Edited By Vikas Tiwari, Updated: 20 Nov, 2020 07:47 PM
उतर प्रदेश और बिहार जैसा ही माहौल कटनी में भी देखने को मिल रहा है। जहां पूर्वांचल वासियों ने शुक्रवार को अस्ताचलगामी यानि डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। शनिवार सुबह उदीयमान ...
कटनी (संजीव वर्मा): उत्तर प्रदेश और बिहार जैसा ही माहौल कटनी में भी देखने को मिल रहा है। जहां पूर्वांचल वासियों ने शुक्रवार को अस्ताचलगामी यानि डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया। शनिवार सुबह उदीयमान यानि उगते हुए सूर्य को अर्घ्य के साथ ही सूर्योपासना के इस महापर्व का समापन होगा।
लोक आस्था के महापर्व छठ के दूसरे दिन गुरुवार को व्रतियों ने दिनभर उपवास रखकर शाम को नदियों की पावन धारा में स्नान किया और भगवान भास्कर को जल अर्पित किया। गुरुवार को जलार्पण के बाद छठव्रतियों ने नदी घाटों पर रोटी व खीर से खरना का प्रसाद बना विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। सबसे पहले व्रतियों ने प्रसाद ग्रहण किया। फिर परिवार के लोगों और संबंधियों के बीच प्रसाद का वितरण हुआ। नदी में स्नान करने से पहले व्रतियों ने नदी का शुद्ध जल और गंगा जल से अपने घरों को धोकर पवित्र किया। छठ पूजा एक ऐसा त्योहार है। जो पूरे बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में पूरे जोश और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
मध्य प्रदेश के कटनी जिले में भी भारी तादाद में पूर्वांचल वासी हैं लिहाजा यहां भी छठ त्योहार की जबरदस्त रौनक देखने को मिलती है। यह त्योहार चार दिवसीय त्योहार है। उत्सव की शुरुआत नहाय खाय से होती है। दूसरे दिन भक्त खरना मनाते हैं। खरना का अर्थ है शुद्धि। इस दिन, जो व्यक्ति इस दिन उपवास रखता है वह पूरे दिन उपवास रखता है, और शरीर, मन को शुद्ध करने का प्रयास करता है। इस दिन, भक्त स्पष्ट मन से अपने कुलदेवता और छठ मइया की पूजा करते हैं, और उन्हें गुड़ से बनी खीर अर्पित करते हैं। तीसरे दिन संध्या अर्घ्य नामक अनुष्ठान करके भक्त सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं। भक्त पवित्र जल में डुबकी लगाते हैं और सूर्य और छठ मइया की पूजा करते हैं। जब सूर्य अस्त होने वाला होता है तो वे लोक गीत गाते हैं। जो मूल रूप से यह बताता है कि प्राचीन काल में सूर्य ने अपने पूर्वजों के जीवन को कैसे बचाया था। शाम की पेशकश में ज्यादातर ठेकुआ नारियल और केले होते हैं, जिन्हें बांस की प्लेट पर रखा जाता है और उसे चढ़ाते हुए सूर्य को अर्पित किया जाता है। शनिवार 21 नवम्बर को उगते सूर्य के अर्ध्य के साथ व्रत का समापन किया जाएगा।