शादी का जश्न मातम में बदला, युवक की गुना जिला अस्पताल में संदिग्ध हालातों में मौत, परिजनों ने लगाए गंभीर आरोप

Edited By Himansh sharma, Updated: 17 Apr, 2025 10:58 AM

one person died in guna district hospital

एक परिवार जहां खुशियों के गीत गा रहा था, वहां अचानक ऐसा मातम छा गया कि हर आंख नम हो गई।

गुना। (मिस्बाह नूर): एक परिवार जहां खुशियों के गीत गा रहा था, वहां अचानक ऐसा मातम छा गया कि हर आंख नम हो गई। उज्जैन जिले के खाचरोद से अपने साले की शादी में शामिल होने आए 35 वर्षीय विक्रम भील की जिंदगी, गुना जिला अस्पताल के डॉक्टरों के निर्दयी कसाईयो जैसे व्यवहार और बेरुखी से थम गई। विक्रम, अपने साले गोलू भील की शादी में शिरकत करने नानाखेड़ी आया था। शादी की तारीख 20 अप्रैल तय थी पर किसे पता था कि इस घर में दूल्हे के संग विदा की खुशियों से पहले, एक जवान जिंदगी की अर्थी उठेगी। मंगलवार-बुधवार की दरमियानी रात, जब सब गहरी नींद में थे, विक्रम को अचानक सीने में तेज़ दर्द उठा। परिवारवालों ने बिना समय गंवाए उसे गुना जिला अस्पताल पहुंचाया। वहां से शुरू हुई वो कहानी, जिसे सुनकर किसी का भी कलेजा कांप जाए।

करीब 2 बजे रात को विक्रम को भर्ती किया गया। परिजनों की मानें तो डॉक्टरों की ओर से कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई। विक्रम तड़पता रहा, और डॉक्टर… 15 नंबर इमरजेंसी वार्ड में होने के बावजूद, एक बार भी उसे देखने नहीं आए। सुबह करीब 10 से 11 बजे, इलाज के दौरान विक्रम ने दम तोड़ दिया। परिजनों को यह खबर तब मिली, जब नर्सों ने एक रिपोर्ट थमाई जिसमें "डेथ" लिखा था। रिपोर्ट लेकर जब परिजन डॉक्टर के पास पहुंचे, तो डॉक्टर ने बेहद बेरुखी से कहा — वो तो मर गया...बस फिर क्या था… शादी के लिए सजे कपड़े, अब गुस्से और आंसुओं में भीग चुके थे।

PunjabKesariपरिवार ने अस्पताल के मेडिकल वार्ड में करीब 1 घंटे तक हंगामा किया। विक्रम की बहनों की चीखें, मां की रुलाई और भाइयों की लाचारी देख हर देखने वाला सन्न रह गया। अस्पताल प्रशासन ने जब स्थिति बिगड़ती देखी, तो पुलिस को बुलाया गया। पुलिस ने परिजनों को समझाया, और अंततः विक्रम का शव उसके घर खाचरोद, उज्जैन के लिए रवाना कर दिया गया। परिजनों ने जाते-जाते एक सख्त संदेश दिया हमें अपने बेटे की मौत पर रोना है या डॉक्टरों की बेरुखी पर? कोई और मां अपना लाल न खोए, इसलिए हमने हंगामा किया। गुना के डॉक्टरों से हाथ जोड़कर कह रहे हैं — मरीज को इंसान समझिए, संख्या नहीं।

अब सवाल उठता है — क्या सरकारी अस्पतालों की दीवारें सिर्फ ईंट और पत्थर से बनी हैं, या फिर उनमें संवेदनहीनता की मोटी परत भी चढ़ी है? ये सिर्फ एक मौत नहीं… ये सिस्टम की बेरुखी की एक और कहानी है। क्या विक्रम की मौत का जिम्मेदार कोई होगा? या फिर यह मामला भी फाइलों की धूल में गुम हो जाएगा? दिल दहला देने वाली इस घटना ने एक बार फिर से सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की हालत पर सवाल खड़ा कर दिया है।

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