Edited By Devendra Singh, Updated: 16 May, 2022 01:26 PM
छत्तीसगढ़ के बस्तर में बैलाडीला की पहाड़ियों इन दिनों ग्रामीणों की प्यास बुझा रही है। 7 गांवों के ग्रामीण नाले का गंदा पानी पी रहे हैं। वहीं प्रशासन इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
बस्तर (सुमित सेंगर): छत्तीसगढ़ के बस्तर में बैलाडीला की जिन पहाड़ियों से लौह उत्खनन कर सरकारों को करोड़ों रुपए की आमदनी होती है। उसी पहाड़ी के आसपास बसे 7 गांवों के ग्रामीण नाले का गंदा पानी पी रहे हैं। सैकड़ों ग्रामीण कई सालों से इसी गंदे पानी से अपनी प्यास बुझा रहे हैं। नाले का पानी इतना दूषित है कि उसका रंग भी अब काला हो गया है। हालांकि कुछ ग्रामीणों ने नाले के पास एक चुआ (झिरिया) बनाई है। सुबह शाम अब इसी से थोड़ी बहुत पूर्ति हो रही है। लेकिन भीषण गर्मी में पानी के ये दोनों स्त्रोत सूखते जा रहे हैं। जिससे ग्रामीणों के सामने एक पानी को लेकर बड़ी समस्या खड़ी हो गई है।
गर्मी आते ही साथ छोड़ देते हैं हैंडपंप: ग्रामीण
दरअसल, हुर्रेपाल, तिमेनार, एटेपाल समेत आसपास के करीब 7 गांवों में पानी की भारी किल्लत है। यह सभी गांव बीजापुर जिले के हैं। नक्सल प्रभावित इलाका होने की वजह से आज तक कोई भी प्रशासनिक अफसर इन इलाकों के ग्रामीणों की समस्या सुनने नहीं पहुंचा है। ग्रामीणों ने बताया कि करीब 15 से 20 साल पहले एक दो गांवों में हैंडपंप लगाए गए थे, जो अब खराब हो चुके हैं। पानी लेने गांव से कई किलोमीटर दूर पहाड़ियों से निकलने वाले बरसाती नाले में जाते हैं। ग्रामीणों ने कहा कि पानी गंदा है, लेकिन जीने के लिए पीना मजबूरी भी है। झिरिया का पानी नाले के पानी से थोड़ा साफ जरूर है, लेकिन पीने के लिए नहीं है।
नहीं सुनते अधिकारी: हुर्रेपाल गांव
हुर्रेपाल गांव के ग्रामीणों ने बताया कि जिस नाले के पानी का उपयोग इंसान करते हैं। उसी पानी का उपयोग पालतू मवेशी सहित जंगल के कई जंगली जानवर भी करते हैं। इंसान और जानवर दोनों की प्यास बुझाने का यही एकमात्र जरिया है। ग्रामीणों का कहना है कि पानी की समस्या को दूर करने जिम्मेदारों के दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर थक गए लेकिन किसी ने समस्या का समाधान करने दिलचस्पी नहीं दिखाई है।