बड़े कमाल की है लाल चीटियां! सूप और चटनी बनाकर बेचते हैं लोग, फायदे जानकर रह जाओंगे हैरान

Edited By meena, Updated: 21 Jan, 2022 06:42 PM

the red ants of the forest of bastar are amazing

इन चीटियों की खासियत यह है कि लोग इन्हें पेड़ों से इकट्ठा करके इनकी चटनी बनाते हैं। आदिवासियों का मानना है कि इन चीटियों की चटनी औषधि का काम करती है। लोग इनका सूप और चटनी बनाकर बाजार में बेचते हैं। बस्तर के सभी आदिवासी इलाकों में लाल चींटी आसानी से...

बस्तर : बस्तर के जंगलों में मीठे फलों के पेड़ जैसे महुआ, साल, कटहल, आम, इत्यादि में लाल चीटियां भी पाई जाती हैं। जिन्हें स्थानीय बोलचाल में ' चापड़ा' कहते हैं। इन चीटियों की खासियत यह है कि लोग इन्हें पेड़ों से इकट्ठा करके इनकी चटनी बनाते हैं। आदिवासियों का मानना है कि इन चीटियों की चटनी औषधि का काम करती है। लोग इनका सूप और चटनी बनाकर बाजार में बेचते हैं। बस्तर के सभी आदिवासी इलाकों में लाल चींटी आसानी से मिल जाती है। लाल चींटी की चटनी को औषधि के रूप में प्रयोग कर रहे आदिवासी का कहना है कि चापड़ा को खाने की सीख उन्हें अपनी विरासत में मिली है। यदि किसी को बुखार होता हैं तो उस व्यक्ति को उस स्थान पर बिठाया जाता है। जहां लाल चींटियां (चापड़ा) होती है लोगों का मानना है कि चींटियों के काटने से बीमार व्यक्ति का बुखार उतर जाता है।

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चापड़ा से बनाई जाती है चटनी एवं (आमट) सूप...
बस्तर में पाई जाने वाली लाल चीटियों से दो प्रकार की रेसिपी बनाई जाती हैं। पहली जो आमतौर से इसकी चटनी बनाई जाती हैं। इसे बनाने के लिए पहले लाल चींटी(चापड़ा) को पेड़ के गुड़ा झाड़कर पात्र या चादर में तेज धूप में छोड़ दिया जाता है जिससे यह चींटिया धूप में बेहोश होकर मर जाती है और इसे साफ करके आदिवासी इसकी चटनी बनाते हैं।

ऐसे बनाई जाती है चटनी
चटनी बनाने के लिए टमाटर को अच्छे से आग में भूजने के बाद इसे सिलपट्टा से पीसा जाता है इसके बाद इसमें नमक, हरी मिर्च, धनिया, अच्छे से पीसा जाता है। इसके बाद उसमें चापड़ा को मिक्स कर आपस में और अच्छे से पीसा जाता है और तैयार हो जाती है चटपटी चटनी।

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चीटींयों का सूप...
कड़ी को बस्तरिया बोलचाल में (आमट) कहते हैं इसे बनाने के लिए चावल को दस से पन्द्रह मिनट तक पानी में भिगोकर रखा जाता है और भिगोये चावल को बारीकी से सिलपट्टा में पीसने के बाद उसमें, अदरक, लहसुन, हरीमिर्च को भी अच्छे से सिलपट्टा में पीसने के बाद फिर उसमें चापड़ा को भी पीसा जाता है। सभी चीजों को इकट्ठा मिक्स कर चूल्हे में गर्म पानी कर 20 मिनट तक पकने के लिए छोड़ दिया जाता है और तैयार हो जाने के बाद उसे सूप के रूप में गर्मा - गर्म पिया जाता है जिससे ज्वार एवं सर्दी खांसी से छुटकारा मिल जाता है।

चींटियों से बनाई औषधि…
बस्तर में लाल चींटी (चापड़ा ) के उपयोग से आदिवासियों को कई बिमारियों से बचाने में मदद करती है, आदिवासियों का मानना है कि, इससे कई बीमारियों में आराम मिलता है और बिमारियों से लड़ने की रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है,  इन आदिवासियों की मानें, तो चापड़ा चटनी के सेवन से सर्दी खाँसी ,मलेरिया और डेंगू ,पीलिया ,जैसी बीमारियां भी ठीक हो जाती है। और आदिवासियों के लिए ये प्रोटीन का सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने वाला साधन भी है।

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विकसित हुआ हाट बाजार में…

बस्तर में आदिवासियों ने किया लाल चींटी (चापड़ा) का विकसित देखा होगा। आए दिन हाट बाजार में चापड़ा हमें देखने को मिलता जो बाजार के एक दिन पहले आदिवासियों द्वारा जंगल झाड़ियों के बीच जाकर कॉफी खोज बिन करने के बाद मिलता है और उन्हें अपना भरण पोषण के लिए उसको बाजार में 10 से 20 रुपये दोना में बेच कर अपनी जरूरत की चीज ले लेते हैं।

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