ग्वालियर-चंबल में सिंधिया का दबदबा ! हाशिए पर पुराने दिग्गज, चर्चा में मोहन यादव के साथ बढ़ती ‘केमिस्ट्री’

Edited By meena, Updated: 05 Jul, 2025 08:05 PM

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ग्वालियर-चंबल: भाजपा की राजनीति का नया चेहरा- सिर्फ़ सिंधिया?

ग्वालियर/डबरा (भरत रावत) : मध्य प्रदेश का ग्वालियर-चंबल संभाग, जिसे कभी भाजपा के विचारधारा आधारित मजबूत स्थानीय नेतृत्व के लिए जाना जाता था, अब एकछत्र नेतृत्व की ओर बढ़ता नजर आ रहा है। इस समय अगर किसी एक नेता का नाम पूरे क्षेत्र में गूंज रहा है, तो वह हैं- केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया। पूर्व में कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहे इस क्षेत्र को भाजपा ने अपने पक्ष में किया जरूर है, लेकिन अब पार्टी यहां स्थानीय नेतृत्व विहीन होती दिखाई दे रही है। पुराने नेता हाशिए पर हैं और भाजपा की सारी रणनीति सिंधिया केंद्रित होती जा रही है।

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15 वर्षों में बदल गए समीकरण

पिछले डेढ़ दशक में यह क्षेत्र कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव से गुजरा है। 2020 का सत्ता परिवर्तन- जब सिंधिया अपने समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए।  इस क्षेत्र के लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इस कदम ने जहां कांग्रेस सरकार गिराई, वहीं भाजपा को इस बेल्ट में नई ऊर्जा और ताकत दी। लेकिन इस बदलाव ने भाजपा के परंपरागत नेताओं की भूमिका को सीमित कर दिया।

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कहां गए पुराने दिग्गज?

नारायण सिंह कुशवाह, अनूप मिश्रा, बाबूलाल जाटव अब सिर्फ़ नाम हैं। पंचायतों तक पकड़ रखने वाले ये नेता संगठन में निष्क्रिय हो चुके हैं।
जयभान सिंह पवैया, माया सिंह, प्रह्लाद पटेल 
ग्वालियर के जमीनी नेता रहे ये दिग्गज अब या तो राजनीति से दूर हैं या पूरी तरह पृष्ठभूमि में जा चुके हैं।
नरेंद्र सिंह तोमर
एक दौर में भाजपा के सबसे प्रभावशाली नेताओं में गिने जाने वाले तोमर अब विधानसभा अध्यक्ष हैं, लेकिन सक्रिय राजनीति से लगभग बाहर हैं।

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सियासी धूप में छांव तलाशते नरोत्तम मिश्रा: अब क्या अगला दांव?

मध्य प्रदेश की सियासत के कभी दमदार खिलाड़ी रहे पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का राजनीतिक ग्राफ इन दिनों ढलान पर है। विधानसभा चुनाव में करारी हार, लोकसभा टिकट से वंचित रहना और प्रदेश अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर होना। ये सब इशारा करते हैं कि मिश्रा अब पार्टी में हाशिये की ओर बढ़ रहे हैं। अमित शाह के करीबी माने जाने वाले मिश्रा कभी भाजपा सरकार की ‘पावर सेंटर’ माने जाते थे, लेकिन अब नेतृत्व भी उन पर भरोसा जताने से कतराता दिख रहा है। हालांकि मिश्रा अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि केंद्रीय नेतृत्व उन्हें कोई नई भूमिका सौंप सकता है। अब निगाहें इस पर टिकी हैं कि नरोत्तम मिश्रा अपनी खोई राजनीतिक जमीन दोबारा कैसे हासिल करेंगे?  क्या वापसी का कोई मास्टरस्ट्रोक बाकी है?

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इमरती देवी : सिंधिया खेमे की शांत सिपहसालार

दलित समुदाय में मजबूत पकड़ रखने वाली पूर्व मंत्री इमरती देवी उपचुनाव में हार के बाद से राजनीतिक परिदृश्य से लगभग गायब हैं। सिंधिया समर्थक मानी जाने वाली इमरती देवी की हार ने उनके राजनीतिक प्रभाव को कमजोर किया है। हालांकि, यदि आने वाले समय में ज्योतिरादित्य सिंधिया की सियासी पकड़ और मजबूत होती है, तो इमरती देवी की राजनीतिक वापसी और कद में इज़ाफा भी तय माना जा रहा है।

सिंधिया को मिल रहा है 'सत्ता और संगठन' दोनों का समर्थन

सिर्फ क्षेत्रीय राजनीति ही नहीं, अब राज्य की सत्ता में भी सिंधिया की पकड़ मजबूत होती दिख रही है। मौजूदा मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच बेहद मधुर संबंध हैं। दोनों नेताओं की सार्वजनिक मंचों पर बॉन्डिंग, एक-दूसरे की नीतियों और निर्णयों का समर्थन, और आपसी संपर्क व संवाद इस बात की गवाही देते हैं कि अब भाजपा की रणनीति सिर्फ़ काडर आधारित राजनीति नहीं रह गई है, बल्कि व्यक्तिगत तालमेल और शक्ति संतुलन पर आधारित हो रही है। मुख्यमंत्री मोहन यादव सिंधिया समर्थक विधायकों को संगठन और सरकार में बराबर की भागीदारी दे रहे हैं। दोनों की जोड़ी भाजपा के भीतर नई शक्ति संरचना का संकेत भी दे रही है।

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ग्वालियर-चंबल: भाजपा की राजनीति का नया चेहरा- सिर्फ़ सिंधिया?

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या भाजपा ग्वालियर-चंबल को पूरी तरह सिंधिया के हवाले कर देगी? या वह स्थानीय पुराने नेताओं को दोबारा खड़ा करने की रणनीति बनाएगी? भाजपा की परंपरा रही है कि वह एक व्यक्ति केंद्रित राजनीति पर ज्यादा देर तक निर्भर नहीं रहती। हालांकि फिलहाल पार्टी इस क्षेत्र में सिंधिया के नेतृत्व पर पूरी तरह आश्रित दिखाई दे रही है।

भविष्य की दिशा क्या होगी?

ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की राजनीति अब पूरी तरह सिंधिया केंद्रित हो चुकी है। भाजपा के पुराने नेता धीरे-धीरे हाशिए पर जा रहे हैं, और मुख्यमंत्री मोहन यादव के साथ सिंधिया की बढ़ती नजदीकियां इस बात का संकेत हैं कि आने वाले समय में भाजपा में एक नई धारा और नई पीढ़ी का नेतृत्व आकार ले रहा है। लेकिन यह भी देखना होगा कि क्या यह समीकरण स्थायी रहेगा या पार्टी आने वाले समय में नेतृत्व का पुनर्संतुलन करेगी?

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