नियम विरुद्ध तरीके से कंप्यूटर ऑपरेटर को सेवा समाप्ति का थमाया नोटिस, हाईकोर्ट ने लगाई रोक

Edited By Vikas Tiwari, Updated: 12 Dec, 2025 03:13 PM

jabalpur hc intervenes natural justice violated in service termination case

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश पारित करते हुए प्राथमिक कृषि शाख सहकारी संस्था बेला, सिहोरा (जबलपुर) में कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटर आशुतोष पटेल की सेवा समाप्ति पर रोक लगा दी है। अदालत ने पाया कि संस्था द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस और...

जबलपुर (विवेक तिवारी): मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश पारित करते हुए प्राथमिक कृषि शाख सहकारी संस्था बेला, सिहोरा (जबलपुर) में कार्यरत कंप्यूटर ऑपरेटर आशुतोष पटेल की सेवा समाप्ति पर रोक लगा दी है। अदालत ने पाया कि संस्था द्वारा जारी कारण बताओ नोटिस और सेवा समाप्ति आदेश दोनों ही बिना तिथि के जारी किए गए थे, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन है।

बिना तारीख के नोटिस पर हाईकोर्ट सख्त
न्यायमूर्ति मनिंदर एस. भट्टी की एकलपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता को न उचित अवसर दिया गया, न ही उनसे किसी स्तर पर स्पष्टीकरण प्राप्त किया गया। इसके बावजूद सीधा टर्मिनेशन आदेश जारी कर देना एकतरफा और संदिग्ध कार्रवाई है। कोर्ट ने इसे “पीछे से की गई प्रक्रिया” बताया और नोटिस व आदेश की वैधता पर गंभीर सवाल उठाए।

राज्य को चार सप्ताह में जवाब दाखिल करने के आदेश
अदालत ने राज्य सरकार सहित सभी प्रतिवादियों को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह में जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता सुघोष भमोरे एवं निशांत मिश्रा ने दलील दी कि संस्था ने नियमों के विपरीत जाकर, बिना सुनवाई का अवसर दिए, आशुतोष पटेल की सेवा समाप्त कर दी, जो उनके अधिकारों का गंभीर हनन है। कोर्ट ने इन दलीलों को प्रारंभिक रूप से सही माना और मामले को आगे सुनवाई योग्य पाया। साथ ही निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता सात कार्य दिवस में RAD मोड से प्रक्रिया शुल्क जमा करे ताकि प्रतिवादियों को विधिवत नोटिस भेजा जा सके।

टर्मिनेशन आदेश प्रभावहीन
हाईकोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई तक सेवा समाप्ति आदेश (अनु. प/6) प्रभावहीन रहेगा। आशुतोष पटेल अपनी सेवा पूर्ववत जारी रख सकेंगे। पद से उन्हें वंचित नहीं किया जाएगा। यह आदेश याचिकाकर्ता के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है, क्योंकि टर्मिनेशन प्रभावी होने पर उनकी आजीविका प्रभावित हो सकती थी। अदालत के इस कदम से विभागों और संस्थाओं को भी स्पष्ट संदेश गया है कि प्रक्रियागत नियमों को दरकिनार कर की गई दंडात्मक कार्रवाई स्वीकार्य नहीं है। मामला चार सप्ताह बाद अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होगा, जहां प्रतिवादियों के जवाब और प्रस्तुत दस्तावेजों के आधार पर आगे निर्णय होगा।

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