Edited By suman, Updated: 27 Apr, 2019 11:39 AM

देश के सबसे बड़े विमानवाहक जंगी पाेत आईएनएस विक्रमादित्य में शुक्रवार को आग लग गई। आग बुझाने के दाैरान धुएं के कारण अचेत हुए नाैसेना के लेफ्टिनेंट कमांडर धर्मेंद्र सिंह (डीएस) चाैहान की मौत हो गई। रतलाम के रहने वाले थे। नाैसेना के प्रमुख एडमिरल...
भोपाल: देश के सबसे बड़े विमानवाहक जंगी पाेत आईएनएस विक्रमादित्य में शुक्रवार को आग लग गई। आग बुझाने के दाैरान धुएं के कारण अचेत हुए नाैसेना के लेफ्टिनेंट कमांडर धर्मेंद्र सिंह चाैहान की मौत हो गई। रतलाम के रहने वाले थे। नाैसेना के प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा कि, लेफ्टिनेंट कमांडर चाैहान की बहादुरी से आग काे बुझा लिया गया। हम उनके साहस और कर्तव्यनिष्ठा काे सलाम करते हैं। हम उनके परिवार के साथ हैं। नाैसेना प्रवक्ता कैप्टन डीके शर्मा ने कहा कि, आग बुझाने के लिए धर्मेंद्र सिंह चाैहान ने अपनी जान दे दी। उनके साहस से 44,500 टन वजन वाले पाेत की लड़ाकू क्षमता काे काेई खास नुकसान नहीं हाे पाया। नाैसेना ने बयान में कहा कि, आग शुक्रवार सुबह उस समय लगी, जब पाेत कर्नाटक के कारवाड़ बंदरगाह पहुंच रहा था।

दरअसल, साल 2013 में चौहान ने भारतीय नौसेना को ज्वाइन किया था। वह रतलाम की रिद्धि सिद्धि कॉलोनी में रहते थे। हादसे के बाद दोपहर 1:30 बजे नौसेना के अधिकारियों ने उनकी मां टमाकुंवर को फोन पर धर्मेंद्र के शहीद होने की खबर दी। खबर सुनने के बाद परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। नौसेना की जानकारी मिलने के बाद उनकी पत्नी करुणा आगरा से ही परिजनों के साथ गोवा रवाना हो गईं है। 10 मार्च को ही धर्मेंद्र की शादी हुई थी। छुट्टी खत्म होने के बाद वह 23 मार्च को वापस लौट गए थे।पत्नी के अलावा धर्मेंद्र के परिवार में उनकी मां टमा कुंवर और बहन ज्योति सिंह हैं। धर्मेंद्र की शहादत की खबर मिलने के बाद परिवार सदमें में है। शहीद धर्मेंद्र सिंह का पार्थिव देह आज शनिवार को रतलाम लाया जाएगा। जहां उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा।
शहर के पहले राष्ट्रीय खो-खो खिलाड़ी रहे चौहान
धर्मेंद्र ने सागोद रोड स्थित जैन स्कूल में कक्षा 6टी से 12वीं तक पढ़ाई की थी। स्कूल के पीटीआई संजय शर्मा, सहायक कोच दुर्गाशंकर से उसने खो-खो की ट्रेनिंग ली थी। उसने खो-खो की राष्ट्रीय स्पर्धा में हिस्सा लेकर उत्कृष्ट प्रदर्शन किया था। सहायक कोच मोयल के अनुसार खो-खो में राष्ट्रीय तक पहुंचने वाला वह पहला खिलाड़ी था। पांच बार संभाग स्तरीय खो-खो में टीम का नेतृत्व भी कर चुका है।