Edited By Vikas Tiwari, Updated: 02 Dec, 2025 12:36 PM
विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानी भोपाल गैस कांड ( Bhopal Gas Tragedy ) को 41 साल पूरे होने जा रहे हैं। आज के ही दिन भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसके कारण हजारों लोगों की मौत हो गई। 2 और 3 दिसंबर 1984 की...
मध्यप्रदेश डेस्क (विकास तिवारी): विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी यानी भोपाल गैस कांड ( Bhopal Gas Tragedy ) को 41 साल पूरे होने जा रहे हैं। आज के ही दिन भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था। जिसके कारण हजारों लोगों की मौत हो गई। 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात साढ़े 11 बजे मौत ने भोपाल में तांडव खेला था। यूनियन कार्बाइड ( Union Carbide ) से निकलने वाली मौत ने हर दरवाजे पर दस्तक दी थी। हर शख्स सांस लेना चाहता था। लेकिन उस जहरीली गैस ने फेफड़ों फूलना बंद कर दिया था। हर कोई अस्पताल की ओर भाग रहा था। लेकिन आंखें भी दगा दे रही थीं। उनमें देखने की ताकत खत्म हो चली थी। लिहाजा, कई लोग रास्ते में ही गिर गये, और जो गिरा, वो फिर उठने लायक नहीं रहा। आलम यह था कि हमीदीया और जयप्रकाश जैसे बड़े अस्पताल भी सैकड़ों लोगों की पीड़ा से कराह उठे। धीरे धीरे अस्पताल मुर्दाघर बनने लगे। आलम यह था कि अस्पतालों के बाहर लाशों का अंबार लगने लगा। शुरूआती कुछ घंटे में ही करीब तीन हजार लोगों की मौत हो गई थी। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर भी कम पड़ गये। अस्पताल जाने वाले हर रास्ते में लाशों के ढेर दिख रहे थे। यह सिलसिला दो तीन दिनों तक चलता रहा, हालत यह थी कि श्मशान में लाशों की चिता जलाने के लिये लकड़ियां तो कब्रिस्तानों में कब्र के लिये जमीन कम पड़ने लगी।

1969 में स्थापित हुई यूनियन कार्बाइड...
भोपाल में बसे जेपी नगर के ठीक सामने यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन (Union Carbide Corporation) ने 1969 में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के नाम से भारत में एक कीटनाशक फैक्ट्री खोली। इसके 10 सालों बाद 1979 में भोपाल में एक प्रॉडक्शन प्लांट लगाया। इस प्लांट में एक कीटनाशक तैयार किया जाता था, जिसका नाम सेविन था। सेविन असल में कारबेरिल नाम के केमिकल का ब्रैंड नाम था। इस घटना के लिए UCIL (यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड) द्वारा उठाए गए शुरुआती कदम भी कम जिम्मेदार नहीं थे। उस समय अन्य कंपनियां कारबेरिल के उत्पादन के लिए जब कुछ और इस्तेमाल करती थीं। उस वक्त UCIL (यूनियन कार्बाइड) ने मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) का इस्तेमाल किया। एमआईसी एक जहरीली गैस थी। चूंकि एमआईसी के इस्तेमाल से उत्पादन खर्च काफी कम पड़ता था, इसलिए यूसीआईएल ने एमआईसी को अपनाया।

पहले भी हो चुका था रिसाव...
कम ही लोग जानते हैं कि, भोपाल गैस कांड से पहले भी एक घटना हुई थी। इसी कंपनी में 1981 में फॉसजीन नामक गैस का रिसाव हो गया था जिसमें एक वर्कर की मौत हो गई थी। इसके बाद जनवरी 1982 में एक बार फिर फॉसजीन गैस का रिसाव हुआ जिसमें 24 वर्कर्स की हालत खराब हुई थी। उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहीं लापरवाही का दौर यहीं नहीं थमा। फरवरी 1982 में एक बार फिर रिसाव हुआ। लेकिन इस बार मिथाइल आइसोसाइनेट (Methyl isocyanate) का रिसाव हुआ था। उस घटना में 18 वर्कर्स प्रभावित हुए थे। उन वर्कर्स का क्या हुआ, यह आज भी रहस्य बना हुआ है। इसी वर्ष अगस्त 1982 में एक केमिकल इंजिनियर लिक्विड एमआईसी के संपर्क में आने के कारण 30 फीसदी जल गया था। उसी वर्ष अक्टूबर माह में एक बार फिर एमआईसी का रिसाव हुआ। उस रिसाव को रोकने के लिए एक व्यक्ति बुरी तरह से जल गया था। इस घटना के बाद भी कई बार 1983 और 1984 के दौरान फॉसजीन, क्लोरीन, मोनोमेथलमीन, कार्बन टेट्राक्लोराइड और एमआईसी का रिसाव हुआ था।

UCIL कम खर्च के लिए MIC का उपयोग किया....
कंपनी में जहरीली गैस का रिसाव यहां का लचर सिस्टम और घोर लापरवाही थी। कंपनी बनने के कुछ वर्षों बाद 1980 के शुरुआती सालों में कीटनाशक की मांग कम हो गई थी। जिसके कारण कंपनी ने सिस्टम के रखरखाव पर सही तरीके से ध्यान नहीं दिया। इसके बाद भी कंपनी एमआईसी (Methyl isocyanate) का उत्पादन भी नहीं रोका और एमआईसी का ढेर लगता गया। MIC एक जहरीली गैस थी। लेकिन मिक के इस्तेमाल से उत्पादन पर खर्च काफी कम पड़ता था, इसीलिए यूनियन कार्बाइड ने इस विषैली गैस का इस्तेमाल किया।

पत्रकार केसवानी ने पहले ही किया था आगाह...
इस घटना से पहले राजकुमार केसवानी नाम के पत्रकार ने 1982 से 1984 के बीच चार आर्टिकल लिखे। हर आर्टिकल में यूसीआईएल प्लांट के खतरे से चेताया। नवंबर 1984 में प्लांट काफी घटिया स्थिति में था। प्लांट के ऊपर एक खास टैंक था। टैंक का नाम E610 था। जिसमें एमआईसी 42 टन थे जबकि सुरक्षा की दृष्टि से एमआईसी का भंडार 40 टन से ज्यादा नहीं होना चाहिए था। टैंक की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं किया गया था और वह सुरक्षा के मानकों पर खरा नहीं उतरता था।

रात 10:30 बजे शुरू हुई त्रासदी की शुरुआत...
रात 8 बजे यूनियन कार्बाइड कारखाने की रात की शिफ्ट आ चुकी थी, जहां सुपरवाइजर और मजदूर अपना-अपना काम कर रहे थे। एक घंटे बाद ठीक 9 बजे करीब 6 कर्मचारी भूमिगत टैंक के पास पाइनलाइन की सफाई का काम करने के लिए निकल पड़ते हैं। उसके बाद ठीक रात 10 बजे कारखाने के भूमिगत टैंक में रासायनिक प्रतिक्रिया शुरू हुई। एक साइड पाइप से टैंक E610 में पानी घुस गया। पानी घुसने के कारण टैंक के अंदर जोरदार रिएक्शन होने लगा जो धीरे-धीरे काबू से बाहर हो गया। स्थिति को भयावह बनाने के लिए पाइपलाइन भी जिम्मेदार थी जिसमें जंग लग गई थी। जंग लगे आइरन के अंदर पहुंचने से टैंक का तापमान बढ़कर 200 डिग्री सेल्सियस हो गया जबकि तापमान 4 से 5 डिग्री के बीच रहना चाहिए था। इससे टैंक के अंदर दबाव बढ़ता गया।

अब शुरू होती है महातबाही की कहानी...
रात 10:30 बजे टैंक से गैस पाइप में पहुंचने लगी। वाल्व ठीक से बंद नहीं होने के कारण टॉवर से गैस का रिसाव शुरू हो गया और टैंक पर इमर्जेंसी प्रेशर पड़ा और 45-60 मिनट के अंदर 40 मीट्रिक टन एमआईसी का रिसाव हो गया। रात 12:15 बजे वहां पर मौजूद कर्मचारियों को घुटन होने लगी। वाल्व बंद करने की बहुत कोशिश की गई लेकिन तभी खतरे का सायरन बजने लगा। जिसको सुनकर सभी कर्मचारी वहां से भागने लगे। इसके बाद टैंक से भारी मात्रा में निकली जहरीली गैस बादल की तरह पूरे क्षेत्र में फैल गई। गैस के उस बादल में नाइट्रोजन ऑक्साइड, कार्बन डाइऑक्साइड, मोनोमेथलमीन, हाइड्रोजन क्लोराइड, कार्बन मोनोक्साइड, हाइड्रोजन सायनाइड और फॉसजीन गैस थीं। जहरीली गैस के चपेट में भोपाल का पूरा दक्षिण-पूर्वी इलाका आ चुका था। उसके बाद रात 12:50 बजे गैस के संपर्क में वहां आसपास की बस्तियों में रहने वाले लोगों को घुटन, खांसी, आंखों में जलन, पेट फूलना और उल्टियां होने लगी। देखते ही देखते चारों तरफ लाशों का अंबार लग गया कोई नहीं समझ पाया की यह कैसे हो रहा है।

सुबह चारों तरफ लग चुका था लाशों का अंबार...
अगले दिन की सुबह हजारों लोगों की मौत हो चुकी थी शवों को सामूहिक रूप से दफनाया जा रहा था। मरने वालों के अनुमान पर अलग-अलग एजेंसियों की राय भी अलग-अलग है। पहले अधिकारिक तौर पर मरने वालों की संख्या 2,259 बताई गई थी। मध्य प्रदेश की तत्कालीन सरकार ने 3,787 लोगों के मरने की पुष्टि की थी। वहीं कुछ रिपोर्ट का दावा है कि 8000 से ज्यादा लोगों की मौत तो दो सप्ताह के अंदर ही हो गई थी और लगभग अन्य 8000 लोग गैस रिसाव से फैली बीमारियों के कारण मारे गये थे। 2006 में सरकार ने कोर्ट में एक हलफनामा दिया। जिसमें बताया गया कि, गैस रिसाव के कारण कुल 5,58,125 लोग जख्मी हुए। उनमें से 38,478 आंशिक तौर पर अस्थायी विकलांग हुए और 3,900 ऐसे मामले थे जिसमें स्थायी रूप से लोग विकलांग हो गए। इसके प्रभावितों की संख्या लाखों में होने का अनुमान है। करीब 2000 हजार जानवर भी इस त्रासदी का शिकार हुए थे।

कंपनी का मालिक वॉरेन एंडरसन था मुख्य आरोपी...
यूनियन कार्बाइड कारखाने की जहरीली गैस से ही मौतों के मामलों के लिए फैक्ट्री के संचालक वॉरेन एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया था। हादसे के तुरंत बाद ही वह भारत छोड़कर अपने देश अमेरिका भाग गया था। पीड़ित उसे भारत लाकर सजा देने की मांग करते रहे, लेकिन भारत सरकार उसे अमेरीका से नहीं ला सकी। अंततः 29 सितंबर 2014 को उसकी मौत हो गई। ये हादसा इतना बड़ा था कि, इस पर वर्ष 2014 में ‘भोपाल ए प्रेयर ऑफ रेन’ नाम से फिल्म भी बनी थी।

कंपनी के घटिया सिस्टम भी थे महाविनाश के वजह...
हादसे के बाद जांच एजेंसियों को पता चला कि कारखाने से संबंधित सभी सुरक्षा मैन्युअल अंग्रेजी में थे। इसके विपरीत कारखाने के ज्यादातर कर्मचारियों को अंग्रेजी का कोई ज्ञान नहीं था। संभवतः उन्हें आपात स्थिति से निपटने के लिए जरूरी प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया था। जानकारों के अनुसार अगर लोग मुंह पर गीला कपड़ा डाल लेते तो भी जहरीली गैस का असर काफी कम होता, लेकिन किसी को इसकी जानकारी ही नहीं थी। इस वजह से हादसा इतना बड़ा हो गया।

1984 के बाद अब 2025 में हटाया गया जहरीला कचरा
आपको बता दें कि भोपाल गैस त्रासदी के बाद बाकी बची हुई गैस को खत्म करने के लिए ये कंपनी दोबारा शुरू की गई थी। जब इस गैस का इस्तेमाल पूरा हो गया और बाद में जो कचरा निकला, उसे यूनियन कार्बाइड के ही कवर्ड शेड में पैक कर रख दिया गया था। जिसे 28 फरवरी 2025 में यूनियन कार्बाइड से हटाकर पीथमपुर भेजा गया। ये कचरा कुल 337 टन था। कोर्ट के आदेश के बाद इस कचरे को पीथमपुर के रामकी इनवायरो में जलाया गया।

हादसे के बाद जर्मनी भेजा जाना था कचरा...
हादसे के बाद जहरीले कचरे को सरकार के द्वारा जर्मनी भेजने का प्रस्ताव तैयार किया था। हालांकि जर्मनी के नागरिकों के विरोध के कारण इस कचरे को वहां नहीं भेजा जा सका। सूत्रों के अनुसार इस तरह के केमिकल को दो हजार डिग्री से अधिक तापमान पर जलाया जाता है। जिसमें पर्यावरण भी काफी प्रदूषित होता है।

इस हादसे पर 2014 में फिल्म 'भोपाल ए प्रेयर ऑफ रेन' का निर्माण किया गया। त्रासदी के बाद भोपाल में जिन बच्चों ने जन्म लिया उनमें से कई विकलांग पैदा हुए तो कई किसी और बीमारी के साथ इस दुनिया में आए। यह भयावह सिलसिला अभी भी जारी है और बच्चे यहां कई असामान्यताओं के साथ पैदा हो रहे हैं और जिन घरों में इससे संबंधित लोग हैं उनकी बेटियों की अब शादी भी नहीं हो रही है। पंजाब केसरी हादसे में मृत लोगों को श्रद्धांजली अर्पित करता है।