The Kashmir Files सिर्फ फिल्म नहीं, बल्कि इससे बढ़कर है, जानिए कैसे

Edited By meena, Updated: 17 Mar, 2022 02:59 PM

the kashmir files is not just a film it is more than that

कश्मीर इतना बड़ा मुद्दा रहा है कि जिस पर निर्णय लेने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत शुरू से महसूस होती रही है। 90 और 90 के दशक के पहले से कश्मीर में शांति लाने के लिए जो किया जा सकता था वह शायद नहीं हुआ।

एमपी डेस्क (विवेक तिवारी): इन दिनों सोशल मीडिया से लेकर राजनितिक बयानों में हर जगह द कश्मीर फाइल्स फिल्म का जिक्र है। इसे लेकर एक नई बहस भी छिड़ी हुई है। लेकिन बात यदि फिल्म द कश्मीर फाइल्स की कहानी की करें तो फिल्म काल्पनिक तो बिल्कुल नहीं लगती क्योंकि कश्मीर में जो नरसंहार हुआ उस से सभी वाकिफ है और सरकार की भूमिका उस दौरान क्या रही इससे भी सभी परिचित है। कश्मीर इतना बड़ा मुद्दा रहा है कि जिस पर निर्णय लेने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत शुरू से महसूस होती रही है। 90 और 90 के दशक के पहले से कश्मीर में शांति लाने के लिए जो किया जा सकता था वह शायद नहीं हुआ।

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तुष्टीकरण की राजनीति शुरू से ही रही जाहिर सी बात है पाकिस्तान से लगे होने के कारण आतंकवाद की छाया यहां पर शुरू से ही रही और यहां के मुस्लिम लोगों पर आतंकवाद हावी रहा।  यहां पर आतंकवादी होना यानी फ्रीडम फाइटर यानी  आजादी के सिपाही। पाकिस्तान अपनी सोच को लेकर यहां पर लोगों के मन में आतंकवाद का बीज बोता रहा और भारत के अभिन्न अंग कश्मीर को अपने हिस्से में करने के लिए लगातार प्रयास करता रहा। कुछ हद तक  पाकिस्तान यहां पर सफल भी हुआ जब अलगाववादी नेता उनकी ही सोच पर आगे बढ़ते रहे युवाओं पर आतंकवाद का बीज बो दिया गया। कश्मीर की समस्या का हल करने के लिए पहले कई प्रयास हुए होंगे लेकिन ठोस निर्णय तो मोदी सरकार में ही हुए इस सच को कोई झुठला नहीं सकता। धारा 370 को अलग करना और घाटी में तिरंगा लहराना यह कोई छोटा काम नहीं है।

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यही वजह है कि देश की जनता मोदी के साथ चल रही है रही बात फिल्म की तो फिल्म में हकीकत की घटनाओं को प्रदर्शित करने में काफी सफलता मिली।  जो घटनाएं दिखाई गई उनमें पात्रों के नाम अलग हो सकते हैं लेकिन आज की उन घटनाओं के सबूत मौजूद हैं और उसके आरोपी जेल की सलाखों में भी है लेकिन धीरे-धीरे घाटी अब शांत हो रही है। इसकी जरूरत भी है बाकी कश्मीर में कश्मीरी पंडितों पर और अन्य हिंदू समुदाय ऊपर इस कदर अत्याचार हुआ वह सबको पता है और फिल्म का चित्रण उसी तरह से किया गया है।

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क्या है फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी कश्मीर के एक टीचर पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है। अपने दादा पुष्कर नाथ पंडित की आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए कृष्णा (दर्शन कुमार) दिल्ली से कश्मीर आता है।  कृष्णा अपने दादा के जिगरी दोस्त ब्रह्मा दत्त (मिथुन चक्रवर्ती) के यहां ठहरता है। उस दौरान पुष्कर के अन्य दोस्त भी कृष्णा से मिलने आते हैं। इसके बाद फिल्म फ्लैशबैक में जाती है।

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फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि 1990 से पहले कश्मीर कैसा था। इसके बाद 90 के दशक में कश्मीरी पंडितों को मिलने वाली धमकियों और जबरन कश्मीर और अपना घर छोड़कर जाने वाली उनकी पीड़ादायक कहानी को दर्शाया जाता है। कृष्णा को नहीं पता होता कि उस दौरान उसका परिवार किस मुश्किल वक्त से गुजरा होता है। इसके बाद 90 के दशक की घटनाओं की परतें उसके सामने खुलती हैं और दर्शाया जाता है कि उस दौरान कश्मीरी पंडित किस पीड़ा से गुजरे थे। पूरी कहानी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है।

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