MP में इस जगह आज भी मौजूद है मुगल सम्राट के सिर का ताज, अकबर ने इन महान संत को मान लिया था अपना गुरु

Edited By Himansh sharma, Updated: 16 Jan, 2025 10:21 PM

akbar s cap is still present in madhya pradesh

मध्य प्रदेश में आज भी मौजूद है अकबर की टोपी

ग्वालियर। मध्य प्रदेश का ग्वालियर जिला अपने इतिहास के लिए विदेश तक फेमस है, यहां पर कई राजाओं ने शासन किया। हम आपको आज ग्वालियर की गंगा दास की बड़ी शाला के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, ग्वालियर की गंगा दास की बड़ी शाला में आज भी मुगल बादशाह अकबर की टोपी मौजूद है। जो उन्होंने ग्वालियर के एक संत से प्रभावित होकर यहां उनके सम्मान में रख दी थी। यह टोपी आज भी यहां पर है और उस समय की गाथाओं का बखान कर रही है। मुगल बादशाह अकबर का ग्वालियर से काफी जुड़ाव रहा था। जिस का कारण मियां तानसेन तो थे ही जो की अकबर के नवरत्नों में से एक थे। अकबर के जीवन काल में घटित हुई ग्वालियर से जुड़ी एक घटना के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं।

इस घटना के बाद अकबर ने अपने सर का ताज उतार दिया था और संत के सम्मान में उन्हें अर्पित कर दिया था। जो आज भी ग्वालियर की गंगा दास की बड़ी शाला में रखा हुआ है।इतिहास के जानकार बताते हैं कि ग्वालियर में जब रहवास नहीं था तब संत श्री परमानंद गोसाई महाराज यहां पर नदी तट के समीप अपनी पूजा अर्चना करते थे और ध्यान लगाते थे। वह ध्यान और अध्यात्म रूप से किसी को नजर आए बिना करते थे। उस समय जब अकबर का ग्वालियर के ऐतिहासिक किले पर शासन हुआ करता था। तो सैनिकों को दूर से ही एक दिया जलता हुआ यहां दिखाई देता था और आरती की आवाज भी आती थी।

इस बात से अचंभित होकर एक बार अकबर के सैनिक यह देखने आए कि आखिर कौन है जो इतने घने जंगल में पूजा पाठ करता है। लेकिन जब बह यहां पर आए तो यहां पर परमानंद महाराज ने अपनी कला दिखाते हुए गायब होकर अपने शरीर के विभिन्न अंग यहां गिरा दिए। यह दृश्य देख सैनिक यहां से चले जाते थे, लगातार कई बार ऐसा होने पर सैनिकों ने इस बात की सूचना अकबर को दी।

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इसके बाद बादशाह अकबर ने अपने मंत्री को भी यहां पर भेजा लेकिन उनके सामने भी इसी प्रकार के क्रियाकलाप हुए। यह सुनकर बादशाह भी हैरान रह गए और एक दिन बह स्वयं ही ग्वालियर आए और आरती पूजा के समय स्वयं अपनी सेना के साथ गंगा दास की बड़ी शाला के स्थान पर पहुंचे, उस समय शाला इतनी विकसित नहीं थी। गोसाई महाराज एक टीले पर बैठकर अपना ध्यान करते थे। जब अकबर अपने हाथी पर बैठकर यहां आए तो उन्होंने परमानंद महाराज को एक साधारण संत समझ कर हाथी पर बैठकर ही उन्हें प्रणाम किया। इस बात को देखते हुए गोसाई महाराज ने उस स्थान टीले पर यहां पर ध्यान में बह मग्न थे। उसको आदेश दिया कि मुझे बादशाह के प्रणाम का उत्तर देना है आप कृपया अपने स्थान से ऊंचा उठ जाएं।

इसके बाद टीला भी उनकी बात मान गया और बादशाह के बराबर पहुंच गया था। अकबर ने भी यह नजारा देखा तो बह भी हैरान रह गया और अपने साथ हुई इस घटना के बाद तत्काल हाथी से नीचे उतरकर गोसाई महाराज की चरण वंदना की और कहा कि महाराज मैं आपको अपना गुरु बनाना चाहता हूं। इसके बाद गोसाई महाराज ने कहा कि आप जिस धर्म को मानते हैं और इसके अनुयाई हैं आप उसी में रहें मेरा आशीर्वाद आपके साथ है। लेकिन आप अन्य धर्म का भी इसी प्रकार सम्मान करें जिस प्रकार आप अपने धर्म का करते हैं। इस दौरान बादशाह अकबर ने गोसाई महाराज के आगे अपनी टोपी उतार दी और हीरे जड़ी टोपी उतार कर महाराज के सम्मान में प्रस्तुत कर दी। यह टोपी आज भी गंगा दास की शाला में संरक्षित रखी हुई है।

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