयं स्पष्ट है कि एसीबी अधिकारी अपने आपराधिक कृत्य को छुपाने के लिए महत्वपूर्ण डिजिटल सबूतों को नष्ट करने के गंभीर आपराधिक कृत्य में शामिल हैं। उनके खिलाफ आईपीसी और आपराधिक साजिश के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता है।

आपको बता दें कि अवैध सोना मिलना और अवैध बिस्कुट मिलना दोनों अलग-अलग अपराध की संज्ञा में आते हैं। बुलियन या बिस्कुट मिलना जायदा बड़ा क्राइम है। बिस्कुट या बुलियन किसी फैक्ट्री से किसी ख़ास संस्था के लिए ही एलॉट किए जाते हैं और इस पर मार्किंग होती है। उस मार्किंग से पता चलता है कि ये किसने खरीदा है और कहां जा रहा है।

PunjabKesari

क्यों नहीं दी डीआरआई को सूचना

बहरहाल ये भी एक जांच का विषय है कि विदेश से आया ये माल रायपुर के किस बड़े ज्वेलर्स/बिल्डर के पास आया था, जिसने मार्किंग मिटा के माल एसीबी को दिया था। वैसे भी रायपुर में बुलियन मंगाने वाला ज्वेलर्स कोई छोटा-मोटा ज्वेलर्स या बिल्डर तो नहीं होगा। वैसे एक और अहम बात है कि देश में जब भी कहीं बुलियन मिलता है तो उसकी सूचना सबसे पहले डीआरआई को दी जाती है, लेकिन एसीबी के वीरों ने इसकी जानकारी डीआरआई को नहीं दी। कॉलोनी से संबंधित एसबीआई अधिकारियों ने हार्ड डिस्क वापस करने के लिए एसीबी के पास एक विरोध आवेदन दायर किया, लेकिन इसे कभी वापस नहीं किया गया।

चूंकि सीसीटीवी प्रणाली डीवीआर/हार्ड डिस्क के बिना काम नहीं कर रही थी, इसलिए एसबीआई को सीसीटीवी प्रणाली को बहाल करने के लिए एक नई हार्ड डिस्क खरीदनी पड़ी।

इसलिए, यह स्वयं स्पष्ट है कि एसीबी अधिकारी अपने आपराधिक कृत्य को छुपाने के लिए महत्वपूर्ण डिजिटल सबूतों को नष्ट करने और नष्ट करने के गंभीर आपराधिक कृत्य में शामिल हैं। उनके खिलाफ आईपीसी और आपराधिक साजिश के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत प्राथमिकी दर्ज करने की आवश्यकता है।

आपको बता दें कि अवैध सोना मिलना और अवैध बिस्कुट मिलना दोनों अलग-अलग अपराध की संज्ञा में आते हैं। बुलियन या बिस्कुट मिलना जायदा बड़ा क्राइम है। बिस्कुट या बुलियन किसी फैक्ट्री से किसी ख़ास संस्था के लिए ही एलॉट किए जाते हैं और इस पर मार्किंग होती है। उस मार्किंग से पता चलता है कि ये किसने खरीदा है और कहां जा रहा है।

एसीबी पर लगाए गंभीर आरोप

स्टेट बैंक के अधिकारी ने अपने बयान में एसीबी के सपन चौधरी और अमित नायक पर मारपीट का भी आरोप लगाया है। ये भी बताया कि उसे कहा गया कि अगर वो जीपी को फंसाने में साथ नहीं देगा तो पॉस्को एक्ट में उसे अंदर कर दिया जाएगा। अपने बयान में मणि भूषण ने तत्कालीन एसीबी के डीआईजी आरिफ शेख के ऊपर धमकी देने का आरोप लगाया है।

मणि भूषण ने एसीबी के सपन चौधरी को जमकर लपेटा है। साथ ही उससे जो भी जबरिया कृत्य करवाए गए उसे सपन चौधरी को बताया। जैसे ही सपन को इसकी जानकारी हुई तो चौधरी ने सीसीटीवी का डीवीआर बिना किसी जब्ती रसीद के ही उठा लिया। इसके बाद डीवीआर जब वापस किया गया तो आरोप है कि महानुभावों ने हार्ड डिस्क निकाल के गार्ड को वापस किया।वहीं, सपन चौधरी पर आरोप है कि स्टेट बैंक के अधिकारी मणि भूषण सच बोलने से मना करते रहे और उनको धमकाते रहे।

PunjabKesari

लगा राजद्रोह का केस

मणि भूषण ने अपने बयान में बताया कि इसी तरह से राजद्रोह का भी केस बनाने के लिए एक ऑरेंज कलर का लिफाफा एसीबी की ओर से प्लांट किया गया था। उसमें जो भी बातें लिखी गई हैं, उससे किसी तरह का मणि भूषण से कोई सरोकार नहीं है और न ही वो नेता है न अधिकारी तो जीपी सिंह उसको लेटर क्यों लिखेंगे? मतलब राजद्रोह कानून का दुरुपयोग कर इसके लपेटे में एक IPS अधिकारी को ले लिया गया।

वैसे एक और अहम बात है कि देश में जब भी कहीं बुलियन मिलता है तो उसकी सूचना सबसे पहले DRI को दी जाती है पर ACB के वीरों ने इसकी जानकारी DRI को नहीं दी।

स्टेट बैंक के अधिकारी ने अपने ब्यान में ACB के सपन चौधरी और अमित नायक पर मारपीट का भी आरोप लगाया है। ये भी बताया कि अगर जीपी की लंका लगाने में साथ नहीं दोगे तो पास्को में अंदर कर देंगे। अपने बयान में मणिभूषण ने तत्कालीन ACB के डीआईजी आरिफ़ शेख के ऊपर धमकाने का आरोप लगाया है। आऱिफ शेख ने कहा था कि जीपी सिंह की सम्पत्ति किसी भी तरह से चाहिए। किसी भी कीमत पर एक करोड़ रुपए बरामद करवाओ।

Related Story

Trending Topics

IPL
Royal Challengers Bengaluru

190/9

20.0

Punjab Kings

184/7

20.0

Royal Challengers Bengaluru win by 6 runs

RR 9.50
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!