रुक्खड़ बाबा मंदिर: खैरागढ़ की सदियों पुरानी आस्था और चमत्कारों का केंद्र

Edited By Himansh sharma, Updated: 31 Aug, 2025 09:36 PM

khairagarh is a centre of centuries old faith and miracles

छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ की पहचान कोई नया जिला बनने से नहीं, बल्कि सदियों पुरानी आस्था से है

खैरागढ़। (हेमंत पाल): छत्तीसगढ़ के खैरागढ़ की पहचान कोई नया जिला बनने से नहीं, बल्कि सदियों पुरानी आस्था से है जो इस नगर की मिट्टी में रची-बसी है। नगर के हृदय में स्थित रुक्खड़ बाबा मंदिर सिर्फ पत्थरों का निर्माण नहीं, बल्कि श्रद्धा और विश्वास की जीवित गाथा है।

टिकैतराय का काल और बाबा का आगमन

लोककथाओं के अनुसार, 18वीं सदी में नागवंशी शासक टिकैतराय के समय खैरागढ़ में एक दिव्य साधु आए, जिन्हें आज हम रुक्खड़ बाबा के नाम से जानते हैं। उन्होंने नगर में अपनी धूनी रमाई और वर्षों की साधना के बाद भस्म से शिव-पीठ की रचना की।

“भस्म, जो अक्सर अंत का प्रतीक होती है, बाबा ने उसी से एक नई शुरुआत रची—शिव-पीठ बनाकर।”
— भागवत शरण सिंह, स्थानीय इतिहासज्ञ

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भस्म से बनी शिव-पीठ

मंदिर की शिव-पीठ पत्थर से नहीं, भस्म से बनी है। इसे छूने या देखने मात्र से भक्तों को मानसिक शांति मिलती है। श्रद्धालु इसे माथे पर तिलक के रूप में लगाते हैं और मानते हैं कि यह उन्हें हर संकट से बचाती है।

अखंड धूनी: समय की साक्षी

मंदिर के कोने में सदियों से अखंड धूनी जल रही है। मान्यता है कि जब तक यह धूनी जल रही है, खैरागढ़ पर कोई विपत्ति नहीं आएगी।

धूनी के पास स्थित प्राचीन बिल्व वृक्ष भी श्रद्धालुओं का केंद्र है, जिसके नीचे की गई प्रार्थना को विशेष फलदायी माना जाता है।

महाशिवरात्रि: भक्ति का पर्व

महाशिवरात्रि पर मंदिर में भक्ति और उल्लास का समंदर उमड़ पड़ता है। रातभर ढोल-नगाड़ों की गूंज, “हर-हर महादेव” के जयकारे और बाबा की शिव-बारात नगर के हर कोने को जगमगा देती है।

सावन के सोमवार: श्रद्धा का मेला

सावन में हर सोमवार मंदिर श्रद्धा से भर जाता है। घंटों की लाइन, भस्म का तिलक, बेलपत्र की थालियां और भक्तों की आंखों में उम्मीद—यह दृश्य किसी भव्य मेले से कम नहीं होता।

PunjabKesariबाबा: खैरागढ़ की आत्मा

स्थानीय निवासी कहते हैं:

“हमारा जीवन बाबा से शुरू होता है और बाबा पर ही समाप्त। चाहे बीमारी हो या संकट—सबसे पहले बाबा का दरवाज़ा खटखटाते हैं।”

रुक्खड़ बाबा मंदिर सिर्फ धार्मिक स्थल नहीं, खैरागढ़ की आत्मा है। यह वह विरासत है, जिसे प्रशासनिक दर्जा नहीं, बल्कि लोगों की आस्था और विश्वास ने दर्ज किया है।

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