Edited By Himansh sharma, Updated: 08 Aug, 2024 12:10 PM
दतिया। (नवल यादव): साल 2022 में गुजरात के मोरबी में जब एल पुल हादसा हुआ था तो उसने पूरे देश को झकझोर के रख दिया था। क्योंकि, पुल के जिम्मेदारों ने कभी पुल की देखरेख में दिलचस्पी नहीं ली थी, इतना बड़ा पुल हादसा होने के बाद भी आज तक जिम्मेदारों ने उससे कोई सबक नहीं सीखा। ऐसे ही एक पुल से आज हम आपको रूबरू कराएंगे, जिसे मौत का पुल कहा जाए तो कम नहीं है। पुल की दशा ऐसी है कि आप देखने के बाद सिहर जाएंगे। पुल पर चलना यानी यमराज की अंगुली पकड़कर चलना जैसा है। आलम यह है कि पुल कब टूट कर गिर जाए और मौत का कारण बन जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। देशभर में कई पुल हादसे हो चुके हैं इसके बावजूद भी जिम्मेदार विभागों के अधिकारी ऐसे हादसों से सबक नहीं लेते जिसका खामियाजा आम जनता को उठाना पड़ता है ऐसा ही मामला दतिया जिले के ग्राम पिसनारी से गुजरी राजघाट नहर परियोजना के विभागीय अधिकारियों का सामने आया है राजघाट नहर परियोजना के द्वारा नहर निर्माण का कार्य वर्ष 2013 में संपन्न हो गया था उसी समय आधा दर्जन गांवों के लोगों को इस पार से उस पार जाने के लिए एक लोहे का पुल निर्माण कराया गया था जो 10 वर्ष बाद पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हालत में पहुंच गया है।
चद्दर गल गई है जाली टूट गई है वहां से निकलने वाले पशु एवं पशुपालक किसान आदि के सिर पर जान का खतरा मंडरा रहा है। मरम्मत का कार्य भी कागजों में संपन्न हो गया है और पैसा भी संबंध ठेकेदार और अधिकारियों की मिली भगत से हजम कर लिया है। हम बात कर रहे है, मध्य प्रदेश के दतिया के ग्राम पिसनारी में जो दतिया तहसील का ही गांव है। जो अंगुरी बेराज डेम की नहर पर बना हुआ है। इस पर चलना मौत के कुएं में चलने से कम नहीं है। इसे मौत के कुएं से भी भयंकर कहा जा सकता है। यहां यह भी कहना सही होगा कि एल, पुल मौत को दावत दे रहा है। पुल का आलम यह है कि कभी भी टूट कर कर गिर सकता है।
दर्जनों लोग हर रोज करते है आवागमन
इस पुल में लगी चद्दर लगभग 80 प्रतिशत से अधिक गल चूंकि है। हैरानी की बात यह है कि, मौत को दावत देते इस पुल से 4 गांवों के लोगों का आना जाना रहता है। हर रोज इस पुल से दर्जनों लोग निकलते है। गांव वालों के पास इसके अलावा नहर पार करने का कोई वैकल्पिक मार्ग नहीं है। ग्रामीण हथेली पर जान लेकर हर रोज इस पुल को पार करते हैं।
गुणवत्ता पर उठाई थी आवाज
आप को बता दें कि, राजघाट विभाग द्वारा इस पुल का निर्माण 2011-2012 में कराया गया था। जब पुल का निर्माण हो रहा था तो ग्रामीणों ने इसकी गुणवत्ता को लेकर आवाज उठाई थी। लेकिन, उस समय विभाग के जिम्मेदारों के कान में जूं तक न रेंगी। यह पुल 10 साल भी नहीं चल सका। सरकारी धन का किस तरह से बंदरबांट हुआ, इसका नजारा अब दिखने लगा है।
1.65 करोड़ में बनाया गया था पुल
बताया गया है कि, यह पुल 1.65 करोड़ के बजट से बनाया गया था। यह पुल 10 साल भी नही चला और इस की चद्दर गल चुकी थी। साल 2023 में आदे पुल की चद्दर तो बदल दी गई थी और बाकी हिस्से को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि एक साल पहले ही इस पुल के निर्माण की मरमत के लिए विभाग को अवगत कराया गया था, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
ग्रामीणों के लिए नही है कोई वैकल्पिक मार्ग
राहगीर राघवेंद्र यादव का कहना है कि, यह पुल टूटने के कगार पर है। कभी भी कोई भी अप्रिय घटना घट सकती है। पुल से आने-जाने में लोगों को दिक्कत होती है। इस पुल के अलावा और कोई दूसरा वैकल्पिक रास्ता नहीं है।
पहले हो चुके है हादसे
वहीं ग्रामीण सोबरन यादव ने बताया कि, इस पुल पर पहले भी घटनाएं हो चुकी हैं। करीब 6 माह पूर्व एक भैंस पुल की चद्दर टूटने के कारण उसमें फंस गई थी। जिसे मुश्किल से बाहर निकाला गया था। इसके बाद गांव का एक बच्चा साइकिल से पुल पार कर रहा था। जो साइकिल सहित नहर में गिर गया था। मछुआरों ने बच्चे को देखा और उसे उसे बाहर निकाल लिया था। अभी दो दिन पहले एक बाइक फंस गई थी। जिसे ग्रामीणों ने बमुश्किल बाहर निकली थी। समय पर पुल की मरम्मत नहीं हुई तो कोई भी बड़ी घटना हो सकती है।
चेतावनी लिख भूल गया प्रशासन
जिला प्रशासन ने पुल के दोनो और चेतावनी लिखी है। जिस में उल्लेख किया गया है कि, सावधान यह पुल क्षतिग्रस्त हो गया है। इससे आना-जाना पूर्णत: प्रतिबंधित, अत: किसी भी दुर्घटना के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे। ग्रामीणों का आरोप है कि, यह चेतावनी करीब 2 साल पहले लिखी गई थी। पुल क्षतिग्रस्त है क्या प्रशासन की जिम्मेदारी इसे ठीक कराना नहीं है।