सुपारी से बने खिलौने देशभर में मशहूर, प्रशासन की अनदेखी से कहीं सिमट न जाए यह कारोबार

Edited By meena, Updated: 25 Nov, 2019 04:12 PM

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कहते हैं कला किसी की मोहताज नहीं होती। असली कलाकार निर्जीव को भी सजीव रुप दे सकता है। ऐसा ही उदाहरण मध्यप्रदेश के रीवा में देखने को मिला जहां पान का स्वाद बढ़ाने वाली सुपारी का इस्तेमाल देवी देवताओं की कलाकृतियां बनाने में भी किया जाता है...

रीवा: कहते हैं कला किसी की मोहताज नहीं होती। असली कलाकार निर्जीव को भी सजीव रुप दे सकता है। ऐसा ही उदाहरण मध्यप्रदेश के रीवा में देखने को मिला जहां पान का स्वाद बढ़ाने वाली सुपारी का इस्तेमाल देवी देवताओं की कलाकृतियां बनाने में भी किया जाता है। जी हां मध्य प्रदेश के रीवां जिले में सुपारी को न केवल खान-पान में बल्कि तरह -तरह की कलाकृतियां बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

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रीवा में ताजमहल से लेकर मंदिर तक, छड़ी से लेकर देवी-देवताओं तक बहुत सी कलाकृतियां बनाई जाती है। सुपारी से बने इन कलाकृतियों को जो भी देखता है वो दंग रह जाता है। आज पूरे विश्व में रीवा की बनी सुपारी की कलाकृतियों का नाम है।

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राष्टीय व अंतर्राष्टीय समारोह में यहां की इस कला को न सिर्फ सराहा गया है बल्कि पुरस्कृत भी किया जा चुका है। खास अवसरों पर मध्यप्रदेश आने वाले हर खास व्यक्तियों को सुपारी से बनी कलाकृतियां भेंट की जाती है।

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रीवा में आकर्षक खिलौने बनाने की कला कई वर्षो से चली आ रही है। यह कला देश में अपनी अलग पहचान बना चुकी है। सुपारी से कला कृतियां बनाने का काम वर्षो पहले कुदेर परिवार ने शुरू किया था। पहले तो वह राजदरबार के लिए आकर्षक उपहार बनाते थे लेकिन बाद में इस काम ने व्यापारिक रूप ले लिया।

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बताया जा रहा है कि, 1968 में प्रधानमंत्री इंदिरागांधी रीवा आई थीं उस दौरान उन्हें सुपारी के खिलौने गिफ्ट किए गए थे। जिससे वो काफी प्रभावित हुई थी। यह कला देश-विदेश में चर्चित हो गई है।

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अकेले कुंदेर परिवार सुपारी से मंदिर मस्जिद से लेकर खिलौने और मूर्तियां बनाने मे माहिर है। छोटी-छोटी खराद की मशीनों पर सुपारी को तराशते देख विश्वास ही नहीं होता कि सुपारी से भी इस तरह की कलाकृतियां बन सकती है।

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इस बारे में इस कला से जुड़े कलाकार बतलाते है कि कई दशकों से हमारा परिवार इस कला से जुड़ा है राजा महाराजाओं के जमाने से हम यह कार्य कर रहे है लेकिन इन कलाकारों को इस बात का मलाल है की इसको आगे बढ़ाने के लिए शासन से कोई सुविधा नहीं मिल रही है, जिससे वो इस कला को और आगे तक ले जाए।

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सफ़ेद शेर के बाद अगर रीवा की कोई पहचान है तो वो है सुपारी के खिलौने इन कलाकृतियों को देश से लेकर विदेशों तक सराहा गया व कई बार राष्टीय स्तर व अंतर्राष्ट्रीय स्तर से पुरस्कृत भी किया गया लेकिन ये कलाकृति सिर्फ एक परिवार तक ही सिमट कर रह गई है  शासन को चाहिए की वो इस कला को काफी आगे तक ले जाये जिससे ये विलुप्त होने से बच जाए।
 

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