कहीं टूट तो नहीं जाएगी मध्यप्रदेश की भाजपा ?

Edited By Vikas kumar, Updated: 04 Aug, 2020 12:51 PM

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मध्य प्रदेश की राजनीति को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है। यहां के वरिष्ठ,मझोले और छोटे नेता कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हों, तो यही कहा जाएगा। ऐसे में अब यह तो तय मानिए कि इन नेताओं के....

भोपाल (प्रतुल पाराशर): मध्य प्रदेश की राजनीति को कोरोना ने अपनी चपेट में ले लिया है। यहां के वरिष्ठ,मझोले और छोटे नेता कोरोना पॉजिटिव निकल रहे हों, तो यही कहा जाएगा। ऐसे में अब यह तो तय मानिए कि इन नेताओं के बोल-वचन, कोरोना-कहर जैसा ही होगा, सिर चढ़कर बोलेगा। इसे इस बात से समझने की कोशिश करिए कि कैसे और किस आत्मबल से मध्य प्रदेश भाजपा के कद्दावर नेता कैलाश विजयवर्गीय जी ने अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री पर तंज कसते हुए हमलावर हो गए, और रविवार के दिन लॉकडाउन की मांग को लेकर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तारीफ कर दी है। जबकि भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें बंगाल का प्रभार सिर्फ इस उम्मीद से दिया था कि वह सिर्फ ममता बनर्जी की गलत नीतियों पर सवाल उठाएंगे लेकिन इस तारीफ से पूरा भाजपा आलाकमान सकते में है।

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अब भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव का यह बयान इंदौर से चलकर पूरे प्रदेश में फैल चुका है और कोरोना संक्रमण की तरह ही नेताओं को संक्रमित भी कर रहा है। प्रदेश की जनता को मालूम है कि आने वाले दिनों में यहां 27 सीटों पर उपचुनाव होना है, साथ ही नेता विपरीत परिस्थितियों में भी प्राणपन से इसकी तैयारी में जुटे हैं। जबकि प्रदेश में आए दिन नेताओं के नाराज होने और उन्हें मनाने का सिलसिला भी खूब देखा जा रहा है। भाजपाई कितना भी आंख बंद कर ले और सब ठीक है, एकजुट है का नारा दें। लेकिन जनता तो यह देख ही रही है कि किस प्रकार पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा जी के यहां कुछ सीनियर भाजपाइयों ने पार्टी की वर्तमान रीति नीति पर सवाल उठाए थे। शर्मा के निवास पर पूर्व विधायक रमेश शर्मा 'गुड्डू भैया', शैलेंद्र प्रधान पुराने और सत्य निष्ठा भाजपाई माने जाने वाले युवा नेतृत्व धीरज पटेरिया जुटे। साथ ही वर्चुअल मीडिया के जरिए पूर्व सांसद अनूप मिश्रा और पूर्व मंत्री दीपक जोशी भी शामिल हुए। इस बैठक से जो बातें निकली उसमें साफ था कि भारतीय जनता पार्टी में संवादहीनता है और संपर्क समाप्त हो गया है। पहले निर्णय सामूहिक होते थे अब व्यक्तिगत हो गया है। लोग पद की तरफ भागने लगे हैं।

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ऐसा नहीं है कि उपचुनाव से पहले इस तरह की बैठकों पर जनता की कोई विचारधारा नहीं होती, बल्कि वह बखूबी समझती है कि भाजपा के वरिष्ठ और कद्दावर नेताओं के बयानबाजी और बोल-वचन के क्या मायने होते हैं। अभी पहले के कई मीडिया चर्चा के दौरान भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा ने भी कई मुद्दे पर अपनी बात बड़ी बेबाकी से रखी थी। उनसे जब पार्टी में नाराजगी को लेकर सवाल पूछे गए उन्होंने साफ तौर पर भले ही सब ठीक है का नारा देते हुए बार-बार एक ही सवाल ना पूछने और उन्हें ना उकसाने का कहकर मीडियाकर्मी को चुप करा दिया हो,लेकिन क्या लगता है कि आग नहीं लगी है। बस यह समझ लीजिए कि भारतीय जनता पार्टी में इस तरह की बातों को पचाने का सामर्थ्य है, जबकि कांग्रेस में ऐसी बातें जगजाहिर हो जाती हैं।

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