राज्य में सबसे बड़ा प्रशासनिक फेरबदल, 64 अधिकारी एक साथ बदले गए

Edited By Himansh sharma, Updated: 25 Dec, 2025 12:28 PM

the biggest administrative reshuffle in the state

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अब तक का सबसे बड़ा प्रशासनिक फेरबदल देखने को मिला है।

भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अब तक का सबसे बड़ा प्रशासनिक फेरबदल देखने को मिला है। भोपाल नगर निगम (बीएमसी) में 5 दर्जन से अधिक अधिकारियों और इंजीनियरों के कार्यभार में बड़ा बदलाव किया गया है। निगम आयुक्त संस्कृति जैन ने एक ही आदेश में 64 असिस्टेंट और सब इंजीनियरों को हटाकर नई जिम्मेदारियां सौंप दी हैं। इसे नगर निगम के इतिहास का सबसे बड़ा प्रशासनिक फेरबदल माना जा रहा है।

यह फैसला नगर परिषद की बैठक में पार्षदों की लिखित शिकायतों के बाद लिया गया है। पार्षदों का आरोप था कि पिछले चार महीनों से इंजीनियर न तो वार्ड में काम कर रहे थे और न ही जनसमस्याओं पर ध्यान दे रहे थे।

अतिक्रमण हटाने पर फोकस, विशेष टीमों का गठन

नए सेटअप में कार्यपालन यंत्रियों को अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में तैनात किया गया है। उन्हें सिविल कार्यों के साथ-साथ अतिक्रमण हटाने की सीधी जिम्मेदारी दी गई है। इसके लिए विशेष टीमें बनाई गई हैं, जो तेजी से कार्रवाई करेंगी।

जोनल अधिकारियों के भी तबादले

फेरबदल के तहत कई जोनल अधिकारियों को भी इधर-उधर किया गया है।

विजय शाक्य को जोन-14 का सहायक स्वास्थ्य अधिकारी बनाया गया

अंकित गौतम, संदीप मंडलेकर और भावना पटेरिया को अलग-अलग जोन में एसएचओ की जिम्मेदारी सौंपी गई

मेट्रोपॉलिटन रीजन से पहले निगम का नया सेटअप

भोपाल मेट्रोपॉलिटन रीजन के ड्राफ्ट से पहले नगर निगम का यह नया प्रशासनिक ढांचा तैयार किया गया है। मेट्रोपॉलिटन रीजन के लिए सरकारी जमीनों को अतिक्रमण मुक्त कराना सबसे बड़ी चुनौती है।

इसी को ध्यान में रखते हुए—

बृजेश कौशल – गोविंदपुरा

अनिल टटवाड़े – मध्य एवं उत्तर विधानसभा

एसके राजेश – दक्षिण-पश्चिम एवं हुजूर

अनिल कुमार साहनी – नरेला विधानसभा

को सिविल शाखा और अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी दी गई है।

झील संरक्षण और उद्यान विभाग को भी नई कमान

कार्यपालन यंत्री प्रमोद मालवीय को नरेला से हटाकर झील संरक्षण प्रकोष्ठ, उद्यान विभाग और प्रवेश द्वार प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

चार महीने से चल रहा था विवाद

गौरतलब है कि पूर्व नगर निगम आयुक्त हरेंद्र नारायण द्वारा इंजीनियरों के विभाग बदले जाने के बाद से लगातार विवाद बना हुआ था। पार्षदों का कहना था कि इंजीनियर न तो उनके वार्ड में पहुंच रहे थे और न ही विकास कार्यों में रुचि ले रहे थे।

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