Edited By meena, Updated: 04 Sep, 2025 02:45 PM

मध्य प्रदेश के भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार द्वारा आदिवासी समाज पर दिए बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी है...
भोपाल (इजहार खान) : मध्य प्रदेश के भाजपा विधायक रामेश्वर शर्मा ने नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार द्वारा आदिवासी समाज पर दिए बयान को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विधायक रामेश्वर शर्मा ने कहा कि आदिवासी के गले में क्रॉस लटकाने के लिए और सोनिया गांधी को खुश करने के लिए उमंग षडयंत्र कर रहे हैं। सिंघार जी यह पाप मत करो। हिंदुस्तान आपसे नाराज़ हो जाएगा। आदिवासी हमारी सभ्यता का ध्वजवाहक है।
रामेश्वर शर्मा ने कहा कि आज़ादी की लड़ाई में लोहा लेने वाला आदिवासी समाज, जय जौहार का जयकारा लगाने वाला समाज, बड़े देव को पूजने वाला आदिवासी समाज हमारी आत्मा है। बिरसा मुंडा को मानने वाला समाज हमारा है। आदिवासी भारतीय सभ्यता का जनक है जनक था और जनक रहेगा। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि उमंग सिंघार चाहे कितने षंडयंत्र करके आदिवासियों को ईसाई बनाने के प्रयत्न कर लें, लेकिन मध्य प्रदेश का आदिवासी ईसाई नहीं बनेगा और न ही वे सोनिया गांधी को माता स्वीकार नहीं करेगा। वो गले मे क्रॉस नहीं लटकाएगा। आप चाहे कितने सोनिया गांधी के चरण धो लो लेकिन आदिवासी ईसाई नहीं बनेगा। आदिवासी समाज भारत का बेटा है, भारत का बेटा है, और भारत के लिए ही काम करता रहेगा।

बता दें कि छिंदवाड़ा के जिला कांग्रेस कार्यालय में आयोजित मध्य प्रदेश आदिवासी विकास परिषद की बैठक और सम्मान समारोह में नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने आदिवासियों पर बयान दिया था। उन्होंने कहा ‘मैं गर्व से कहता हूं कि हम आदिवासी हैं, हिंदू नहीं। यह बात मैं कई सालों से कहता आ रहा हूं।’
पौराणिक कथा का हवाला
सिंघार ने आदिवासी समाज की पहचान को रेखांकित करते हुए पौराणिक कथा का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि शबरी, जिन्होंने भगवान राम को जूठे बेर खिलाए थे, वह भी आदिवासी थीं। सिंघार ने कहा कि आदिकाल से इस धरती पर वास करने वाले लोग ही आदिवासी कहलाते हैं। समाज को अपनी अलग पहचान स्थापित करनी होगी और सरकारों को उनके मान-सम्मान की रक्षा करनी होगी।
राजनीतिक हलचल
सिंघार के इस बयान ने प्रदेश के सियासी गलियारों में हलचल मचा दी है। आदिवासी पहचान और हिंदू धर्म के बीच अंतर को उजागर करने वाले इस बयान को राजनीतिक रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह बयान आदिवासी वोट बैंक को साधने की कोशिश हो सकता है, खासकर आने वाले चुनावों के मद्देनजर।