Edited By Himansh sharma, Updated: 06 Feb, 2025 03:50 PM
सिंधिया ने पुराने भाजपाइयों को एक और टेंशन दे दी!
भोपाल। (हेमंत चतुर्वेदी): कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश राजनीति से जुड़ा हुआ एक लतीफा सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था, जिसके मुताबिक सिंधिया कांग्रेस में रहकर जितना भाजपाइयों को परेशान कर रहे थे, उससे कहीं ज्यादा भाजपा में रहकर उनकी नाक में दम करके रखा है। दरअसल ये लतीफा भाजपा जिलाध्यक्षों की नियुक्ति के बाद सामने आया, जहां सिंधिया ने दशकों पुराने भाजपाइयों के धैर्य, संघर्ष और मेहनत पर पानी फिरवाकर अपने नए नवेले भाजपाई समर्थकों जिलाध्यक्ष की कुर्सी दिलवा दी। हालांकि खांटी और पुराने भाजपाइयों के अधिकारों पर सिंधिया ने ये पहली बार अतिक्रमण नहीं किया था, बल्कि भाजपा में अपनी आमद के साथ ही उन्होंने अपना ये खेल शुरू कर दिया था। सबसे पहले भाजपा के पुराने नेताओं को उनकी सीट से बेदखल करके अपने समर्थकों को चुनाव लड़वाना, फिर तमाम दिग्गजों को साइडलाइन करवाकर अपने करीबियों को मंत्री पद की शपथ दिलवाना, यही नहीं बल्कि जो समर्थक चुनाव हार गए उन्हें निगम मंडल में एडजस्ट करके उपकृत करवाना।
माना जा रहा था, कि सिंधिया ने जो सरकार भाजपा को गिफ्ट की थी, सिर्फ उसी में उनका प्रभाव देखने को मिलेगा, लेकिन शिवराज के बाद मोहन सरकार में भी सिंधिया ने अपनी ताकत का प्रदर्शन करके ये जाहिर कर दिया, कि भाजपा में अभी भी उनकी धमक उतनी ही है, जितनी कांग्रेस की सरकार गिराने के वक्त थी और उनकी यही धमक खांटी भाजपाई खासकर गुना-शिवपुरी और ग्वालियर अंचल के पार्टी नेताओं के लिए तनाव का कारण बनी हुई है। दरअसल मध्यप्रदेश में संगठन विस्तार के बाद अब निगम मंडल की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है, जिसे लेकर दावेदारों ने भोपाल और दिल्ली की प्रभातफेरी भी शुरू कर दी है। जो चेहरे सरकार और संगठन में शामिल होकर सीधा लाभ नहीं ले पाए, वो निगम मंडल में नियुक्ति को लेकर खासे उत्साहित भी है और तनाव में भी। तनाव इसलिए, क्योंकि अगर यहां पर उनकी दाल नहीं गली, तो लंबे समय तक ऐसा कोई मौका नहीं है, कि वो उपकृत हो सकें, और बड़े कुनबे की मालकिन भाजपा में इस वक्त किसी भी तरह की ताजपोशी अपने आप में कोई आसान बात नहीं है।
वैसे भाजपा जैसे विशाल संगठन वाली पार्टी में आसानी से कोई भी जिम्मेदारी मिलने की बात करना एक तरह से बेमानी ही है, लेकिन इसके इतर पार्टी नेताओं को एक अलग ही चिंता खाए जा रही है, खासकर ग्वालियर चंबल अंचल के नेताओं को। इस विषय में पंजाब केसरी ने संबंधित क्षेत्र के कुछ नेताओं से चर्चा की, तो अनौपचारिक तौर पर उन्होंने इस बात को स्वीकार किया, ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनका खेमा पिछले एक समय से उनके अधिकारों पर बेजा अतिक्रमण कर रहा है। और तो और इस विषय में बोलते हुए भाजपा नेता अनुशासन की परिधि तक लांघ गए, और कह दिया जब भी बात सिंधिया की आती है, तो संगठन न तो पार्टी के बनाए नियमों की सोचता है और न ही उसे किसी तरह की आचार संहिता की फिक्र रहती है।
यही कारण है, कि अब निगम मंडल में नियुक्ति से पहले तमाम नेताओं को लगने लगा है, कि इसके लिए उनके तमाम प्रयास कहीं सिंधिया के दबदबे के आगे फीके न पड़ जाएं। कोई कुछ भी सोचे और कुछ भी कहे, लेकिन दूसरे छोर पर सिंधिया ने निगम मंडल के लिए अपने मोहरे फिट करना शुरू कर दिया। दिल्ली से लेकर भोपाल तक उनकी या फिर यूं कहें, कि कथित समर्थकों की लिस्ट पहुंच गई है और इस बार भी क्या सिंधिया की ये पर्ची तमाम पुराने भाजपाइयों के संघर्ष पर भारी साबित होगी, इस सवाल पर हर किसी की नजरें टिकी हुई है।