MP में BJP नेता के दामाद बन गए संयुक्त निर्वाचन पदाधिकारी, अब उठ रहे हैं कई सवाल

Edited By Vikas kumar, Updated: 22 Mar, 2019 06:49 PM

son in law of the bjp leader and election

मध्यप्रदेश में चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए एस पी से लेकर कलेक्टर तक को मैदानी पदस्थापना से अलग कर के कलेक्टर को मंत्रालय तो एसपी को पुलिस हेडक्वार्टर भेज रहा है....

जबलपुर: (विवेक तिवारी) मध्यप्रदेश में चुनाव आयोग निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए एस पी से लेकर कलेक्टर तक को मैदानी पदस्थापना से अलग कर के कलेक्टर को मंत्रालय तो एसपी को पुलिस हेडक्वार्टर भेज रहा है। इसके पीछे की वजह को तलाशें तो चुनाव आयोग कहीं बीजेपी नेता की शिकायत तो कहीं कांग्रेस नेता की शिकायत को आधार बता रहा है, तो कई बता रहे हैं कि किसी अधिकारी की रिश्तेदारी किसी नेता जी से हुई तो आपको मैदानी पोस्टिंग से हाथ धोना पड़ सकता है।

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खास बात यहां ये है की चुनाव आयोग अफसरों पर एकतरफा कार्यवाही कर रहा है। उन्हें अपनी बात रखने का भी वक्त नहीं दिया जा रहा है। लेकिन जब बात खुद चुनाव आयोग की हो तो उसके लिए सारे नियम बौने हो जाते हैं और तब निष्पक्षता का सवाल भी बेमानी हो जाता है। हम ये इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमारे हाथ वो जानकारी लगी है जो मध्यप्रदेश चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर ही सवाल खड़ी कर रही है। हमारे सूत्र बताते हैं की मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग में जिस आईएएस ऑफिसर अभिजीत अग्रवाल को मध्यप्रदेश का संयुक्त निर्वाचन पदाधिकारी बनाया गया है, वो छत्तीसगढ़ बीजेपी के दबंग नेता ब्रजमोहन अग्रवाल के दामाद  हैं, ब्रजमोहन अग्रवाल के भाई योगेश अग्रवाल की बेटी से अभिजीत अग्रवाल का विवाह हुआ है। ऐसे में सवाल ये उठ रहा है, की क्या बीजेपी नेता के दामाद बीजेपी को मध्यप्रदेश में सपोर्ट नहीं करेंगे, क्या उनसे निष्पक्षता की उम्मीद की जा सकती है, ये सवाल उठे तो एक तस्वीर भी सामने आई। जब बीजेपी नेताओं की किसी भी शिकायत पर एकतरफा कार्यवाही हो रही है, और जबलपुर के तत्कालीन एस पी अमित सिंह को बिना किसी जांच के जिले से हटाना इस बात की पुष्टि भी करता है, की निर्वाचन आयोग मध्यप्रदेश बीजेपी के दबाव में काम कर रहा है, क्योंकि इस मामले पर आयोग ने सिर्फ शिकायत पर कार्यवाही की।


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बीजेपी नेताओं की नजदीकियां से मिला हरदम लाभ 

अभिजीत अग्रवाल अक्सर विवादों में ही रहे हैं। नोटबंदी के दौरान 8 जनवरी 2017 को श्योपुर कलेक्टर रहते हुए उन्हें मिठाई के डिब्बे में 5 लाख की रिश्वत भी दी गई थी। इस मामले में बीजेपी सरकार ने इनका बचाव करते हुए इन्हें क्लीनचिट दी थी। ये मामला बेहद सुर्खियों में आ गया था क्योकि यहां पर कलेक्टर को जिस ने घूस दी थी उसके खिलाफ अभिजीत अग्रवाल ने कोई शिकायत नहीं दर्ज कराई। बल्कि उस से माफीनामा लिखवा कर छोड़ दिया गया। बताया जाता है कि ये किसी बीजेपी नेता के कहने पर अभिजीत अग्रवाल को घुस देने आया था। लेकिन वहां खड़े संतरी की नजर उस मिठाई के डिब्बे पर पड़ गयी और सारा मामला सुर्खियों में आ गया।


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जनता के जवाब देने से भी परहेज 

ये चौकाने वाली बात है की अभिजीत अग्रवाल संयुक्त मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की हैसियत से जब फ़ेसबुक लाइव आए, तो अचार संहिता से जुड़े सवालों से बचते नजर ही रहे, यही हाल अन्य मामलों का भी है, जब मध्यप्रदेश निर्वाचन पदाधिकारी ऑफिस से शिकायत जब बीजेपी के नेता करते हैं उन पर तुरंत एक्शन लिया जा रहा है। वहीं आम जन की शिकायत कचरे में डाल दी जा रही है, संयुक्त निर्वाचन पदाधिकारी अभिजीत अग्रवाल के खिलाफ भी कई शिकायतें है, लेकिन उन्हे मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी वी एल कांताराव अपनी टीम में शामिल किए हुए हैं ।

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अग्रवाल तो पुराने कलेक्टर की कुर्सी पर भी नहीं बैठते 

इसे अंधविश्वास कहें या कलेक्टर का रुतबा, क्योंकि आईएएस अफसर अभिजीत अग्रवाल जिस जिले में भी कलेक्टर के रूप में जाते हैं, वहां उनको नई गाड़ी पर ही सवारी करनी होती है। यहां तक की वो पुरानी कुर्सी पर बैठते तक नहीं है। श्योपुर में जब वो कलेक्टर रहे तो पूर्व कलेक्टर द्वारा उपयोग की गई गाड़ी तो क्या पूर्व कलेक्टर की कुर्सी पर भी नहीं बैठे। अभिजीत अग्रवाल ने कलेक्टर चेंबर से लेकर, कलेक्टर सभागार और कलेक्टर निवास के कार्यालय की पुरानी कुर्सियों को बदलकर नई कुर्सियां रखवाई। अब इससे आप समझ सकते हैं की वो किस मिजाज के अफसर हैं।

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चुनाव आयोग में शिकायत फिर कांग्रेस की चुप्पी

विधानसभा चुनाव के दौरान कई आईएएस और आईपीएस अफसरों की शिकायत की गई थी। जिन पर चुनाव आयोग को कार्यवाही करनी थी। लेकिन उस वक्त शिकायत के बाद कोई कार्यवाही इन अफसरों पर नहीं हुई। आईएएस अफसर अभिजीत अग्रवाल पर बीजेपी के समर्थन में काम करने का आरोप लगा था। जिसके बाद उन्हें जिले की कलेक्टरी से हाथ धोना पड़ा लेकिन उसके बाद उन्होंने जुगाड़ जमाते हुए निर्वाचन आयोग में संयुक्त निर्वाचन पदाधिकारी की कुर्सी हासिल कर ली और अब शिकायत के बावजूद वो अपनी मर्जी के राजा बन कर बीजेपी से मिली हर शिकायत पर कार्यवाही कर रहे हैं। ये जानते सब हैं लेकिन फिर भी इनको इस पद से अलग नही किया जा रहा। वहीं कांग्रेस भी इस मामले पर चुप है।

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