Edited By Jagdev Singh, Updated: 08 May, 2020 08:19 PM
इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा की समितियों का मानसून सत्र में पुनर्गठन होगा, लेकिन सत्ता परिवर्तन की वजह से इस बार समितियों के सभापति व सदस्य संख्या में बीजेपी का पलड़ा भारी होगा। लोकलेखा समिति में शिवराज सरकार परंपरा का निर्वहन करते हुए अवश्य ही...
भोपाल: इस बार मध्य प्रदेश विधानसभा की समितियों का मानसून सत्र में पुनर्गठन होगा, लेकिन सत्ता परिवर्तन की वजह से इस बार समितियों के सभापति व सदस्य संख्या में बीजेपी का पलड़ा भारी होगा। लोकलेखा समिति में शिवराज सरकार परंपरा का निर्वहन करते हुए अवश्य ही कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक को सभापति का पद दे सकती है। मध्य प्रदेश विधानसभा के इस बार के मानसून सत्र में कई महत्वपूर्ण कामकाज होंगे जिनमें अध्यक्ष-उपाध्यक्ष का चुनाव और फिर विधानसभा की समितियों में सदस्यों की नियुक्तियां होंगी।
वहीं अगर पांच समितियों का गठन चुनाव से होता है तो वह भी सत्र के दौरान ही होगा क्योंकि अभी सभी समितियां महिलाओं व बाल कल्याण संबंधी समितियों को छोड़ अन्य समितियां निष्क्रिय हैं। महिलाओं और बाल कल्याण संबंधी समिति का कार्यकाल दो साल का होने से इसका पुनर्गठन इस बार नहीं होगा।
लोकलेखा समिति में राजनीतिक उठापटक समितियों में अधिकार से परिपूर्ण लोकलेखा समिति के सभापति का दायित्व कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक को दिया जा सकता है लेकिन नेता प्रतिपक्ष बदले जाने और उपाध्यक्ष पद कांग्रेस को मिलने की स्थिति स्पष्ट होने पर ही इसके लिए किसी विधायक की दावेदारी सामने आएगी। अभी डॉ. गोविंद सिंह, केपी सिंह, लक्ष्मण सिंह जैसे विधायक इस समिति के सभापति बनने के लिए वरिष्ठता क्रम में सबसे ज्यादा दावेदार हैं।
वहीं राज्य में शिवराज मंत्रिमंडल विस्तार से विधानसभा की समितियों के सभापति की तस्वीर और साफ हो जाएगी क्योंकि आमतौर पर मंत्री बनने पर समितियों के सभापति की जिम्मेदारी नहीं दी जाती है। महिलाओं और बाल कल्याण संबंधी समिति का दो साल का कार्यकाल होने से उसका पुनर्गठन तो नहीं होगा, लेकिन सभापति के रूप में कांग्रेस विधायक झूमा सोलंकी की जगह बीजेपी की मालिनी गौड़ या उषा ठाकुर में से किसी सदस्य को सभापति की जिम्मेदारी दी जा सकती है। वहीं, मंत्री बन चुकी मीना सिंह के स्थान पर भी कोई बीजेपी विधायक को समायोजित किया जा सकता है।